Thursday, December 17, 2009

कविताः ट्रिकल डाउन


हाथ फैलाए....
ढाई पसली की जनता को मिला आश्वासन
मनमोहिनी मुद्रा में,
दिया बयान
धनकुबेरों को होने दो और भी धनी
उनके टैंकर में जब भर जाएगा मनी,
रिस-रिसकर पहुंच जाएगा आखिरी आदमी तक भी.
.जैसे सरपंच-मुखिया के खेतों को सींचने के बाद,
कलुआ-मधुआ के खेतों तक भी पहुंच जाता है पानी,
सीधे न पहुंचे तो,
माटी से रिसकर पहुंच तो जाता ही है
एक दिन,
रुपयों की बारिश से
उफनकर आता पानी
भर देगा
हर घर के आंगन को,
फूस की छत से टपकेगें सिक्के,
चूएंगे डॉलर
हर आदमी के पास होगी,
पैसो की तलैया,
जैसे बंगाल के गांव में हर घर के पीछे होता है
छोटा-सा डबरा,
जिसमें तैरती रहती हैं बत्तखें
देश बन जाएगा
डॉलर का महासागर,
लेकिन महासागर के बीच में जा पाएंगे,
सिर्फ बड़े जहाज,
हम जैसे नारियल के सूखे फल...
किनारे पर पड़े लहरो से टकराते रहेगे,
कभी सूखी रेत पर
कभी पानी में
आते-जाते रहेगे,
लगता है
रिस-रिसकर रस पहुंचाने की थ्योरी
रसहीन और अनमेल है
डाउन थ्योरी में
डाउन जाने का सिस्टम फेल है।

5 comments:

Rajeysha said...

ये चि‍त्र तो राजीव गांधी का वो वाक्‍य कह रहा है कि‍ "आखि‍री आदमी तक 100 में से 1 रूपया ही पहुंच पाता है।"

डॉ .अनुराग said...

वक्त का हसीं सितम .....जारी है

यती said...

pic is suparab n ur kavita !!!!!mind BLOWING

मै क्या जानू said...

very nice lines....

aparajita said...

vry nic thought...real picture of system...