Saturday, February 20, 2016

आभूषण उद्योग की फीकी पड़ती चमक

सामान्य ज्ञान की किताबों में हम-आप बरसों से पढ़ते आ रहे हैं कि भारत के निर्यात में बड़ा हिस्सा रत्न और आभूषण उद्योग का है। इस उद्योग में करीब बीस लाख लोग सीधे या परोक्ष रूप से रोज़गार पाते हैं। लेकिन देश के विदेशी मुद्रा भंडार में हर साल करीब 16 फीसद का योगदान करने वाला रत्न और आभूषणों का कारोबार इन दिनों मंदी की मार से ठिठका हुआ है। बाज़ार के जानकारों को उम्मीद थी कि साल 2016 तक रत्न और आभूषणों का भारतीय निर्यात करीब 58 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचेगा। हम भारतीय भी गहनों और रत्नों के बड़े खरीदार हैं लिहाजा घरेलू कारोबार के भी 40 अरब डॉलर के स्तर तक पहुंचने की उम्मीद की जा रही थी। लेकिन अब इस उद्योग को थोड़े संरक्षण की दरकार लग रही है।

जयपुर रत्नों और आभूषणों का बड़ा केन्द्र माना जाता रहा है। वहां घर-घर में आभूषणों की कटाई का काम चलता है। लेकिन नई पीढ़ी को इस उद्योग में कम रूचि है, क्योंकि नफे का मार्जिन कम होता जा रहा है।

भारत में रत्नों का कटाई का कारोबार श्रम आधारित है। इसका मतलब हुआ कि इस काम में बड़े पैमाने पर मजदूर लगे हुए हैं। लेकिन इस उद्योग में भी चीन का हौव्वा आन खड़ा हुआ है। भारत में जितनी देर में एक रत्न की कटाई होती है, चीन में उतनी ही देर में मशीनों से सौ रत्नों की कटाई कर दी जाती है। यह बात और है कि कटाई में महीन काम भारत में ही मुमकिन है। और मशीनों से जिन रत्नों की कटाई की जाती है उनमें वो खास बात पैदा नहीं होती है। शायद इसलिए भारत का रत्न उद्योग अभी तक बाजार में टिका हुआ है। लेकिन अब चीन के हौव्वे से मुकाबला करने के लिए तकनीक का साथ चाहिए तो सस्ती बिजली की मांग भी उत्पादक कर रहे हैं।

सस्ती बिजली की जरूरत इसलिए भी है कि कुटीर उद्योग के रूप में रत्नों की कटाई करने वाले परिवार 8 रूपये यूनिट की दर से बिजली की कीमत चुकाने के बाद अपने लिए कुछ खास बचा नहीं पाते।

अब इस उद्योग को स्पेशल टर्नओवर टैक्स में छूट मिलने की उम्मीद है। सरकार ने 2 लाख रूपये के हर लेनदेन के लिए पैन कार्ड की जरूरत को जरूरी बना दिया है। पहले यह सीमा 5 लाख रूपये थी। यह रोक इस साल की पहली जनवरी साथ ही लागू हुआ है और इससे कारोबार पर उलटा असर हुआ है और लेनदेन करीब बीस फीसद तक कम हो गया है।

रत्न और आभूषणों के कारोबार को आप सिर्फ बड़े लोगो का कारोबार न मानिए। इसमें ऐसे लोग भी लगे हैं जिनकी दो जून को रोटी भी बमुश्किल मिल जाती है। दुनिया भर में आई मंदी से रत्न और आभूषण कारोबार को झटका लगा है। ऐसे में निर्यात में अव्वल रहे इस उद्योग को बढ़ावा देने के वास्ते बाहर से आने वाले तैयार आभूषणों पर आयात शुल्क बढ़ाना उद्योग के लिए मरहम का काम करेगा। गौरतलब है कि सोने के आभूषणों पर मौजूदा आयात शुल्क 15 फीसद और चांदी पर 20 फीसद है लेकिन निर्यातकों की मांग है कि इसे बढ़ाकर 20 और 25 फीसद किया जाए।

इसके साथ ही रत्न कारोबारियों की मांग है कि इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए वित्त मंत्री इसे फौरी तौर पर टैक्स में कुछ छूट दें।

आखिर, सोने पर आय़ात शुल्क 10 फीसद है। इसे कम करने के बाद आभूषण निर्माताओं को कच्चे माल पर लागत कम करने में मदद मिलेगी।

आखिर, सोन-चांदी और रत्नों को बाहर से मंगाकर भारत में तैयार किया जाता है और इन तैयार माल को दुबई, सिंगापुर, बैंकाक, जर्मनी, रूस और फ्रांस जैसे कई देशों को भेजा जाता है। जाहिर है, भारत में हम सिर्फ उत्पाद तैयार करते हैं। इस लिहाज से यह कारोबार मेक इन इंडिया की बेहतरीन मिसाल है। इसलिए केन्द्र सरकार को बजट में इसके लिए कुछ करना ही चाहिए। आखिर इस उद्योग में रोज़गार की भी अपार संभावनाएं जो हैं।


मंजीत ठाकुर

1 comment:

इंतज़ार said...

यह बिलकुल उसी प्रकार है जैसे खादी। खादी मैं भी गाँव देहात के श्रमिक जुड़े होते हैं, किंतु यह इतनी महंगी है कि बुनकर इसे खरीद ही नहीं पाते। आभूषणों के मामले में भी यही है।