Monday, July 6, 2009

मेरा भारतनामा-२ कानपुर में एक दिन



कानपुर में सुबह को उठते-उठते देर हो गई थी। लेकिन हमने बचपन में पढ़ा था कि कानपुर भारत का मैनचेस्टर है। शायद इसी उत्सुकता की वजह से हमने वहां कि सूती मिलों का जायज़ा लेने का फैसला किया। लेकिन लक्ष्मी रतन कॉटन मिल हो या ऐसी ही दूसरी मिलें, ज्यादातर मिलें बंद पड़ी हैं। हमें बेहद निराशा हुई लेकिन एक स्टोरी मिल गई थी, इसकी खुशी भी थी।


कभी कानपुर में सूती कपड़े की मिलें, कारखाने के अँदर नमी पैदा करके भी कोली गई थी। गौरतसब है कि सूत की कताई के लिए नमी होना ज़रुरी है। और यह वातावरण कानपुर में था नहीं, सो कारखाने के अंदर कूलर लगा कर नमी पैदा की जाती थी। लेकिन बाज़ार और बदलते वक्त ने कानपुर को सूती उद्योग की क़ब्रगाह में तब्दील कर दिया है।


हमने बचपन में लाल इमली का नाम भी बहुत सुना था। लाल इमली नामी ऊनी कपड़ों का ब्रांड था। लाल इमली कारखाना एशिया का सबसे बड़ा ऊन कारखाना था। लेकिन वक्त के साथ इस कारखाने की तकदीर भी बदल गई। ( १९८९ तक सबकुछ ठीक-ठाक था, लेकिन ९० के दशक में कारखाने की सेहत गिरती चली गई। सरकरा ने वक्त-वक्त पर राहत के कुछ पैकेज ज़रुर दिए, लेकिन वह मिल को संभालने के लिए नाकाफी साबित हुए।


कारखाने की क्षमता में अब कोई कमी नहीं, बेहतरीन इमारत और अत्याधुनिक सोल्जर सैट मशीनें.. यहां कुशल कामगारों की भी कमी नहीं। कमी है तो बस कच्चे माल की जो पहले ऑस्ट्रेलिया से आता था। मिल के वर्स्टेड सुपरिटेंडेंट बी एन सिंह, और वीविंग सुपरिटेंडेंट ए के गुप्ता, ने बताया कि अगर कच्चे माल की अबाध आपूर्ति रहे तो मिल रोज़ाना ६ हज़ार मीटर कपड़े की कताई कर सकता है। और महीने भर में २ लाख मीटर की।


कानपुर के लाल इमली कारखाने के अजूबे नाम के पीछे की गाथा भी अजूबी है। १८७६ में जब ब्रिटिश फौज के लिए यहां कंबल की बुनाई शुरु हुई तो यहां अहाते में दो इमली के बड़े-बड़े पेड़ ते। इमली का गूदा कच्चे रहने के दौरान लाल हुआ करता था, ऐसे में इस ब्रांड को लाल इमली नाम दिया गया। बाद में कारखाने का विस्तार हुआ। मिल के कर्मचारी आज भी तीसरे वेतन आयोग के मुताबिक ही वेतन पा रहे हैं, उनमें काम करने की इच्छा भी और कुशलता भी लेकिन कच्चे माल और सरकारी उदासीनता ने हाथ बांध रखे हैं।


लाल इमली के कारखाने की इमारत अगर आप देखें तो ये अपनी भव्यता और इतिहास की दुहाई देता मालूम होता है।

बहरहाल, कानपुर में लाल इमली और सूती मिलों की स्टोरी करते हमें देर हो गई और हम इलाहाबाद के लिए निकले तो दिन के दो बज गए थे। हमने खाने के विचार को त्याग दिया, और गाड़ी निकाल ली।


मंजीत ठाकुर, कानपुर में

3 comments:

Udan Tashtari said...

चलिये कामपुर की बंद ही सही, मिलें तो आपके बहाने घूम ही लीं. आभार,

Udan Tashtari said...

कामपुर=कानपुर

sushant jha said...

write on allahabad...i have also written a series of posts on that(amrapaali.blogspot.com)...we will like your special view about the city.