किसी ने मुझे एक किताब उपहार में दिया था...द अलकेमी ऑफ डिज़ायर। लेखकः तरूण तेजपाल। पहली ही पंक्ति पढ़ी, दो जनों को बीच से जोड़ने वाला गोंद प्यार नहीं है, सेक्स है। ( लव इज़ नॉट द ग्रेटेस्ट ग्लू बीटविन टू पीपल। सेक्स इज़। )
किताब की पहली पंक्ति की इस स्थापना से हैरत हुई। पढ़ता चला गया। कुछ ऐसा हुआ कि अंग्रेजी की किताब को लगातार पढ़ नहीं पाया। व्यस्तताओं का दौर था। लेकिन पूरा पढ़ा, तो आखिरी पंक्ति, पहली पंक्ति की एंटी-थीसिस लगी।
दो लोगों को बीच से जोड़ने वाला गोंद प्यार है, सेक्स नहीं। (सेक्स इज़ नॉट द ग्रेटेस्ट ग्लू बिटविन टू पीपल, लव इज़।)
पूरी किताब इन्ही दो स्थापनाओं के बीच की कहानी है।
मैं शैली की इस किताब का नायक लेखक खुद ही लगते हैं, क्योंकि किताब के आखिरी पन्नों तक आते-आते नायक पोनी टेल वाला और दाढ़ी वाला हो जाता है। किताब प्रेम, कर्म, अर्थ, काम, सत्य के खंडों में बंटा है।
प्रेम से शुरूआत होती है, नायक और नायिका के हर पल के शारीरिक प्रेम से...इक दफा यौनसंबंध बनाने मे नाकाम नायक के साथ संबंध टूटने की शुरूआत होती है।
नायक लेखक ही है और उसकी नायिका फिज़ प्रेरणा। हर पल उसे लिखने की प्रेरणा देती हुई। इसी में बाद में आकर कैथरीन का प्रकरण भी जुड़ता है। शाही खानदान की गोरी अमेरिकन बहू अपने नौकर के साथ अराजक यौन संबंधों में लिप्त होती है। उस संबंध का अंत भी होता है।
इतिहास के एक टुकड़े को नायक जीता है और आखिरकार विभिन्न यौन आसनों, यौनांगो के विवरणों के बाद लेखक आखिरी पन्नों में स्थापित करता है कि सेक्स नहीं, प्रेम ही लोगों को जोड़ता है।
किताब की भाषा शैली सहज है, प्रवाहमान है। लेकिन कई जगह विवरण काफी बोझिल हो जाते हैं। और कई घटनाक्रम तो ऐसे हैं जिनका होना-न होना किताब के कथ्य पर कोई फर्क नहीं डालता। मसलन, एक लघु चित्र देने के लिए लेखक का अमेरिका जाना।
सबसे बेहतर है, नायक और फिज़ का आपसी रिश्ता। किताब में एक जगह नायिक लेखक के लिए रोज़मर्रा के कामकाज की तालिका बनाती है,
किताब की पहली पंक्ति की इस स्थापना से हैरत हुई। पढ़ता चला गया। कुछ ऐसा हुआ कि अंग्रेजी की किताब को लगातार पढ़ नहीं पाया। व्यस्तताओं का दौर था। लेकिन पूरा पढ़ा, तो आखिरी पंक्ति, पहली पंक्ति की एंटी-थीसिस लगी।
दो लोगों को बीच से जोड़ने वाला गोंद प्यार है, सेक्स नहीं। (सेक्स इज़ नॉट द ग्रेटेस्ट ग्लू बिटविन टू पीपल, लव इज़।)
पूरी किताब इन्ही दो स्थापनाओं के बीच की कहानी है।
मैं शैली की इस किताब का नायक लेखक खुद ही लगते हैं, क्योंकि किताब के आखिरी पन्नों तक आते-आते नायक पोनी टेल वाला और दाढ़ी वाला हो जाता है। किताब प्रेम, कर्म, अर्थ, काम, सत्य के खंडों में बंटा है।
प्रेम से शुरूआत होती है, नायक और नायिका के हर पल के शारीरिक प्रेम से...इक दफा यौनसंबंध बनाने मे नाकाम नायक के साथ संबंध टूटने की शुरूआत होती है।
नायक लेखक ही है और उसकी नायिका फिज़ प्रेरणा। हर पल उसे लिखने की प्रेरणा देती हुई। इसी में बाद में आकर कैथरीन का प्रकरण भी जुड़ता है। शाही खानदान की गोरी अमेरिकन बहू अपने नौकर के साथ अराजक यौन संबंधों में लिप्त होती है। उस संबंध का अंत भी होता है।
इतिहास के एक टुकड़े को नायक जीता है और आखिरकार विभिन्न यौन आसनों, यौनांगो के विवरणों के बाद लेखक आखिरी पन्नों में स्थापित करता है कि सेक्स नहीं, प्रेम ही लोगों को जोड़ता है।
किताब की भाषा शैली सहज है, प्रवाहमान है। लेकिन कई जगह विवरण काफी बोझिल हो जाते हैं। और कई घटनाक्रम तो ऐसे हैं जिनका होना-न होना किताब के कथ्य पर कोई फर्क नहीं डालता। मसलन, एक लघु चित्र देने के लिए लेखक का अमेरिका जाना।
सबसे बेहतर है, नायक और फिज़ का आपसी रिश्ता। किताब में एक जगह नायिक लेखक के लिए रोज़मर्रा के कामकाज की तालिका बनाती है,
5 comments:
बहुत बढ़िया.. सच में इ विषय पे चर्चा से अपन समाज बचैत रहैत या जाकर नुकसान बेसी ऐछ !
बहुत बढ़िया.. सच में इ विषय पे चर्चा से अपन समाज बचैत रहैत या जाकर नुकसान बेसी ऐछ !
हम मन को शरीर का अंग मानना बंद कर देते हैं और नये सिद्धान्तों की स्थापना में लग जाते हैं।
दो लोगों को बीच से जोड़ने वाला गोंद प्यार ही है, सेक्स नहीं... किताब पढने की उत्सुकता तो जगा दी इस आलेख ने पर आप से और बेहतर की उम्मीद रहती है.
अच्छी लगी किताब की समीक्षा।
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