Monday, September 1, 2008

बचपन में पढ़ी एक कविता

चींटे का चांटा खाते ही,

गिरा लुढ़ककर हाथी,

भाग चले सब भालू-सूअर,

भगे शेर ले साथी।

कान पकड़कर हाथी बोला

अब न करो बेपानी

पूंछ पकड़कर ज़रा उठा दो,

क्षमा करो शैतानी

1 comment:

कुमार आलोक said...

बच्चे बढिया कविता है ...हमने भी बचपन में पढा था ...याद दिलाने के लिए धन्यवाद