आप चौंक गए होंगे..लालगढ़ में किस होटल की बात कर रहा हूं मैं। जनाब ये सच है कि मैं उसी लालगढ़ की बात कर रहा हूं, जहां माओवादियों ने सरकार को नाकों चने चबवा दिए हैं। और जहां बारुदी सुरंगों की गंध है..। वहीं लालगढ़ में एक होटल की बात कर रहा हूं.. और बांगला में बोउदी का मतलब होता है- भाभी। यानी लालगढ़ में भाभी के होटल की बात कर रहा हूं।
अब आपको लग रहा होगा कि गुस्ताख़ आ गया अपनी पर..। अब करेगा ऐसी वैसी, जैसी -तैसी बातें। भाभी की, भाभी की बहन की। नहीं जनाब..आज मैं सीरियसली सीरियस हूं। यानी गंभीरतापूर्वक गंभीर होने की सोच रहा हूं।
बहरहाल, लालगढ़ के हालात जो थे वो ये कि पुलिस थाने पर माओवादियों ने कब्जा कर लिया था। सीपीएम का दफ्तर फूंक दिया था। और सारे रास्ते में बारुदी सुरंगे बिछा रखी थीं। लेकिन सुरक्षा बलों ने उन्हे वहां से खदेडा। अब ये सारी खबर आप तक कैसे पहुंची? सीधी बात मीडिया के ज़रिए..। मीडिया ने इस खबर के साथ कैसा सुलूक किया ये अलग बात है लेकिन खुद मीडिया वालों के साथ कैसा सुलूक हुआ इस पर किसी ने चर्चा नहीं की।
इधर बेहद ऊमस और गरमी है। माथे का पसीना गाल और ठुड्डी होता गरदन के रास्ते बेरोकटोक इधर-उधर घुसता चला जाता है और कैमरे के सामने खड़े लाइव देते आप बेबस उसकी असहज ठंडक को महसूस करते रहते हैं। कड़क धूप में चांद गरम हो जाता है, खासकर दिल्ली की सूखी गरमी के आदी लोगों के लिए कोलकाता के पास आर्द्रता का कोई जबाव नही होता। सिगरेट फूंकते जाइए... बेचैनी से पेड़ के पत्ते गिनिए.. लालगढ़ पुलिस स्टेशन के सामने की गीली दीवार पर ऊक़ड़ूं बैठिए.. सारा बाजा़र बंद है..लालगढ़ में.. और कहां जाएंगे। किसी कैमरामैन के पास बिस्कुट का पैकेट पड़ा है। सब टूट पड़े हैं। खत्म। यहां जमा पत्रकारों में कोइ नाजुक-नरम लड़की नहीं दिखती। घिसे हुए तजुरबेकार लोग..। कमी खलती है।
धीरे-धीरे सिगरेट का कोटा खत्म हो जाता है। ड्राइवर के पास कंट्री सिगरेट है। देशभक्त लोगों की कमी नहीं..कहते हैं रग-रग में पहले से कंट्री जमा है। अब उसे पेंफड़ों तक आ जाने दो। ड्राइवर की बीड़ी का बंडल भी साफ।
कुछ जीवटवाले लोग खाना खोजने निकले हैं। थाने से दाहिने आगे जाना मना है। आगे खतरा है। माइन्स भी हो सकते हैं। अंदर ही अंदर लगा बरखा दत्त हो रहा हूं। सेक्स परिवर्तन..। हुह..। तीन-चार लौंडे-लफाडिएनुमा रिपोर्टर खाने की खोज में निकले हैं। स्टार आनंद का लड़का. हल्की दाढी...थका हुआ। आगे चल रहा है मेरे साथ। बोलने में मेरी बांगला उतनी ही अच्छी है जितनी कि मेरी लैटिन..बांगला समझ अच्छी तरह सकता हूं।
एक कुत्ता आगे दोड़ता हुआ निकला। सीआरपीएफ का जवान गश्त पर है.. कहता है आगे एक पान की दुकान खुली है। साथ में एक घर का दरवाज़ा भी खुला है..एक छोटी लड़की झांकती है।
पता चला यहां एक दंपत्ति हैं जो पहले होटल चलाते थे। खाना मिलेगा.. जवाब आता है - क्यों नहीं। थोड़ी देर रुकने का इशारा..यानी ४० मिनट। हमने उन्हें २० लोगों का खाने का संकेत दिया। सिगरेट का कोटा पूरी तरह भर लिया।
खाने में हम २५-२७ लोग हो गए। एक साथ १२ लोग ही खा सकते हैं। पत्तल पर खाना..भात-मूंग की कम गली दाल, कुंदरी जैसी कोई मिक्स सब्ज़ी, आलू का एक चम्मच भर्ता, प्याज का मटर के दाने जितना बडा़ टुकड़ा, एक अंडा.. उबला। लेकिन ये खाना पवित्र है।
दिल्ली से चला था तो सारे रास्ते ढाबे का मसाले दार खाना खाता आया था. यहां आकर पवित्र भोजन मिला है। वैसे भूख में किवाड़ भी पापड़ लगते हैं..।
हम सब ने जम कर खाया। पेट के साथ मन भी तृप्त हुआ। अब तक खाली दिमाग में कुछ बातें घुस नहीं पा रही थी। इस भोजन के बाद विचारधाराएं जन्म लेने लगी हैं। हा हा हा। भूखे भजन न होईं गोपाला। खाने के बाद हमारे ड्राइवर पूर्णचंद्र ओझा के विशेष अनुरोध पर पान कचरे (चबाए) गए।
बोऊदी का सौंदर्य प्रभावशाली था, अच्छी लंबी, लंबी बाल, मांग में दूर तक सिंदूर, बड़ी बिंदी..लाल बॉर्डर की साड़ी, हाथों में शाखा-पोला चूड़ी...लगा शरत चंद्र की बिराज बोऊ (बहू) अवतरित हुई हों।
मां कहती थी, भूख लगे तो ईश्वर को याद करना किसी न किसी रुप में मिल जाएँगे.. अन्नपूर्णा को याद करना..पहले मां की बात पर भरोसा नहीं था। ईश्वर के अस्तित्व पर भी कोई खास भरोसा आज तक नहीं..लेकिन लालगढ़ जाने पर और इस घटना के बाद आज लग रहा है कि मां सही कहती थी.।
लालगढ़ के पास मेदिनीपुर शहर से
2 comments:
अनपूर्णा कहीं भी मिल सकती हैं।
माँ हमेशा सही ही कहती है..हम जान देर से पाते हैं. सुन्दर संस्मरण!!
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