Wednesday, December 12, 2012

...और क़यामत नहीं आई


क़यामत भी नेताओ और माशूकाओं की तरह धोखेबाज़ है। आते, आते नहीं आती है। वायदा करती है और नहीं आती है। कई साल से टीवी वाले चीख रहे थे, 12 दिसम्बर 2012 को क़यामत आएगी। हम भी बड़ी शिद्दत से क़यामत का इंतज़ार कर रहे थे। हम बहुत नजदीक से देखना चाहते थे कि क़यामत आखिर होती कैसी है। सुना था क़यामत के रोज़ क़ब्र से मुरदे उठ खड़े होंगे और सबके पाप-पुण्य का हिसाब-किताब होना है।

हम डरे हुए थे, बड़ा एंडवेंचरस से विचार आ रहे थे। काहे कि हम पापियों की श्रेणी में गिने जाते हैं।

फिर मन में बड़े गहन विचार उत्पन्न हुए आखिर क़यामत है क्या..। लोगों ने समझाया कि इस के बाद धरती पर सारे लोग खत्म हो जाएंगे। धरती लोगों के रहने लायक नहीं रह जाएगी। एक सवाल अपने आप सेः धरती अभी लोगों के रहने लायक है क्या?

कुछ लोग अपनी महबूबा को क़यामत सरीखा मानते हैं, कुछ अपनी पत्नी को कहते तो शरीक-ए-हयात हैं लेकिन मानते क़यामत ही हैं। पहले पत्नियों वाली बात। बीवी को क़यामत ने मानने वालों के लिए, श्रीमतीजी का जन्मदिन, उनके भाई का जन्मदिन, अपनी शादी की सालगिरह की तारीख़ भूलकर देखिए (यद्यपि हमारा विचार है कि यह तारीख़ भूलने योग्य ही हुआ करती है।) आपके लिए वही तारीख़ क़यामत सरीखी हो जाएगी। उस दिन कायदे से क़यामत बरपा होगा आप पर।

आपकी महबूबा ने फोन पर आपसे कहा, फलां दिन मिलते हैं। किस जगह, किस वक़्त, ये बाद में बताने का वायदा। फिर आप तैयार होना शुरु करते हैं...सिगडी़ पर दिल सेंकते हुए, तेरा रास्ता देख रहा हूं, गुनगुनाते हुए...आपकी क़यामत सरीखी महबूबा, जिनकी आंखों, भौंहों, पलकों, अलकों (बाल की लटों) बालों, गालों, गाल पर के तिल, होठों, मुस्कुराहट, गरदन, ठोड़ी, कलाइयों, कलाई के ऊपर के एक और तिल, कमर सबको एक-एककर क़यामत बता चुके हैं।

सोमवार को आपने उनके चलने को क़यामत कहा था। मंगलवार को उनकी मुस्कुराहट से क़यामत आई थी। गुरुवार को उऩकी आवाज़ क़यामत सरीखी थी। शुक्रवार को वो क़यामत का पूरा पैकेज लग रही थी। मतलब सर से पैर तक क़यामत ही क़यामत। बहरहाल, आपने तय किया था कि इसी क़यामत से मिलकर क़यामत की घटना को सत्य ही घटित करना...लेकिन असली क़यामत की बारी तो अब आती है।

आप टापते रह जाते हैं। आपके जिगर पर छुरी चल जाती है। लड़को का जिगर प्रायः छुरियों के नीचे ही पड़ा रहता है। आपकी उनने कुछ किया या न किया, आपकी तरफ देखा, नहीं देखा, आपसे समय पूछा, हंसी, नहीं हंसी, आज उनने जीन्स पहनी है, आज उनने सलवार सूट पहना है, आज उन्होंने आपकी तरफ देखा, आज उनने आपकी तरफ देखकर थूका नहीं...आपको वह क़यामत लगेगी। आपके दिल पर छुरियां चल जाएगी।

बहरहाल, ये तो बहुत निजी क़िस्म की क़यामतें हैं। जहां प्रेमिकाएं अपने प्रेमी से फायरब्रिगेड मंगवाने की इल्तिजा करती हों, जहां प्रेमी को प्रेमिका का प्यार हुक्काबार लगे, या तस्वीर को फेविकोल से चिपका लिया जाए वहां बाकी की क़यामतों पर क्या नज़र जाएगी।

पिछले दिनों राज्यसभा में रिटेल में एफडीआई पर बहस के दौरान क़यामत आती-सी लगी। आई नहीं, ये बात और है। विपक्ष सरकार पर टूट पड़ा, रिटेल में एफडीआई आ गया तो हुजूरेआलिया क़यामत आ जाएगी। सरकार की तरफ से मंत्रियों ने कहा, अगर एफडीआई नहीं आय़ा तो क़यामत होगी।

दीपेन्द्र हुडा ने सुषमा को कहा आंटी जी हम हरियाणा में 24 इंच का आलू उगाएंगे, यह भी कम क़यामत न था। इन सबपर भारी था मनमोहन सिंह करीब डेढ़ सेकेन्ड तक मुस्कुराते रह गए थे। सामने अमेरिका का कोई राष्ट्रपति नहीं था, फिर भी मुस्कुरा रहे थे। प्रधानमंत्री की मुस्कुराहट आधा या पौन सेकेन्ड और जारी रहती तो अल्लाहक़सम क़यामत उसी रोज़ आ जाती...।

क़यामत भी नेताओ और माशूकाओँ की तरह धोखेबाज़ है। आते, आते नहीं आती है। वायदा करती है और नहीं आती है। हमको लगा अब न्याय होगा। लेकिन क़यामती न्याय की झलक नहीं दिखती। क़यामती पत्रकारिता करने वाले, स्वर्ग की सीढी खोजकर दुनिया को सीधे स्वर्ग स्थानांतरित करने वाले महान् पत्रकारों की जमात किसी और सीढ़ी की तलाश कर रही है।

खैर...लोग कहते हैं क़यामत नहीं आई। लेकिन, महंगाई के दौर में, रसोई गैस से लेकर पानी तक पहुंच से दूर पहुंचने के दौर में, और उस दौर में जब क़यामत वायदा करे और न आए...हम बाकायदा ज़िंदा है यह क्या कम क़यामत है?

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

कयामत के पहले न हो पायीं सारी हसरतें पूरी।

रश्मि प्रभा... said...

http://www.parikalpnaa.com/2012/12/blog-post_22.html