मूलतः विस्थापन और वंचित इलाकों के विकास को केंद्र में रखकर लिखी गई मेरी किताब 'ये जो देश है मेरा', पर मेरे मित्र और अच्छे कथाकार विनय कुमार ने अपनी प्रतिक्रिया फेसबुक पर लिखी है, आप सबके साथ साझा करने का लालच नहीं रोक पा रहा. उन्हीं के शब्दः
यह तो पहले से ही मालूम था कि 'ये जो देश है मेरा' न तो उपन्यास है और न ही कोई दिलचस्प कहानी संग्रह, लेकिन एक रिपोर्ताज भी आपको इतना प्रभावित करती है और अगर दूसरे शब्दों में कहें तो पढ़ने के बाद इतना विचलित कर देती है तो इसका मतलब साफ है, लेखक अपनी बात को उसी शिद्दत से कहने में सफल है, जितनी शिद्दत से उसने इसे रचा है.
पांच खंडों वाली इस किताब 'ये जो देश है मेरा' को पढ़ना एक अलग हिंदुस्तान से रूबरू होना है जिससे आम मध्यमवर्गीय और उच्चवर्गीय जनमानस बड़ी आसानी से अपना मुंह फेर लेता है.
आज के तथाकथित विकसित हिंदुस्तानी समाज के एक ऐसे वर्ग के बारे में यह किताब 'ये जो देश है मेरा' न सिर्फ बताती है बल्कि पूरी ईमानदारी से हमें उन लोगों और उन क्षेत्रों से परिचित भी कराती है, जिसके विकास के नाम पर आज भी राजनीतिज्ञ अपनी दुकान चला रहे हैं और जिन्हें सरकारी तंत्र भी बड़ी आसानी से भुला देता है. और अगर यह लोग अपनी जायज मांगों के लिए आंदोलन करते हैं तो उसे बड़ी आसानी से नक्सली आंदोलन बताकर बेरहमी से कुचल दिया जाता है.
ये जो देश है मेरा |
'ये जो देश है मेरा' किताब का पहला खंड ही पानी की कमी का ऐसा भयावह चित्र प्रस्तुत करता है कि दिल भविष्य के आसन्न संकट को लेकर कांप उठता है. 'ये जो देश है मेरा' के पांचों खंड अलग अलग भौगोलिक क्षेत्रों के बारे मे तथाकथित विकास का भयावह पहलू दिखाते हैं जिनके बारे मे कुछ करना तो दूर, सरकार सोचना भी गंवारा नहीं करती.
कहीं कहीं किताब थोड़ी बोझिल भी हो जाती है लेकिन तथ्यों की ऐसी पड़ताल पढ़कर लेखक की मेहनत के बारे मे अंदाजा हो जाता है.
कुल मिलाकर 'ये जो देश है मेरा' हर गंभीर पाठक के लिए पठनीय और संग्रहणीय किताब है जिसके लिए श्री मंजीत ठाकुर बधाई के पात्र हैं.
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