Monday, December 3, 2012

सुनो ! मृगांका :27: साक़ी शराब ला, कि तबियत उदास है...

अभिजीत की बांहो का घेरा कसता जा रहा था...मृगांका नींद के आगोश में डूबती चली गई। डूबती चली गई। इतनी गहरी और आश्वस्तिदायक नींद थी कि लगा मृगांका इतनी अच्छी नींद में पिछले दो साल से सोई ही न थी।

सुबह नींद से जगी तो कपैटड़े संभलाते हुए मृगांका ने देखा, अपनी देर तक सोने की आदत के विपरीत अभिजीत उठकर बिस्तर से बाहर था।

वह बाहर आई...देखा लॉन में बैठकर अभिजीत की मां और मम्मी चाय की घूटें ले रहे हैं।

मम्मा अभि कहां है, मां जी, उठ गया वो?

अभिजीत और उसकी मम्मी की आंखों में सवाल उभर आए...

बेटा, सपना देखा था कोई?


उधर, गांव में  क़िस्सा खत्म नहीं हुआ था, लेकिन बैठक खत्म होने को आई। गांव से जुड़ी कुछ समस्याओं को लेकर अभिजीत गांव का दौरा करना चाह रहा था। लेकिन अगले दिन न तो मुखिया जी खाली थे न ही महंत जी। महंत जी ने कहा, आपके साथ उगना चला जाएगा. इस पूरे इलाके का चप्पा-चप्पा इसको पता है।

अगले दिन अलसभोर में ही उगना ने अभिजीत को जगा दिया।

दोनों साथ निकल पड़े थे। पैदल ही।

चलते-चलते  बहुत देर हो गई। उगना भी चुप था और अभिजीत भी। अभिजीत कच्चे रास्ते की मैदे सी बारीक धूल को देखता चल रहा था। कुछ ही देर में उसे भूख लग आई।

अपने रिपोर्टिंग के दिनो में उसने भूख पर काबू पाने के नायाब तरीके खोज निकाले थे। लेकिन, मृगांका..वो ऊंचे दरज़े के खानदान की थी। उसे हाइज़ीन और सेहत से जुड़ी साफ-सफाई का बहुत ध्यान रहता था।

याद आया उसे दो दिनो केलिए मृगांका बाहर गयी थी। बात तब की है जब अखबार छोड़कर उसने एक बड़े से खबरिया चैनल में नौकरी कर ली थी।

इस नई नौकरी के लिए अभिजीत ने बहुत जोर दिया था। गोकि मृगांका अखबार में नौकरी करते हुए अभिजीत से रोज ब रोज़ मिलने का वो मौका छोड़ना नहीं चाहती थी। अभिजीत की इच्छा थी कि मृगांका उसे एंकरिंग करती दिखाई दे।

मृगांका को अभिजीत की बात माननी ही पड़ी थी। लेकिन, दो दिनों के लिए बाहर गई मृगांका के लिए मुसीबत खड़ी हो गई। मृगांका बाहर न तो खा सकती थी न ही कुछ निवाला उसके हलक के नीचे गया।

दो दिनों तक सांस अटकी रही थी अभिजीत की भी...। कितनी बार कहा था मृगांका को, बैग में ड्राइ फ्रूट्स रखा करो, चॉकलेट रखा करो। लेकिन वो भी अपनी जगह जिद्दी ही थी।

अल्लसुबह घर से निकली मृगांका उस दिन देर रात गेस्टहाउस पहुंची थी, दिन भर की भूखी। अभिजीत ने सोचा था कि जब तक मृग खुद खाकर उसके बता नहीं देगी कि उसने खा लिया है, तब तक वह भी नही खाएगा...लेकिन ऐसा हो नहीं पाया था।

क्यों न हो पाया था. ये बड़ी हंसी वाली बात है। उस दिन असल में खाया तो सच में अभिजीत ने कुछ तो सही में नही, लेकिन पीने से खुद को रोक नहीं पाया था। पीने के साथ कुछ चबेना तो चाहिए ही था.....इसलिए जब तक मृगांका नहीं खाएगा वाला प्रण अधूरा रह गया था। सिगरेट की छल्लों वाले धुएं में उसे मृगांका का चेहरा दिखता रहा था रात भर।

उगना आगे आगे चल रहा था। उसके पैर पतले-पतले थे। चलते समय ऐड़ियां पैरों की बनिस्बत आसपास गिरती थीं...बिलकुल दुबला...। सिर के बाल भूरे, कुपोषण का शिकार।

पढ़ना जानते हो उगना...अभिजीत ने बातचीत का सूत्र पकडा.
नहीं।
पढ़ते क्यों नहीं..
पढने जाएंगे तो छोटी बहन का पेट कैसे भरेगा।

अभिजीत निरुत्तर रह गया। अच्चा तुमको वो उगना वाली कहानी याद है?

हां, सुनोगे क्या
सुनाओ

एक दिन महाकवि विद्यापति कहीं जा रहे थे, रास्ते में उनको प्यास लगी, यहां तक की कहानी तो आप जानते ही हैं। अभिजीत ने हामी भरी।

तो कवि विद्यापति ने उगना से कहा कि कहीं से पानी लेकर आओ। आसपास कहीं कोई कुआं नहीं, न को ई तालाब....चारों तरफ सूखा...

अभिजीत ने देखा, चारों तरफ सूखे खेत थे। धान की कटाई के बाद पौधों की ठूंठें थीं...। खेत की जमीन में दरारें पड़ी थीं।

उगना पानी पिलाओंगे।

हां मालिक।

उगना पानी लेने चला गया।

थोड़ी देर बाद लौटा तो लोटे में पानी था। अभिजीत ने पानी पिया, आठ सौ साल पहले महाकवि विद्यापति ने भी पानी पिया था। अभिजीत ने देखा, पानी एक दम साफ निर्मल और स्वच्छ था..उसे याद आया गंगोत्री गया था वो, अपनी बुलेट पर। पीछे थी मृगांका...तो गोमुख के पास गंगा का पानी भी इतना ही निर्मल था।

पानी कहां से लाए हो उगना। अभिजीत ने पूछा, इक्कीसवीं सदी में, विद्यापति ने पूछा था ग्यारहवीं सदी में।


...जारी





 

2 comments:

Anonymous said...

प्रिय ब्लॉगर मित्र,

हमें आपको यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है साथ ही संकोच भी – विशेषकर उन ब्लॉगर्स को यह बताने में जिनके ब्लॉग इतने उच्च स्तर के हैं कि उन्हें किसी भी सूची में सम्मिलित करने से उस सूची का सम्मान बढ़ता है न कि उस ब्लॉग का – कि ITB की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगों की डाइरैक्टरी अब प्रकाशित हो चुकी है और आपका ब्लॉग उसमें सम्मिलित है।

शुभकामनाओं सहित,
ITB टीम

http://indiantopblogs.com

पुनश्च:

1. हम कुछेक लोकप्रिय ब्लॉग्स को डाइरैक्टरी में शामिल नहीं कर पाए क्योंकि उनके कंटैंट तथा/या डिज़ाइन फूहड़ / निम्न-स्तरीय / खिजाने वाले हैं। दो-एक ब्लॉगर्स ने अपने एक ब्लॉग की सामग्री दूसरे ब्लॉग्स में डुप्लिकेट करने में डिज़ाइन की ऐसी तैसी कर रखी है। कुछ ब्लॉगर्स अपने मुँह मिया मिट्ठू बनते रहते हैं, लेकिन इस संकलन में हमने उनके ब्लॉग्स ले रखे हैं बशर्ते उनमें स्तरीय कंटैंट हो। डाइरैक्टरी में शामिल किए / नहीं किए गए ब्लॉग्स के बारे में आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा।

2. ITB के लोग ब्लॉग्स पर बहुत कम कमेंट कर पाते हैं और कमेंट तभी करते हैं जब विषय-वस्तु के प्रसंग में कुछ कहना होता है। यह कमेंट हमने यहाँ इसलिए किया क्योंकि हमें आपका ईमेल ब्लॉग में नहीं मिला। [यह भी हो सकता है कि हम ठीक से ईमेल ढूंढ नहीं पाए।] बिना प्रसंग के इस कमेंट के लिए क्षमा कीजिएगा।

monali said...

Hmmm finally.. bada samay laga ji.. 2 subeh breakfast k bina baithna pada ki subeh ka bas ek yehi samay humara apna h.. magar finally 2 subeh laga k padh hi li ab tak ki poori katha.. "suno mriganka"

Tareef to klya hi karein.. bas intzaar kar rahe hain aage ki kishto ka.. :)