Tuesday, December 29, 2009

सतभाया का शेष


उड़ीसा के केंद्रपाड़ा में एक पंचायत है सतभाया..। इस पंचायत में कभी सात गांव हुआ करते थे। और रकबे की ज़मीन थी ३२० वर्ग किलोमीटर। अब बचे हैं डेढ़ गांव और सौ वर्ग किलोमीटर से भी कम का रकबा।

अपने साप्ताहिक धारावाहिक डॉक्युमेंट्री शूट करने के दौरान वहा गया तो दिल धक्क से रह गया। वहां की हालत देखकर। अब वहां गोविंदपुर, खारीकुला, महनीपुर और सारापदा समेत पांच गांव पूरी तरह समुद्र की पेट में जा चुके हैं। कानपुरु आधा डूब चुका है और सतभाया आखिरी सांस लिए समंदर के आगे बढ़ जाने की बाट जोह रहा है।

समुद्र ने गांव की खेती लायक १०६१ एकड़ ज़मीन, घर-बार सबकुछ निगल लिया है। और अब भी वह रुका नही है दिन ब दिन आगे ही बढ़ रहा है। दुनिया ग्लोबल वॉर्मिग की वजह से मालदीव किरिबाती तुवालू और पापुआ न्यू गिनी के डूब जाने का खतरा शायद कुछ दशक दूर हो, लेकिन सतवाया के गांव वाले चढ़ते समंदर का कोप झेल रहे हैं और यह विपदा शायद और भी घनी हो, जबकि उत्सर्जन के लिहाज से यह गांव बिलकुल पाक साफ है।

गांब में बिजली नहीं पहुंची है। एक मोटरसाइकिल तक नहीं। लेकिन आगे बढ़ते समंदर का कोपभाजन बना हुआ है गांव। सतवाया के लोग ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में ज़रा भी योगदान नहीं करते.। फिर भी हाशिए पर पड़े इन लोगों पर कुदरत की मार पड़ी है। गांव रके बुजुर्ग बताते हैं कि पहले उन्हें समुद्र देखने के लिए तीन मील आगे जाना होता था, लेकिन अब समुद्र गांव के लिए खतरा बन गया है।

हृषिकेश विस्वाल गांव के ७८ साल के किसान हैं। उनके मुताबिक उनका गांव समुद्र में डूब चुका है। और वह बीस बरस पहले तक समुद्र देखने जाते तो वापसी में शाम हो जाया करती थी।

उत्कल विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग के प्राध्यापक जी के पंडा कहते है कि सतभाया का डूबना ग्लोबल वार्मिंग का या दूसरे शब्दों में कहें तो जलवायु परिवर्तन का नतीजा है।

गांव का सवा सौ साल पुराना स्कूल, और बाकी इमारतें डूब गई हैं। अब कानपुरु के लोग भीतरकनिका नैशनल पार्क की सरहद में जंगल में नए बसेरे में रहते हैं,वहीं प्राइमरी स्कूल भी झोंपड़े में चलता है। लेकिन यह गांव भी समंदर की जद से दूर नहीं।

सतभाया और समंदर के बीच रेत का एक टीला है। लेकिन यह टीला कब तक गांव को बचा पाएगा? खुद टीले की रेत फूस के झोंपड़ों पर गिर कर नई मुसीबत बन रही है।पहले ही उड़ीसा का यह हिस्सा विकास की दौड़ में पीछे था लेकिन विकास की कुछ कोशिशें हुईं भी तो समंदर के पेट में चली गईं। पहले गांव में छह टयूब वेल थे लेकिन उनमें से पांच समंदर में समा गए।

ऐसे में गांव में पीने के पानी की समस्या पैदा हो गई हैं। बचे खुचे हैंड पंप पानी तो देते हैं लेकिन उनमें से निकलने वाला पानी भी नमकीन और खारा हो चुका है। आज पूरे गांव में फूस के ढांचे बचे हैं। पक्की इमारत के नाम पर बस ढाई सौ साल पुराना पंचवाराही मंदिर और नया बना पंचायत भवन हैं। हर साल तकरीबन 300 मीटर की दर से आगे बढ़ रहे समंदर के पानी ने सतवाया पंचायत के पांच गांवो को अपनी चपेट में ले लिया है। पिछले साल यह गांव के 80 मीटर ज्यादा पास आ गया आया था। धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए समंदर ने गोविंदपुर, खारीकुला, महनीपुर सारापदा समेत पांच गांवो को भारत के भौगोलिक नक्शे से मिटा दिया।

जारी

3 comments:

रंजना said...

DEKHIYE NA..APNE HI JIVAN KAAL ME HAME KYA KYA DEKHKAR JANA PADEGA DUNIYAN SE...

VAYUMANDAL KO PRADOSHIT KOUN KAR RAHA HAI,KOUN NAHI ,YAH KAHAN PRAKRITI SUNTI HAI...USKA NYAAY TO SABPAR EK JAISA HOTA HAI....

KAASH KI ISE TEJI SE VINAASH KE MUNH ME JHONKNE WALE AB BHI CHET JAAYEN....

Udan Tashtari said...

अफसोसजनक लगता है.


यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

आपका साधुवाद!!

नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी

Sachi said...

You can find Oglivey Turtle there. yah aap jikr karnaa bhool gaye hain.
Nice place and sundar description..