Wednesday, August 6, 2008

ये दोस्ती हम... नहीं...तोडेगें

कहते हैं जिंदगी छोटी है और दोस्तों का होना अपने आप में बड़े भाग्यवान् होने का परिचायक है। पिछले रविवार को मित्रता दिवस था तो लगा कि दोस्तों से दुनिया को परिचित करवाने का इससे बढिया मौका तो मिल ही नहीं सकता। कई मित्र हुए हैं, जिन्हें भलना मेरे लिए ताउम्र मुमकिन नहीं होगा।

मेरे घर में एक किराएदार परिवार था। पति राजनीति शास्त्र के और पत्नी हिंदी की प्रफेसर। दोनों की दूसरी शादी। उन्हें शहर भर में कोई किराए पर घर देने को तैयार नहीं। तलाकशुदा होना और दूसरी शादी करना जघन्य अपराध था उन दिनों खासकर मधुपुर जैसे छोटे क़स्बे में। उनके दोनों के मिलाकर छद बच्चे। छोटा था पीयूष.. जिनकी प्रेम कहानी से मैं पाठकों को पहले ही परिचित करवा चुका हूं। मेरी और उसकी सोच, आदतें वगैरह मिलती थीं.. दोनो दुनिया भर के आवारा थे।

कलात्मक चीजें इकट्ठा करना और नागराज, परमाणु, सुपर कमांडो ध्रुव की कॉमिक्स पढना दोनो का शगल.. साथ में नंदन. पराग और सुमन सौरभ जैसी पत्रिकाओं का शौक। एक अलगाव दोनों मे ये था कि वह बाद में कला पढ़ता गया.. बाद में फाइन आर्ट में एम एफ ए भी किया.. मैं साइंस की ओर झुका था।

दूसार अंतर था दोनो ंदोस्तो ंमें कि उसे एक ही लड़की से मुहब्बत हुई और मुहब्बत मरे लिए खैरात की तरह था उन दजिनों जिसे मैं मुक्त हस्त लड़कियों में बांटता था। अर्थात्, मेरी कई प्रेम कहानियां निबटीं। इस मित्र से संपर्क आज भी है, दूरियां बढीं लेकिन दिलों में कायम न हो पाई हैं।

बारहवीं के दौरान दूसरा मित्र मिला आलोक रंजन, विवेकानंद का अनुयायी.. इसे लड़कियों को देखकर की कंपकंपी लगती थी। एक जगह टिक कर पढ़ने की आदत मुझमें आलोक ने डाली .. हॉस्टल में मेरा रुम मेट था। कई बार उकसा कर और इसकी तरफ से प्रेम पत्र लिखकर मैंने इसकी गाड़ी पटरी पर चढ़ाने की कोशिश की लेकिन बच्चा लड़की को बहनजी कहकर आ जाता। बाद मे कई घंटों तक दुर्गा सप्तशती का पाठ करता। उसेक घर से उसके पिता हॉर्लिक्स भेजते, उसे मैंने सूखा ह़र्लिक्स फांकना सिखाया, आलोक आजतक इस बात पर पछताता है कि क्यों उसने मेरी बात मानी, क्योंकि आज भी उसकी ह़र्लिक्स फांकने की आदत गई नहीं है। मुझे इस बात का संतोष है कि कम से कम एक छात्र मेरा ऐसा है जो मेरी सीख से आज तक पीछा नहीं छुडा़ पाया है।

बाद में एक और मित्र एग्रीकल्चर की पढाई के दौरान मिली, जिसका अहसान मैं आज भी मानने को तैयार हूं क्यों कि खेत की मिट्टी लगी जींस पैंट वगैरह वह बड़े प्यार से धो दिया करती। बड़े शौक से धोती..उसका चेहरा मुझे तब भी और अब भी मौसमी चटर्जी की तरह दिखता रहा है। शायद, मैं मौसमी को बहुत पसंद करता हूं उस खातिर.. लेकिन न तो वह और न मैं, इस रिश्ते को बस दोस्ती ही मानने को तैयार हूं.. शायद यह कुछ और ही था। ... ये कहानी अभी खत्म नहीं हुई है मेरे दोस्त..

जिन चार मित्रों का जिक्र न करुं तो कहानी अधूरी रहेगी..वह थे रामाशंकर, दिलीप, शन्नी और खालिद। मधुपुर के ये दोस्त आज सभी शादीशुदा हैं,। लेकिन अब भी घर जाता हूं तो हमारी क्रिकट टीम तैयार हो जाती है। हमने खूब पिकनिक मनाई.. लाईन मारे.. एक साथ। मधुपुर के पास बहती हुई अजय नदी हमारे कई पिकनिकों की गवाह है। हम पांचो का नाम भी लोग पांच पापी रख चुके थे। बहरहाल, मेरा डिस्क्लेमर है कि हमने कोई पाप किए नहीं, जो मजहबी कसौटी पर खरे पाप होते हों। सिगरेट पीना पहले पहल मैंने इन्ही की सोहबत में सीखा।

फिर आईआईएमसी के दौरान सुधीर नाम का लड़का मिला, ये कई मामलो में मेरा भी उस्ताद निकला। सुधीर की दिलचस्पी लड़कियों में मुझसे भी ज़्यादा थी, है और रहेगी। मामू के नाम से मशहूर रोहित रमण, जो फिलहाल ज़ी स्पोर्ट्स में काम कर रहे हैं, फूफा जी के नाम से मशहूर नितेंद्र सिंह, कई दौस्त हुए।

मेरे करीबी दोस्तों में सुशांत राजनीतिक प्रवक्ता और योगेंद्र यादव की तरह एनालिटिकल हैं तो राजीव किसी बात को चूतियापा कहकर टाल देने में माहिर। उसकी अलग विचारदृष्टि है और उसके विचार में कार्ल मार्क्स भी प्रबुद्ध नहीं। एक और मेरे मित्र हैं ऋषि रंजन काला, जिनके उपनाम में चस्पां हुआ काला उनके उजले मन की ओर संकते करता है। आप पहली नज़र में उन्हे देखें तो आपको लगेगा किसी किसी हलवाई या बनिए से मिल रहा हूं। खाते-पीते खानदान के लगते हैं। पेट यूं लटका हुआ मानो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से खिंचकर धरती पर लोटने लगेगा। ऐस उभरा हुआ मानो दूर क्षितिज से कोई उसे पुकार रहा हो...।लेकिन दुनिया के किसी भी विषय पर वे साधिकार बयानबाज़ी करते हैं, और खासकर इटली के ऑपरा और पावरोत्ती वगैरह की बात जब वह करने लगता है तो हम चित्त हो जाते हैं। दर्शन और आध्यात्म पर वह किसी भी फिलासफर की टुइयां कर सकता है।

बहरहाल, इन सभी मित्रों में मुमकिन है कि विकास, दीपांशु सरीके कई नाम छूट गए हों। लेकिन इन्ही दोस्तों ने मुझे इस जगह तक पहुंचने और कुछ हासिल करने की ललक पैदा की है। उनके भरोसे को कायम रखूं, और नए मित्र बनाते चलूं. यही उम्मीद है।।

7 comments:

राज भाटिय़ा said...

सच मु़च मे आप भी बहुत सीधे साधे हे,यह आप के लेख से पता चला. लेख बहुत प्यारा हे, धन्यवाद

डॉ .अनुराग said...

दोस्ती से बड़ा कोई रिश्ता नही होता....आपकी कमाई आपके दोस्त होते है

Udan Tashtari said...

मित्र बनाने की यात्रा शुभ हो. बहुत विशिष्ट होते हैं सच्चे मित्र.

pallavi trivedi said...

badi shiddat se aapne apne doston ko yaad kiya...aapko jeevan path par aur bhi achche dost mile....

मै क्या जानू said...
This comment has been removed by the author.
मै क्या जानू said...

each blog of yours tells me how to polish my writings, really u are a master...... good, keep it up

Anonymous said...

etani sphae se sach bayan karana aapaki saralata ko drsata hai.aage bhi yahi aasa hai.