Tuesday, December 10, 2013

नमो लहर से किसको इनकार है?

नरेन्द्र मोदी निश्चित रूप से ऐसे नेता है, जिनको लेकर कांग्रेस से लेकर तमाम दलों में अजीब सा अनिश्चय है। विधानसभा चुनाव के नतीजे आ ही रहे थे और रूझानों की दौर भी चल रहा था कि बुद्धिजीवियों के एक तबके ने मोदी की लहर को सिरे से इनकार करना शुरू कर दिया। अगर मोदी का विरोध करना है, और लोकतंत्र ऐसे ही चलता है, तो उऩकी कमजोरियों के साथ उनकी ताकत को भी समझना होगा। कांग्रेस और बाकी के दल जितनी जल्दी मोदी से मुंह छिपाने की बजाय उनकी लहर की वजहों को समझने की कोशिश करेंगी, 2014 में उनके लिए उतनी ही आसानी होगी।

8 दिसंबर को तमाम बुद्धिजीवियों ने मोदी की लहर से इनकार करते हुए दिल्ली और छत्तीसगढ़ के परिणामों की मिसालें दी। राजस्थान में कांग्रेस के खिलाफ लहर बताई और मध्य प्रदेश में यह सेहरा शिवराज के सिर बांधा। सच है कि दिल्ली और छत्तीसगढ़ में बीजेपी के वोट शेयर में कोई बढोत्तरी दर्ज नहीं की गई है।

दिल्ली में आम आदमी पार्टी के समर्थक और बीजेपी के विरोधी कहते रहे कि केजरीवाल और उनके दल ने बड़ो-बड़ों को धूल चटा दी। तर्क यह भी दिया गया कि राजस्थान और मध्य प्रदेश में बीजेपी की जीत के पीछे वहां आप जैसे किसी तीसरे विकल्प का न होना है।

चार राज्यों में चुनाव के नतीजे बाकी कुछ कहें, एक बात तो साफ है कि यहां कांग्रेस विरोधी लहर तो थी। राजस्थान और मध्य प्रदेश के आंकड़े मोदी लहर या नमो लहर की तस्दीक भी करते हैं। दिल्ली में भी जिन लोगों ने आप को विधानसभा के लिए वोट दिया है, लोकसभा में वो मोदी के पक्ष में मतदान करेंगे (ओपिनियन पोल इस आंकड़े को कुल वोटर का आधा, यानी पचास फीसद और आप का खुद का सर्वे एक तिहाई  कह गया है)

दिल्ली के त्रिकोणीय संघर्ष में कांग्रेस के विधायको की संख्या एक इनोवा कार में बैठकर विधानसभा तक जाने तक सीमित रह गई है (थोड़ी कोशिश से इनोवा में आठ लोग बैठ सकते हैं) वैसे बताते चलें कि आपातकाल के ऐऩ बाद हुए चुनाव में भी कांग्रेस को दिल्ली में 10 सीटें मिल गई थीं। तो हालात कांग्रेस के लिए सन सतहत्तर से भी बुरे हैं।

राजस्थान में पिछले तेरह चुनावो में कांग्रेस की औसत सीट संख्या 92 रही है। कांग्रेस अब तक के सबसे कम, यानी आपातकाल के बाद हासिल सीट संख्या से भी आधी रहकर 21 पर सिमट गई। बीजेपी का सबसे बुरा प्रदर्शन राज्य में 1980 में रहा था, जब वह 32 सीटें ही जीत पाई थी।

क्या राजस्थान में बीजेपी को इतनी बड़ी संख्या में इसलिए वोट पड़े क्योंकि वहां विकल्प के रूप में आप नहीं था?
उधर, मध्य प्रदेश में 2008 के अपने प्रदर्शन को और बेहतर करते हुए, बीजेपी ने 22 ज्यादा सीटें हासिल की हैं। हालांकि दिग्विजय सिंह साल 2003 में वहां सिर्फ 38 सीटें हासिल करके कांग्रेस को निम्नतम स्तर तक ले जा चुके हैं, लेकिन 58 सीटें भी बहुत नहीं होती।

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को 39 सीटें मिली है। आपातकाल के बाद 1977 के चुनाव में (संयुक्त मध्य प्रदेश के आंकड़ो के साथ) कांग्रेस को 36 सीटें मिली थीं।

दिल्ली में बीजेपी के सौ में छह वोटरों ने आप के लिए वोट किया है, लेकिन कांग्रेस के 36 फीसद वोटर आप की तरफ चले गए।

कल के पोस्ट में कुछ रैलियों और उसके असर का जायज़ा लेंगे कि आखिर, कांग्रेस रागा (राहुल गांधी) और भाजपाई नमो-नमो में किसका असर वोटरों पर ज्यादा पड़ता है, बांहे चढ़ाना ज्यादा असरदार है, ये केसरिया रंग।




2 comments:

Pravin Jha said...

सहमत हूँ आप से। वैसे जनता इतनी खिसियाई है और इतनी निराश है व्यवस्था से कि मोदी हो या केजरीवाल जिसके तरफ भी जायेगी जनता एकतरफा हवा बहेगी उस तरफ ...!!

प्रवीण पाण्डेय said...

जनमानस की भावनाओं की स्पष्ट थाप को सुनना होगा इसके बाद।