Friday, May 15, 2020

देवघरः बाबा बैद्यनाथ धाम का इतिहास और भूगोल भाग - 2

देवघरः बाबा बैद्यनाथ धाम का इतिहास और भूगोल भाग - 2

बाबा बैद्यनाथ धाम यानी देवघर के श्रद्धा केंद्र बनने की और मानव शास्त्रीय जो ब्योरे हैं उनके बारे में बात की जाए, तो देश के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक रावणेश्वर महादेव का यह मंदिर ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दोनों महत्व का है. यहां से सुल्तानगंज करीबन 112 किलोमीटर है, जहां से गंगाजल लेकर कांवरिए सावन के महीने में शिवजी का जलाभिषेक करते हैं. दुनिया का यह सबसे लंबा मेला भी है. 

वैसे मिथिला के लोग सावन में जलाभिषेक करने नहीं आते, वे लोग भादों में आते हैं. ऐसा क्यों है इसकी चर्चा हम बाद में करेंगे.

प्रसिद्ध इतिहासकार राजेंद्र लाल मित्रा, जिनके नाम पर देवघर के जिला स्कूल का नामकरण भी आर.मित्रा हाइस्कूल किया गया है और बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर से थोड़ी ही दूरी पर है, ने 1873 में अपनी रिपोर्ट में देवघर के भूगोल का वर्णन करते हुए लिखा हैः

“यह एक पथरीले मैदान पर अवस्थित है, इसके ठीक उत्तर में एक छोटा-सा जंगल है, इसके पश्चिमोत्तर में एक छोटी सी पहाड़ी है और इसका नाम नंदन पहाड़ है. एक बड़ी पहाड़ी इससे करीब 5 मील पूर्व में है जिसको त्रिकूट पर्वत कहते हैं और दक्षिण-पूर्व दिशा में जलमे और पथरू पहाड़ है, दक्षिण में फूलजोरी और दक्षिण-पश्चिम में दिघेरिया पहाड़ हैं. इन सबकी दूरी मंदिर से अलग-अलग है पर सब 12 मील की दूरी के भीतर हैं.”

हालांकि, आज के देवघर में बहुत कुछ बदल गया है और इस ब्योरे से मिलान करना चाहें तो आपको नंदन पहाड़ और त्रिकूट पर्वत के अलावा शायद ही कुछ मिलान हो सके, काहे कि सड़क और इमारतों ने भू संरचना को बदल कर रख दिया है.

हालांकि, जानकार लोगों ने बताया है कि मित्रा के ब्योरे मे थोड़ी तथ्यात्मक भूले भी हैं. मित्रा लिखते हैं कि देवघर के आसपास के सभी पहाड़ी इसके 12 मील की त्रिज्या के भीतर हैं, जबकि तथ्य यह है कि पथरड्डा और फुलजोरी पहाड़ियां शहर से 25 और 35 मील दूर हैं.

हां, मंदिर को लेकर मित्रा का विवरण सटीक है. मिसाल के तौर पर मित्रा का यह लिखना आज भी सही है कि
"बैद्यनाथ मंदिर शहर के ठीक बीचों-बीच है और यह एक अनियमित किस्म के चौकोर अहाते के भीतर है. इस परिसर के पूर्व दिशा में एक सड़क है, जो उत्तर से दक्षिण को जाती है और जो 226 फीट चौड़ी है, इसके दक्षिणी सिरे पर एक बड़े मेहराब के पास, ठीक उत्तर की तरफ हटकर एक दोमंजिला इमारत है जो संगीतकारों को रहने के लिए दिया जाता है. यह दरवाजा भी कुछ अधिक इस्तेमाल का नहीं है, क्योंकि इसका एक हिस्सा एकमंजिला इमारत की वजह से ब्लॉक हो गया है. दक्षिणी हिस्से में, जहां कई दुकानें हैं अहाते की लंबाई 224 फीट है. पश्चिम में लंबाई 215 फीट है और इसके बीच में एक छोटा दरवाजा है जो एक गली में खुलता है. पश्चिमोत्तर का बड़ा हिस्सा सरदार पंडा का आवास है, लेकिन पूर्वोत्तर की तरह एक बड़ा सा दरवाजा है, जिसके स्तंभ बहुत विशाल हैं. यही मंदिर का मुख्य दरवाजा है. सभी श्रद्धालुओं को इसी दरवाजे से अंदर जाने के लिए कहा जाता है. इस साइड की लंबाई 220 फीट है.’

बैद्यनाथ मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के अलावा 21 और भी मंदिर हैं जिनमें अलग-अलग देवी और देवताओं के विग्रह हैं. बैद्यनाथ मंदिर इस परिसर के केंद्र में है जिसका मुख पूर्व की तरफ है. अमूमन पुराने हिंदू मंदिरों के दरवाजे पूर्व की तरफ ही खुलते रहे हैं.

मुख्य मंदिर परिसर. फोटोः जोसेफ डेविड बेगलर, 1972-73 साभारः एएसआइ


मंदिर पत्थरों का बना है और इसकी ऊंचाई 72 फीट की है. इसकी सतह को चेक पैटर्न में उर्ध्वाधर और क्षैतिज रूप से काटा गया है. मंदिर का मुख्य गर्भगृह 15 फुट 2 इंच लंबा और 15 फुट चौड़ा है जिसका दरवाजा पूर्व की तरफ है.

इसके बाद एक द्वारमंडप है जिसकी छत नीची है और यब 35 फुट लंबा और 12 फुट चौड़ा है और यह दो हिस्सों में बंटा है. इसमें 4 स्तंभों की कतार है. कहा जाता है कि यह बाद में जोड़ा गया हिस्सा है. दूसरा द्वारमंडप या बारामदा थोड़ा छोटा है और इसे और भी बाद में बनाया गया.



बैद्यनाथ धाम परिसर का एक दूसरा मंदिर. फोटोः जोसेफ डेविड बेगलर. 1872-73 फोटो साभारः एएसआइ

गर्भगृह के अन्य तीन साइड खंभों वाले बारामदों से घिरे हैं. जिसमें ऐसे श्रद्धालु आकर टिकते हैं जो धरना देने आते हैं.

मंदिर में अपनी मन्नत मांगने के लिए लोग कई दिनों तक धरना देते हैं और यह बाबा बैद्यनाथ मंदिर की खास परंपरा है. गर्भगृह में काफी अंधेरा होता है और गर्भगृह के सामने का द्वारमंडप भी गर्भगृह जैसा ही है. जिसकी फर्श बैसाल्ट चट्टानों की बनी है.

गर्भगृह के प्रवेश द्वार के बाईं तरफ एक छोटा सी अनुकृति उकेरी हुई है. आप खोजेंगे तो पूरे मंदिर परिसर में आपको 12 ऐसी अनुकृतियां दिख जाएंगी. यही अनुकृतियां खासतौर पर बैद्यनाथ मंदिर के बारे में ऐतिहासिक जानकारी के स्रोत हैं और इन्हीं के आधार पर पूरे संताल परगना के इतिहास की भी झलक मिलती है.

जारी...


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Joseph David Beglar c.1872-73 and forms part of the Archaeological Survey of India Collections.

1 comment:

Roli Abhilasha said...

संग्रहणीय लेख!