2019 का साल अति प्राकृतिक घटनाओं का साल रहा. अतिवृष्टि, लू के थपेड़े और चक्रवातों के बाद बारी हिमपात और शीतलहर. पर अब सर्दियों में हुई ठीक-ठाक बारिश से इस बार रबी की फसल बढ़िया होने की उम्मीद जगी है. सरकार की कोशिश अब इसके जरिए मंदी से निपटने की होनी चाहिए
लेकिन 2019 में मौसम से जुड़े मामले कुछ ठीक नहीं रहे थे.
2019 का साल अति प्राकृतिक घटनाओं का साल रहा. देश को लू के थपेड़ों के बाद अतिवृष्टि, और चक्रवातों के बाद बारी हिमपात और शीतलहर का सामना करना पड़ा था. पर अब सर्दियों में हुई ठीक-ठाक बारिश से इस बार रबी की फसल बढ़िया होने की उम्मीद जगी है. सरकार की कोशिश अब इसके जरिए मंदी से निपटने की होनी चाहिए
पिछले 25 साल के मुकाबले हालांकि, मॉनसून अधिक रहा था और मानक बरसात से 110 फीसद अधिक बारिश हुई थी. गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र को बाढ़ का सामना करना पड़ा था. इसके साथ ही कुल मिलाकर 9 चक्रवातीय तूफान भी आए थे. यही नहीं, करेला नीम पर तब चढ़ा जब दिसंबर महीने में उत्तर भारत में शीतलहर की सबसे लंबी अवधि भी रिकॉर्ड की गई. हिमालयी राज्य़ों में अक्तूबर से लेकर दिसंबर तक भारी हिमपात भी दर्ज किया गया. पिछले साल अप्रैल से जून के महीने में मॉनसून से पहले भारी लू भी चली थी. जबकि, मॉनसून के बाद अक्तूबर से दिसंबर तक की अवधि में अतिवृष्टि भी हुई.
हालांकि इस बढ़िया बरसात ने देश के जलाशयों का पेट भर दिया है. इसका असर रबी की अच्छी बुआई पर पड़ा था. मिट्टी में नमी की मौजूदगी ने फसल उत्पादकता पर भी असर डाला है. और इस बार इस असर को सकारात्मक मानना चाहिए. हालांकि, रबी की पैदावार पर सर्दियों का तापमान भी प्रभावित करता है और अच्छा जाड़ा पड़ने से वह भी सकारात्मक ही रहा है.
स्काइमेट की रिपोर्ट के मुताबिक, गेहूं की पैदावार में इस सीजन में करीबन 10.6 फीसद की बढ़ोतरी होगी और पिछले सीजन के 10.21 करोड़ टन के मुकाबले इस बार उपज 11.30 टन के आसपास रहने की उम्मीद है.
मौसम के मद्देनजर चने और धान की पैदावार में भी बढ़ोतरी होगी. तिलहन की फसल भी अच्छी होने की उम्मीद है जिससे खाद्य तेलों की मौजूदा महंगाई को थामा जा सकेगा. जाहिर है, किसानों की परेशानी के दौर में यह एक बढ़िया खबर तो है पर आगे की भूमिका सरकार को निभानी होगी जो किसानों की उपज को सही तरीके से खरीदे. किसानों के पास क्रयशक्ति बढ़ेगी तो बाजार में छाई मंदी से भी निपटा जा सकेगा.
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