पटना से झारखंड में अभिजीत का गृहनगर बहुत दूर नहीं।
ट्रेन की बजाय, भरत किस्कू ने ज़ोर दिया कि सड़क मार्ग से यात्रा की जाए। मृगांका अभिजीत के गांव गई थी तो सड़क के दोनों तरफ देखने का खयाल तक नहीं आया था दिल में।
अब तो भरत उसे दिखाता हुआ ले जाएगा। पटना से उसकी एसयूवी निकली भी न थी कि प्रशांत का फोन आ गया, भाभी, मैंने छुट्टी बढ़वा ली है। अभिजीत के पास अंकल जी भी हैं और चाची भी। उसके भैया-भाभी भी आ ही चुके हैं। क्यों न मैं चलूं आपके साथ। मैं भी देख लूंगा झारखंड।
मृगांका को भला क्या उज्र हो सकता था। उसके बैग में कुछ कपड़े थे, और दो छोटे वीडियो कैमरे, बैटरी, चार्जर, मेमरी कार्ड वगैरह। डायरी तो खैर थी ही...।
एनएच पर जब प्रशांत मिला तो उसके साथ थी एक हसीं सी लड़की भी। सांवला रंग, सुतवां नाक, नाक में सानिया मिर्जा-कट नथ, लहरदार बाल, भूरी-सी आंखो में चमक...उस वक्त तो इतना भर देख पाई मृगांका।
तय रहा कि पहले सड़क के किनारे नामचीन ब्रांड के रेस्तरां में पहले कॉफी पी जाए, आगे की बात बाद में तय करेंगे।
भाभी, ये हैं अनन्या। हमारे मेडिकल कॉलेज की बैचमेट. ये यहीं पटना में प्रैक्टिस करती हैं। फेसबुक पर बातें होती रहती थी, लेकिन यहां मुलाकात भी हो गई।
मृगांका ने नजरों से तौला। नः, बात इतनी ही नहीं है।
दी, मैं सोच रही थी कि कुछ दिन चलूं आपके साथ, बहुत सुना है मैंने। थोड़ा वक्त भी गुजर जाएगा मेरा।--अनन्या ने अपनी कोमल आवाज़ मे कहा।
अनन्या, हम पिकनिक पर नहीं जा रहे।
जी पता है, आप अपनी रिपोर्टिंग करते रहिएगा दी, मैं जरा गांवों में कुछ बच्चों का इलाज कर दिया करूंगी...अनन्या अनुनय कर रही थी।
मृगांका ने देखा, प्रशांत की नजरों में कुछ था। उसे लगा कि इन दोनों को एक दूसरे का साथ चाहिए, तो यही सही।
निर्णायक स्वर में उसने कहा, चलो।
अब भरत किस्कू ड्राइव कर रहा था, अनन्या प्रशांत पिछली सीट पर बैठे और अगली सीट पर बैठी मृगांका खोई नजरों से सामने काली सड़क को देखती रही, एकटक।
बगल के लेने से किस्कू ओवरटेक कर दे रहा था, बारिश शुरू हो गई थी, लेकिन बारिश में भींगते पेड़ भी पीछे छूटते जा रहे थे।
बारिश बहुत गहरे ज़ख्म़ देती है।
अभिजीत, बिना तुम्हारे कितनी बेरहम लग रही है ये बारिश। मन का कोई कोना सूखा नहीं लग रहा।अनन्या और प्रशांत दोनों थोड़ी देर के लिए खामोश बैठे रहे।
किस्कू गाड़ी तेज़ चला रहा था, लेकिन बारिश का व्यवधान था। वाइपर सपा-सप चल रहा थे। बारिश की मोटी बूंदें पायल जैसा संगीत बजा रही थीँ। बस वही आवाज़, इंजन की घरघराहट, पहिए के जोर से छपाक से उड़ता सड़कों पर जमा पानी...
किस्कू ने इस असहज-सी होती शांति को तोड़ने के लिए स्टीरियो चला दिया, तलत महमूद एकदम उदास होती आवाज़ में गा रहे थे, जलते हैं जिसके लिए, मेरी आंखों के दिए...
आवाज़ की उदासी मृगांका को तर करती गई। आंखों में उदासी के मंजर...कितना बेचारा लग रहा है वह अभिजीत...जिसकी बढ़ी हुई शेव वाली झलक पाने को वो बेताब रहा करती थी। जिसकी बदतमीज निगाहों को वह निहारा करती थी हरदम...जिसके आत्मविश्वास और उसूलों ने मृगांका के मन में उसके लिए प्रेम के साथ-साथ इज़्ज़त भी पैदा की थी।
अनन्या ने तोड़ा इस सन्नाटे को। हमलोग झारखंड में किधर चल रहे हैं।
अभिजीत सर के घर।
लेकिन, वहां तो कोई होगा नहीं, फिर..
फिर क्या, आप चलिए तो सही.भाभी जी, अभिजीत सर ने पता नहीं पैसा कितना कमाया, या नहीं कमाया। लेकिन इस इलाके के लोग मानते बहुत हैं अभिजीत सर को। वो इस इलाके में तब से आते रहे हैं जब उनकी किताब छपी भी नहीं थी। तब से, जब से आपसे जुड़े भी नहीं थे वो।
लाल मिट्टी के इस इलाके, साल-सागवान के इन जंगलों, पलाश के फूलों, ग्रेनाइट के इन काले पत्थरों...केंदू पत्तों, बेर, बेल, शरीफे के फलों, कितना प्रेम करते थे वो।
थे नहीं भरत, हैं। अभिजीत अभी भी प्रेम करता है इनसे।
हां, भाभी, वही। उसके सधे हुए हाथ स्टीयरिंग वील पर घूम रहे थे। उनकी गाड़ी बरही वाले रास्ते पर एनएच 2 पर आ गई थी। उधर से ही गिरिडीह...और पीरटांड प्रखंड। नक्सलियों का इलाका...
*
जमुई के पहले से ही मिट्टी का रंग बदलने लगा था। धूसर मिट्टी पहले हल्की पीली और फिर गहरी लाल हो गई। समतल मैदान में पहले छोटे टीले दिखे, और अब पहाड़ियां दिखने लगीं थी। इलाका पठारी था, मैदानी हरियाली की जगह थी तो हरियाली ही, लेकिन झाडि़यां ज्यादा थीं।
मिट्टी में कड़ापन आ गया था।
...अभिजीत भैया, इस इलाके का बारंबार दौरा करते थे। कुछ नहीं, बस कंधे पर टंगा एक झोला, एक डायरी, पेन। चाय के शौकीन। भूखे रहे तो, मूढ़ी (मुरमुरे) और चाय पर भी कोई दिक्कत नहीं...।
भरत किस्कू चालू था। सड़क संकरी हो गई। चौड़ी सड़क अब दसफुटिया प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना वाली सड़क में तब्दील हो गई थी।
..यहां की जनजाति संताल है। बाहरी लोगों ने उनका बहुत शोषण किया है। उनको दीकू कहते हैं ये। मैं भी संताल ही हूं...सरहुल , सोहराय मनाते हैं हम। साल की पूजा करते हैं, महुए की भी। प्रकृति पूजक हैं। लेकिन अंग्रेजों के वक्त जो शोषण शुरू हुआ, हमें जंगलों से भगाने का सिलसिला शुरू हुआ वो आज तक जारी है...भरत तैश में आ गया था।
सड़क और पतली हो गई। डामर वाली सड़क अब सीमेंट वाली सड़क में तब्दील हो गई थी। जिसपर गांव वालों ने हर पचास मीटर पर बंपर बना रखे थे। गाड़ी चलती कम हिचकोले ज्यादा खाने लगी थी।
हम पर और हमारे लोगों पर क्या बीती, हम क्या बताएं आपको ...बताएंगे कभी बाद में, लेकिन अभिजीत भैया ने बागी हो चुके सैकड़ों लोगों को एकतरह से नई जिंदगी भी दी और ऩया तरीका भी बताया जीने का...सिर्फ लड़ना-भिड़ना ही नहीं, जीना भी।
तो क्या अभिजीत नक्सल बन गया था? मृगांका पूछ बैठी।
गाड़ी ने हिचकोला खाया, सड़क एक तरफ मुड़ रही थी, गाड़ी दूसरी तरफ मुडकर कच्चे रास्ते पर आ गई थी। लाल मिट्टी का कीचड़ पहिए पर लग रहा था, कुछ गए हुए लोगों के निशां बने थे।
मृगांका को लगा, शायद उनमें एक निशान अभिजीत का भी हो।
...-जारी
ट्रेन की बजाय, भरत किस्कू ने ज़ोर दिया कि सड़क मार्ग से यात्रा की जाए। मृगांका अभिजीत के गांव गई थी तो सड़क के दोनों तरफ देखने का खयाल तक नहीं आया था दिल में।
अब तो भरत उसे दिखाता हुआ ले जाएगा। पटना से उसकी एसयूवी निकली भी न थी कि प्रशांत का फोन आ गया, भाभी, मैंने छुट्टी बढ़वा ली है। अभिजीत के पास अंकल जी भी हैं और चाची भी। उसके भैया-भाभी भी आ ही चुके हैं। क्यों न मैं चलूं आपके साथ। मैं भी देख लूंगा झारखंड।
मृगांका को भला क्या उज्र हो सकता था। उसके बैग में कुछ कपड़े थे, और दो छोटे वीडियो कैमरे, बैटरी, चार्जर, मेमरी कार्ड वगैरह। डायरी तो खैर थी ही...।
एनएच पर जब प्रशांत मिला तो उसके साथ थी एक हसीं सी लड़की भी। सांवला रंग, सुतवां नाक, नाक में सानिया मिर्जा-कट नथ, लहरदार बाल, भूरी-सी आंखो में चमक...उस वक्त तो इतना भर देख पाई मृगांका।
तय रहा कि पहले सड़क के किनारे नामचीन ब्रांड के रेस्तरां में पहले कॉफी पी जाए, आगे की बात बाद में तय करेंगे।
भाभी, ये हैं अनन्या। हमारे मेडिकल कॉलेज की बैचमेट. ये यहीं पटना में प्रैक्टिस करती हैं। फेसबुक पर बातें होती रहती थी, लेकिन यहां मुलाकात भी हो गई।
मृगांका ने नजरों से तौला। नः, बात इतनी ही नहीं है।
दी, मैं सोच रही थी कि कुछ दिन चलूं आपके साथ, बहुत सुना है मैंने। थोड़ा वक्त भी गुजर जाएगा मेरा।--अनन्या ने अपनी कोमल आवाज़ मे कहा।
अनन्या, हम पिकनिक पर नहीं जा रहे।
जी पता है, आप अपनी रिपोर्टिंग करते रहिएगा दी, मैं जरा गांवों में कुछ बच्चों का इलाज कर दिया करूंगी...अनन्या अनुनय कर रही थी।
मृगांका ने देखा, प्रशांत की नजरों में कुछ था। उसे लगा कि इन दोनों को एक दूसरे का साथ चाहिए, तो यही सही।
निर्णायक स्वर में उसने कहा, चलो।
अब भरत किस्कू ड्राइव कर रहा था, अनन्या प्रशांत पिछली सीट पर बैठे और अगली सीट पर बैठी मृगांका खोई नजरों से सामने काली सड़क को देखती रही, एकटक।
बगल के लेने से किस्कू ओवरटेक कर दे रहा था, बारिश शुरू हो गई थी, लेकिन बारिश में भींगते पेड़ भी पीछे छूटते जा रहे थे।
बारिश बहुत गहरे ज़ख्म़ देती है।
अभिजीत, बिना तुम्हारे कितनी बेरहम लग रही है ये बारिश। मन का कोई कोना सूखा नहीं लग रहा।अनन्या और प्रशांत दोनों थोड़ी देर के लिए खामोश बैठे रहे।
किस्कू गाड़ी तेज़ चला रहा था, लेकिन बारिश का व्यवधान था। वाइपर सपा-सप चल रहा थे। बारिश की मोटी बूंदें पायल जैसा संगीत बजा रही थीँ। बस वही आवाज़, इंजन की घरघराहट, पहिए के जोर से छपाक से उड़ता सड़कों पर जमा पानी...
किस्कू ने इस असहज-सी होती शांति को तोड़ने के लिए स्टीरियो चला दिया, तलत महमूद एकदम उदास होती आवाज़ में गा रहे थे, जलते हैं जिसके लिए, मेरी आंखों के दिए...
आवाज़ की उदासी मृगांका को तर करती गई। आंखों में उदासी के मंजर...कितना बेचारा लग रहा है वह अभिजीत...जिसकी बढ़ी हुई शेव वाली झलक पाने को वो बेताब रहा करती थी। जिसकी बदतमीज निगाहों को वह निहारा करती थी हरदम...जिसके आत्मविश्वास और उसूलों ने मृगांका के मन में उसके लिए प्रेम के साथ-साथ इज़्ज़त भी पैदा की थी।
अनन्या ने तोड़ा इस सन्नाटे को। हमलोग झारखंड में किधर चल रहे हैं।
अभिजीत सर के घर।
लेकिन, वहां तो कोई होगा नहीं, फिर..
फिर क्या, आप चलिए तो सही.भाभी जी, अभिजीत सर ने पता नहीं पैसा कितना कमाया, या नहीं कमाया। लेकिन इस इलाके के लोग मानते बहुत हैं अभिजीत सर को। वो इस इलाके में तब से आते रहे हैं जब उनकी किताब छपी भी नहीं थी। तब से, जब से आपसे जुड़े भी नहीं थे वो।
लाल मिट्टी के इस इलाके, साल-सागवान के इन जंगलों, पलाश के फूलों, ग्रेनाइट के इन काले पत्थरों...केंदू पत्तों, बेर, बेल, शरीफे के फलों, कितना प्रेम करते थे वो।
थे नहीं भरत, हैं। अभिजीत अभी भी प्रेम करता है इनसे।
हां, भाभी, वही। उसके सधे हुए हाथ स्टीयरिंग वील पर घूम रहे थे। उनकी गाड़ी बरही वाले रास्ते पर एनएच 2 पर आ गई थी। उधर से ही गिरिडीह...और पीरटांड प्रखंड। नक्सलियों का इलाका...
*
जमुई के पहले से ही मिट्टी का रंग बदलने लगा था। धूसर मिट्टी पहले हल्की पीली और फिर गहरी लाल हो गई। समतल मैदान में पहले छोटे टीले दिखे, और अब पहाड़ियां दिखने लगीं थी। इलाका पठारी था, मैदानी हरियाली की जगह थी तो हरियाली ही, लेकिन झाडि़यां ज्यादा थीं।
मिट्टी में कड़ापन आ गया था।
...अभिजीत भैया, इस इलाके का बारंबार दौरा करते थे। कुछ नहीं, बस कंधे पर टंगा एक झोला, एक डायरी, पेन। चाय के शौकीन। भूखे रहे तो, मूढ़ी (मुरमुरे) और चाय पर भी कोई दिक्कत नहीं...।
भरत किस्कू चालू था। सड़क संकरी हो गई। चौड़ी सड़क अब दसफुटिया प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना वाली सड़क में तब्दील हो गई थी।
..यहां की जनजाति संताल है। बाहरी लोगों ने उनका बहुत शोषण किया है। उनको दीकू कहते हैं ये। मैं भी संताल ही हूं...सरहुल , सोहराय मनाते हैं हम। साल की पूजा करते हैं, महुए की भी। प्रकृति पूजक हैं। लेकिन अंग्रेजों के वक्त जो शोषण शुरू हुआ, हमें जंगलों से भगाने का सिलसिला शुरू हुआ वो आज तक जारी है...भरत तैश में आ गया था।
सड़क और पतली हो गई। डामर वाली सड़क अब सीमेंट वाली सड़क में तब्दील हो गई थी। जिसपर गांव वालों ने हर पचास मीटर पर बंपर बना रखे थे। गाड़ी चलती कम हिचकोले ज्यादा खाने लगी थी।
हम पर और हमारे लोगों पर क्या बीती, हम क्या बताएं आपको ...बताएंगे कभी बाद में, लेकिन अभिजीत भैया ने बागी हो चुके सैकड़ों लोगों को एकतरह से नई जिंदगी भी दी और ऩया तरीका भी बताया जीने का...सिर्फ लड़ना-भिड़ना ही नहीं, जीना भी।
तो क्या अभिजीत नक्सल बन गया था? मृगांका पूछ बैठी।
गाड़ी ने हिचकोला खाया, सड़क एक तरफ मुड़ रही थी, गाड़ी दूसरी तरफ मुडकर कच्चे रास्ते पर आ गई थी। लाल मिट्टी का कीचड़ पहिए पर लग रहा था, कुछ गए हुए लोगों के निशां बने थे।
मृगांका को लगा, शायद उनमें एक निशान अभिजीत का भी हो।
...-जारी
2 comments:
Wah! Itani sundarta se baatein karte hai aap...
Bahoot khoobsurat n interesting description hai .
well done sir !
shabd kam pad rahe h...
sach me aapki ungaliyon me jadoo hai ...
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