एक फिल्म थी पान सिंह तोमर जिसमें पान सिंह कहता है कि चंबल में डकैत नहीं होते, बाग़ी होते हैं। लेकिन चुनावों के मद्देनज़र अगर चित्रकूट इलाके में इन डकैतों की सियासी चहलकदमी देखें तो कहा जा सकता है कि इस इलाके में डकैत नहीं, सियासत में घुसने की तमन्ना भी होती है।
यह बात और है कि खुद ददुआ ने अपने परिवार को और बाद में ठोकिया ने भी अपने परिवार को सियासत की राह दिखाई और दोनों ही इस इलाके के नामी और इनामी डकैत रहे हैं।
चित्रकूट और आसपास के इलाके में पिछले तीन दशकों से डकैतों का राजनीति में प्रभाव रहा है। ददुआ यही कोई चार दशक पहले जरायम के पेशे में उतरा था और उसने इस इलाके में काफी आतंक मचाया था।
साल 1977-78 के आसपास अपने आंतक का राज कायम किया और सियासत में हर कोई उसके असर को अपने पक्ष में करना चाहता था। उसका राजनीति में इतना दखल था कि ग्राम प्रधान से लेकर सांसद तक, हर कोई चुनाव जीतने के लिए उसका आशीर्वाद चाहता था।
सबसे पहले कम्युनिस्ट पार्टी के रामसजीवन सिंह पटेल ने ददुआ के सहयोग से विधानसभा का चुनाव जीता था, पहले उनकी सीट कर्वी हुआ करती थी, बाद में चित्रकूट सीट हो गई। अगले दो चुनाव तक ददुआ की मदद कम्युनिस्ट पार्टी को मिलती रही।
उधर ददुआ ने मानिकपुर सीट पर दद्दू प्रसाद को मदद दी और वह लगातार तीन बार विधायक रहे। वह बीएसपी के थे।
1993 में कर्वी सीट पर आर के पटेल बीएसपी ने ददुआ का सहयोग लिया। इनका राजनीति में उदय तो हुआ लेकिन पहला चुनाव हार गए थे। 1996 से दो बार लगातार विधायक रहे, लेकिन उस समय ददुआ का नारा थाः वोट पड़ेगा हाथी पर, नहीं तो गोली खाओ छाती पर।
साल 2007 में भी इस सीट से बीएसपी ही जीती, लेकिन बीएसपी से टिकट मिला था दिनेश प्रसाद मिश्र को, जो ददुआ के सफाए के नारे पर वोट मांगने पहुंचे और चुनाव जीत भी गए। 2007 के चुनाव के बाद ददुआ पुलिस मुठभेड़ में मारा गया। उनसे पहले कर्वी सीट पर जीत रहे आर के पटेल तब तक समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे और चुनाव हार गए। 2009 में पटेल ने लोकसभा का चुनाव सपा के टिकट पर जीता, लेकिन तब तक ददुआ मारा जा चुका था।
ददुआ के बाद इलाके में एक नए डकैत ठोकिया का आंतक कायम हो चुका था और सियासत में भी उसकी चलती बढ़ गई। ठोकिया ने अपने परिवार के लोगों को सियासत में उतारा और ज्यादातर अपने सजातीय उम्मीदवारों का ही समर्थन किया। उसने इस मामले में कभी बसपा को तो कभी सपा को समर्थन किया।
इलाके के तीन बड़े नेताओ आर के पटेल, रामसजीवन पटेल और दद्दू प्रसाद पर ददुआ को संरक्षण देने का मुकदमे भी दर्ज हुए थे।
आज की तारीख में यानी 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में ददुआ के समर्थने में जीतने वाले विगत के सारे प्रत्याशी जो कभी बसपा में थे, आज चार विभिन्न दलों से मैदान में है। सभी एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं।
इनमें से दो, आर के पटेल और दद्दू प्रसाद बसपा के सरकार में मंत्री भी रह चुके हैँ। इलाके में आतंक का पर्याय बन चुका ठोकिया 2008 में बसपा के शासनकाल में ही मार गिराय गया, लेकिन तब तक इलाके में नया डकैत बबली उभर चुका था। ददुआ, ठोकिया, रागिया, गुड्डा और बबली और गुप्पा ये सभी इस इलाके में सियासत में खासी दखल देते रहे हैं।
जब से उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव का बिगुल बजा, तभी से चित्रकूट और उसके आस-पास के क्षेत्रों में डकैतों ने अपनी चहलकदमी बढ़ा दी है। ददुआ, ठोकिया, बलखडिया और रागीया जैसे कुख्यात दस्यु सरगनाओं के खात्मे के बावजूद चुनाव में अपनी हनक दिखाने को लेकर चित्रकूट के कई इलाकों पर इनामी डकैतों में भी स्पर्धा है।
चित्रकूट जिले के चार इनामी सरगनाओं में बबली कोल, गोपा यादव, गौरी यादव और ललित पटेल ने अपने-अपने उम्मीदवारों को जिताने के लिए फतवे देने शुरू कर दिए हैं। मानिकपुर मऊ के जंगलों में इनका आना-जाना बढ़ गया है।
इलाके के लोगों का कहना है कि डकैतों ने पहले तो समझा-बुझाकर वोटरों को अपने-अपने प्रत्याशी को जिताने की बात कही है। कुछ ने धमकी भरे शब्दों का प्रयोग भी शुरू कर दिया है। ग्रामीणों के अनुसार बबुली, गौरी यादव, गोपा यादव और ललित पटेल गिरोह के बदमाश गांवों के चक्कर काट रहे है।
चित्रकूट की दोनों विधानसभाओं में लड़ने वालों में एक तरफ कुख्यात डकैत ददुआ का पुत्र वीर सिंह पटेल समाजवादी पार्टी से कर्वी विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी है। वहीं मऊ मानिकपुर विधानसभा से डकैतों का संरक्षण लेने के आरोपी रहे दद्दू प्रसाद, आर के सिंह पटेल, चंद्रभान सिंह पटेल चुनाव मैदान में हैं।
ठीक है, कि कभी पान सिंह तोमर में इरफान ने कहा था कि बीहड़ में बाग़ी होते हैं और डकैत तो संसद में होते हैं और हम सब को यह बात नागवार गुज़री थी, लेकिन कम से कम इतना तो कहा ही जा सकता है कि बाग़ी भले ही चित्रकूट के जंगल में हो लेकिन यूपी विधानसभा के कई सदस्य उनकी मदद लेकर ही विधायकी पाते हैं।
यह बात और है कि खुद ददुआ ने अपने परिवार को और बाद में ठोकिया ने भी अपने परिवार को सियासत की राह दिखाई और दोनों ही इस इलाके के नामी और इनामी डकैत रहे हैं।
चित्रकूट और आसपास के इलाके में पिछले तीन दशकों से डकैतों का राजनीति में प्रभाव रहा है। ददुआ यही कोई चार दशक पहले जरायम के पेशे में उतरा था और उसने इस इलाके में काफी आतंक मचाया था।
साल 1977-78 के आसपास अपने आंतक का राज कायम किया और सियासत में हर कोई उसके असर को अपने पक्ष में करना चाहता था। उसका राजनीति में इतना दखल था कि ग्राम प्रधान से लेकर सांसद तक, हर कोई चुनाव जीतने के लिए उसका आशीर्वाद चाहता था।
सबसे पहले कम्युनिस्ट पार्टी के रामसजीवन सिंह पटेल ने ददुआ के सहयोग से विधानसभा का चुनाव जीता था, पहले उनकी सीट कर्वी हुआ करती थी, बाद में चित्रकूट सीट हो गई। अगले दो चुनाव तक ददुआ की मदद कम्युनिस्ट पार्टी को मिलती रही।
उधर ददुआ ने मानिकपुर सीट पर दद्दू प्रसाद को मदद दी और वह लगातार तीन बार विधायक रहे। वह बीएसपी के थे।
1993 में कर्वी सीट पर आर के पटेल बीएसपी ने ददुआ का सहयोग लिया। इनका राजनीति में उदय तो हुआ लेकिन पहला चुनाव हार गए थे। 1996 से दो बार लगातार विधायक रहे, लेकिन उस समय ददुआ का नारा थाः वोट पड़ेगा हाथी पर, नहीं तो गोली खाओ छाती पर।
साल 2007 में भी इस सीट से बीएसपी ही जीती, लेकिन बीएसपी से टिकट मिला था दिनेश प्रसाद मिश्र को, जो ददुआ के सफाए के नारे पर वोट मांगने पहुंचे और चुनाव जीत भी गए। 2007 के चुनाव के बाद ददुआ पुलिस मुठभेड़ में मारा गया। उनसे पहले कर्वी सीट पर जीत रहे आर के पटेल तब तक समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे और चुनाव हार गए। 2009 में पटेल ने लोकसभा का चुनाव सपा के टिकट पर जीता, लेकिन तब तक ददुआ मारा जा चुका था।
ददुआ के बाद इलाके में एक नए डकैत ठोकिया का आंतक कायम हो चुका था और सियासत में भी उसकी चलती बढ़ गई। ठोकिया ने अपने परिवार के लोगों को सियासत में उतारा और ज्यादातर अपने सजातीय उम्मीदवारों का ही समर्थन किया। उसने इस मामले में कभी बसपा को तो कभी सपा को समर्थन किया।
इलाके के तीन बड़े नेताओ आर के पटेल, रामसजीवन पटेल और दद्दू प्रसाद पर ददुआ को संरक्षण देने का मुकदमे भी दर्ज हुए थे।
आज की तारीख में यानी 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में ददुआ के समर्थने में जीतने वाले विगत के सारे प्रत्याशी जो कभी बसपा में थे, आज चार विभिन्न दलों से मैदान में है। सभी एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं।
इनमें से दो, आर के पटेल और दद्दू प्रसाद बसपा के सरकार में मंत्री भी रह चुके हैँ। इलाके में आतंक का पर्याय बन चुका ठोकिया 2008 में बसपा के शासनकाल में ही मार गिराय गया, लेकिन तब तक इलाके में नया डकैत बबली उभर चुका था। ददुआ, ठोकिया, रागिया, गुड्डा और बबली और गुप्पा ये सभी इस इलाके में सियासत में खासी दखल देते रहे हैं।
जब से उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव का बिगुल बजा, तभी से चित्रकूट और उसके आस-पास के क्षेत्रों में डकैतों ने अपनी चहलकदमी बढ़ा दी है। ददुआ, ठोकिया, बलखडिया और रागीया जैसे कुख्यात दस्यु सरगनाओं के खात्मे के बावजूद चुनाव में अपनी हनक दिखाने को लेकर चित्रकूट के कई इलाकों पर इनामी डकैतों में भी स्पर्धा है।
चित्रकूट जिले के चार इनामी सरगनाओं में बबली कोल, गोपा यादव, गौरी यादव और ललित पटेल ने अपने-अपने उम्मीदवारों को जिताने के लिए फतवे देने शुरू कर दिए हैं। मानिकपुर मऊ के जंगलों में इनका आना-जाना बढ़ गया है।
इलाके के लोगों का कहना है कि डकैतों ने पहले तो समझा-बुझाकर वोटरों को अपने-अपने प्रत्याशी को जिताने की बात कही है। कुछ ने धमकी भरे शब्दों का प्रयोग भी शुरू कर दिया है। ग्रामीणों के अनुसार बबुली, गौरी यादव, गोपा यादव और ललित पटेल गिरोह के बदमाश गांवों के चक्कर काट रहे है।
चित्रकूट की दोनों विधानसभाओं में लड़ने वालों में एक तरफ कुख्यात डकैत ददुआ का पुत्र वीर सिंह पटेल समाजवादी पार्टी से कर्वी विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी है। वहीं मऊ मानिकपुर विधानसभा से डकैतों का संरक्षण लेने के आरोपी रहे दद्दू प्रसाद, आर के सिंह पटेल, चंद्रभान सिंह पटेल चुनाव मैदान में हैं।
ठीक है, कि कभी पान सिंह तोमर में इरफान ने कहा था कि बीहड़ में बाग़ी होते हैं और डकैत तो संसद में होते हैं और हम सब को यह बात नागवार गुज़री थी, लेकिन कम से कम इतना तो कहा ही जा सकता है कि बाग़ी भले ही चित्रकूट के जंगल में हो लेकिन यूपी विधानसभा के कई सदस्य उनकी मदद लेकर ही विधायकी पाते हैं।
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