Wednesday, January 27, 2010

ब्लडी बास्‍टर्ड बनाम आई विल गो फर्स्ट


पिछले दिनों कोलकाता में था। ज्योति बसु के अंतिम दिनों की कवरेज के लिए। उन्हीं दिनों एक खबर आई थी, हमारे सम्माननीय पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा ने अपने विपक्षी नेता कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदुयरप्पा को ब्लडी बास्टर्ड कहा।


जिन ज्योति बसु की पार्टी की ऐतिहासिक भूल की वजह से देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने थे, वहीं देवेगौड़ा की इस जानबूझ कर की गई ऐतिहासिक गलती का दूसरा पक्ष भी सामने आया। पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय ज्योति बाबू का हाल-चाल लेने एएमआरआई अस्पताल पहुंचे।


नीचे, अपने काफिले को पीछे छोड़ते हुए वह अकेले ही मीडिया के पास आए, भर्राए गले में कहा कि राजनैतिक रुप से दो ध्रुवों पर रहते हुए भी पिछले साठ साल से हम अच्छे दोस्त हैं। मैंने ज्योति से वादा किया है कि ...आई विल गो फर्स्ट....


अब सिद्धार्त शंकर रे अपने वायदे पर खरे तो नहीं उतर पाए, और ज्योति दा पहले चले गए। लेकिन राजनीति का एक नया कोण मेरे लिए छोड़ गए। जिसमें एक ओर तो देवेगौड़ा खड़े थे, दूसरी तरफ रे। तीसरा कोण भी सामने आया जब ममता बनर्जी ज्योति दा के निधन के बाद मातमपुर्सी में आई और मीडिया के सामने गला फाड़ कर बोल गई कि ज्योति बुस वाज़ फर्स्ट एंड लास्ट चैप्टर ऑफ लेफ्ट पॉलिटिक्स इन वैस्ट बंगाल...।


मैं चित्त हो गया था। ये तीसरा कोण आज की राजनीति है। पहले भी राजनीति ऐसे हो होती होगी। लेकिन तीनो कोण तीनों अलग एंगल से ...और इसके क्या निहितार्थ हो सकते हैं..इस पर विचार किया जा सकता है।

2 comments:

Sundip Kumar Singh said...

राजनीति के गिरते स्तर पर अगर विलाप कर रहे हैं मंजीत जी तो इसमें हमें कोई हैरानी नहीं हो रही है. क्यूंकि हम उस देश के नागरिक हैं जहाँ सत्ता के लिए कोई कुछ भी कर सकता है. जिसे लोग आज गाली दे रहे हैं अगर कल उससे गले मिलकर सत्ता मिलने को हो तो लोग देर नहीं करते. दूसरी चीज हम ऐसे देश में रहते हैं जहाँ कुछ सबसे ऊँचे राजनीतिक पदों पर कोई ऐसा व्यक्ति नहीं बैठता जो देश के लिए कोई विजन या एजेंडा रखता हो. बल्कि यहाँ ऐसे पद मुफ्त में रेवरियों की तरह बांटे जाते हैं...और हम इसी तरह के बनते-बिगरते रेकॉर्ड्स पर खुशियाँ मनाते रहते हैं. जैसे हम हैं वैसी राजनीतिक व्यवस्था हमें मिली है...इसमें हैरानी की क्या बात है?

Unknown said...

इतने अचरज की बात नही है राजनीति के ये तीनो कोने. ममता युवा है राजनीति मे तो उन्होने उन ज्योति बाबू के राजनीति मे स्थान को दिल से स्वीकरा है जिनसे लदते लडते उन्होने राजनीतिक पहचान बनाई तो ये अनहोनी नही है और उन्हे इति और अन्त मानकर उन्होने पहचाना तो इसमे राजनीति भी होगी और दीवार पे लिखा सच पढने की उनकी योग्यता भी.

सिद्धार्थ शन्कर रे के विचार जानकर कोई अचरज नही करना चाहिये क्योकि उनकी राजनीति बहुत साफ़ सुथरी रही है और ऐसी सदाशयता के उदाहरन तो देश प्रदेश की राजनीति मे बहुतेरे मिल जायेगे