मैं जापान गया था और बुलेट ट्रेन देख रहा था, तो इसके
बरअक्स मेरे जेह्न में दो-तीन ट्रेनें कौंध गई थीं। पहली, दिल्ली वाली मेट्रो, जो
चलती तो धीमी हैं लेकिन शहरी सार्वजनिक परिवहन की बढ़िया मिसाल हैं।
दूसरी, हमारी
सामान्य रेलगाड़ियां, जो लेटलतीफी का पर्याय बनी हुई हैं। खासकर, जिन पर चढ़कर,
सॉरी लदकर और ठुंसकर बिहारियों-यूपी वालों की भीड़ अपने घर को जाती है, कभी दिवाली
पर कभी छठपूजा में।
तीसरी ट्रेन है, मेरे गृहनगर मधुपुर से आसनसोल को चलने वाली
डीएमयू ट्रेनें, जिनमें रोजाना चलने वाले मुसाफिर चढ़ते हैं, जिनकी खिड़कियों में
साइकिलें और दूध के डब्बे लटके होते हैं।
लेकिन इन सबसे ज्यादा याद आई मुझे जयनगर से जनकपुर के बीच
चलने वाली ट्रेन की।
जिनको नहीं पता, वैसे लोगों के लिए बता दें कि जयनगर बिहार
में है, नेपाल की सरहद पर है और यहां तक भारतीय रेल से पहुंचने के बाद, जनकपुर-जो
कि नेपाल में है-तक पहुंचने का एक मात्र ज़रिया यही ट्रेन है।
नेपाल जाने के लिए पासपोर्ट और वीज़ा की ज़रूरत नहीं होती,
बल्कि उससे कहीं अधिक मशक्कत करनी होती है।
पहली मशक्कत टिकट लेने के लिए होती है। ट्रेन में कुल सात डब्बे हैं तो मुसाफिरों की जबरदस्त भीड़ होती है। जनरल बोगी में, जब मैं पिछली दफा गया था, तो बीस नेपाली रूपये का टिकट है। इस क्लास का टिकट आप नहीं ले पाएंगे। बता दें, कि एक भारतीय रूपया नेपाली एक रूपये साठ पैसे के बराबर होता है।
दूसरा विकल्प है, पहली श्रेणी का टिकट लेना। इसकी कीमत, पचास नेपाली रूपये है। इसका टिकट तो, मैं शर्त बद सकता हूं, आप क़त्तई नहीं ले पाएंगे। इन दोनों में से कोई भी टिकट आप ले पाएं, तो चैंपियन समझिए।
यही है अलबेली रेल, जयनगर से जनकपुर। फोटो सौजन्यः मधेशी प्राइड |
नैरोगेज की यह ट्रेन
खिलौना ट्रेन से अधिक कुछ नहीं। यानी, रेल पटरी की कुल चौड़ाई 76 सेंटीमीटर है।
भारत और नेपाल के बीच इस रेल मार्ग की शुरूआत साल 1928 में
हुई थी। वैसे तो इस रेललाईन की कुल लंबाई 51 किलोमीटर है, और रेल की पटरी जनकपुर
नहीं, बल्कि उससे आगे बीजलपुरा तक जाती है। लेकिन कई दशकों से ट्रेन जनकपुर तक ही
जाती है। जितना मुझे याद है, मैंने अपने बचपन से आजतक इस ट्रेन को जनकपुर से आगे
नहीं जाते देखा।
मेरा ननिहाल जनकपुर के पास है, इसलिए इस ट्रेन से मेरा बचपन
का नाता है।
मुझे याद है कि पहले इस रेल का संचालन ट्रांसपोर्ट
कॉरपोरेशन ऑफ नेपाल-जनकपुर रेलवे करती थी। लेकिन साल 2004 से इस कंपनी का
सरकारीकरण कर दिया गया, और कंपनी का नाम नेपाल रेलवे कॉरपोरेशन लिमिटेड कर दिया
गया।
इस रूट पर सिर्फ पैसेंजर ट्रेन चलती है। माल ढुलाई नहीं
होती। वैसे, मेरा तजुर्बा तो यही है कि भारत के चिड़ियाघरों में चलने वाली खिलौना
ट्रेनों से भी सुस्त यह गाड़ी चल भी कैसे पा रही है।
सात डिब्बे, हमेशा ठसाठस भरे। नेपाल के जनकपुर और आसपास के
लोग खरीदारी करने जयनगर आते हैं। सिर्फ यही नहीं, नेपाल का मधेसी इलाका और मिथिला सांस्कृतिक
रूप से बेहद नजदीक हैं और उनमें रोटी-बेटी का रिश्ता भी है।
ऐसे में आवागमन बेहद महत्वपूर्ण है। हालांकि, अच्छे भले
लड़कों की कीमत (दहेज) सिर्फ इसलिए कम हो जाती हैं अगर लड़की भारत से हो और लड़का
नेपाल से।
बहरहाल, यह रेल लाईन दो खंडो में बंटी हुई है। जयनगर से
जनकपुर 28.8 किलोमीटर और जनकपुर से बीजलपुरा 22 किलोमीटर।
जनकपुर से बीजलपुरा के बीच यातायात बहुत दिनों से बंद है।
इतनी जानकारी मैंने इसलिए दी है ताकि आपको यह पता चले कि
आखिर यह रेललाईन आखिर है क्या बला...बाकी मेरे बचपन के कुछ तजुर्बे हैं, जो अगली
पोस्ट में शेयर करूंगा।
4 comments:
भाईजान, बचपन में हम इस ट्रेन से गए थे-तो देखते थे कि लोगबाग खेतों से चना तोड़ लाते थे और फिर से चढ जाते थे। कई लोग तो दिशा-मैदान हो आते थे और फिर चढ जाते। लेकिन सुना है और थोड़ी तेज चलती है।
चित्र मनमोहक है, सफर रोचक होता होगा।
हम भी कई बार गए हैं इस ट्रेन से जनकपुर। सुबह सकरी जंक्शन से ट्रेन पकड़ के जय नगर पहुँचते थे और फिर इस ट्रेन से जनकपुर। कई यादें मेरी भी हैं। अंतिम बार अपने साले की शादी में जनकपुर गए थे तब इसी ट्रेन से जयनगर लौटे थे बोलेरो छोड़ के।
काफी रोमांचक यात्रा रही होगी, कभी-कभी आधुनिकता बीच ऐसा अनुभव अच्छा लगता है। साथ में इतनी ढेर रोचक जानकारी …बहुत खूब .
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