ये पप्पू कौन है, जिसने गानों में एड में अपनी जगह बनाई है, ये समाज की उस पांत का आदमी है, जिसकी खिल्ली हर जगह उडाई जाती है...
आजकल एक गाना काफी हिट हुआ है। पप्पू कांट डांस साला... आपको याद ही होगा कि कुछ महीनों पहले कैडबरी के एड में अमिताभ जी पप्पू पास हो गया गा रहे थए। सवाल ये है कि ये पप्पू है कौन, जिसे नाचना नहीं आता और जो पढ़ने-लिखने में भी फिसड्डी है।
क्लास में पिछली बैंच में बैठने वाले लड़के जिनका ध्यान पढाई में कम लगता है, कुछ-कुछ तारे ज़मी पर के ईशान अवस्थी जैसा लड़का पप्पू ही है। लेकिन ज़रूरी नही कि आर्थिक रुप से वह कमजोर ही हो। गाने में तो साफ लिखा है ना कि पप्पू के मुंह में चांदी की चमची है, और वह गुच्ची के परफ्यूम इस्तेमाल करता है। वह गिटार बजाता है। पप्पू किशोर समाज का वह तबका है जो न उत्तर पुस्तिकांओं के ज़रिए परीक्षक को खुश कर पाता है और ना उनमें वो नाचने जैसी सामाजिक गतिविधियों में कामयाब है।
दरअसल पप्पू मुंबई गया हुआ बिहारी है। यह वह बिहारी है जो असम, पंजाब और दिल्ली में स्थानीय लोगों के कोप का शिकार होते हैं। पप्पू वह है जो तैयारी तो सिविल सेवाओं की करता है लेकिन नेवी से लेकर तटरक्षक और बीएसआरबी की परीक्षाओं में शरीक होता है--इस उम्मीद में कि पप्पू को एक अदद नौकरी तो मिल ही जाएगी।
सवाल ये है कि पिछली पांत में बैठने वाले इन पप्पुओं के लिए हम क्या कर रहे हैं। गांव के पप्पू पीने के पानी और चिकित्सा की सुविधाओं से महरुम हैं। दरअसल पप्पू क्रिकेट टीम का बारहवां खिलाड़ी है जो मैदान में पानी ढोने को अभिशप्त है। इस पप्पू के लिए विकास के फ्लाई ओवर पर चलने केलिए कोई रास्ता नहीं है, कूद कर सड़क के पार हो जाओ और किसी भी चलती गाड़ी के नीचे आने को मजबूर रहो, क्यों कि पप्पू कांट वाक साला। ये साला पप्पू अंग्रेजी नहीं जानता। उसे पिज्जा की बजाय रोटी अच्छी लगती है, नल का पानी पीता है।
आइए इस दीवाली हम सब पप्पू के पास होने में कैडबरी खाएँ।
6 comments:
सही कहा.. पप्पु आम आदमी है. भीड़
पप्पू को डांस में भी पास करा कैडबरी खाना है। वैसे पप्पू की तर्ज़ पर आम आदमी की एक तस्वीर "शर्मा जी" में भी मिलती है।
आपने मेरे कमेंटस को तरजीह दी । आपने ही मुझे ब्लाग के बारे में बताया और उसका ककहरा भी सिखाया । आज आपके ब्लाग पर अपने कमेंटस को विस्तार रूप में पाया तो खुश हुआ । विशेष नही कह सकता हूं।
बेशक
आम आदमी को कोई भी गरिया लेता है भाई
सच्ची सोच
दीवाली का त्योहार ऐसी उमंग लेकर आता है कि क्या गरीब क्या अमीर सभी इसमें डूब जाते है । इसके आगमन के साथ ही उजाले और खुशियों का समेटे हुए लक्ष्मी का आगमन हर दहलीज पर शुरू हो जाता है । पांच दिनो तक चलनेवाला यह महोत्सव हर धर और गली को रौशन कर डालता है । सच मानो तो रिश्तो को नयी जमीन देती है -दीवाली । नही तो शहरी संस्कृति में मिलना-जुलना आपसी-भाईचारा कहां शेष रह गयी है । निडा फाजली कहते है कि पहिये पर चढ़ चुके है ,घिसे जा रहे है हम । यही नज्म शहरी लोगो पर लागू होता है । महानगरो में ईसानी जीवन कुछ इसी तरह आगे बढ़ता है सुवह की पहली किरण के साथ ही काम पर निकलने का सिलसिला शुरू होता है ,दिन भर आंफिसो में काम रने की मारामारी और शाम को घर लौटने की जल्दी । ईंसान महानगरो में इतना मशीनी हो गया है कि उसे अपनो से मिलने का समय नही है । आपसी रिश्तो को निभाना भी कठिन होता जा रहा है । एसएमएस के जरिये ही वह अपने दोस्तो से मिलता है ,रिश्तेदारो से बातचीत करता है और थेक्स लिखकर अपना फजॆ पूरा करता है । लेकिन दीपावली एक एसा उत्सव है जो शहरी जीवन में भी लोगो के बीच खुशियां और चैन के लिए समय दे देता है । धनतेरस से शरू होने वाला यह भैया दूज के दिन जाकर समाप्त होता है । लेकिन शहरो में इतनी जगमगाहट के बावजूद गांवो की दीवाली का आनंद नही आ पाता है । गांव की गलियो में पटाखे छोड़ना और नुक्कड़ो पर दोस्तो के साथ चुहलवाजी करना आज भी याद आता है । पटाखो की सजी दुकानो पर हमलोग अपने मित्रो के साथ घंटो खड़े रहते थे और सोचते रहते थे विचार फैलाते रहते थे कि ये पटाखा इस बार खरीदना है । दीप जलाने के लिए दिये और मोमबत्ती को तैयार लिये बैठे रहते थे कि कब दिये जलाने का वक्त आएगा । उस दिन का याद कर आज भी दिल ख्याली पोलाव उमरने लगता है और गांव की याद तरोताजा हो जाती है । दीवाली आए और हर धर में खुशियां फैलाये यही कामना है ।
पप्पु को आपने सही पहचाना...लेकिन दुनिया में ऐसे कई पप्पु जो जिंदगी के कई मोड़ पर फेल हो जाते हैं। फिर भी इसी उम्मीद में हैं कि आज नहीं तो कल हमारा होगा।।।।
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