Sunday, February 6, 2011

अथ 'पहुंचेली' कथा उर्फ़ मुहब्बत एगो चीज है

मैं अपने लैपटॉप के ठीक अपने लैप पर लेकर बैठा हूं। फेसबुक खुला पड़ा है...देख रहा हूं कितने लोगों ने दोस्ती के लिए अनुरोध भेजा है..कितने लोगों ने मेरे स्टेटस पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से कमेंट किया है।....बाहर बारिश होने के बाद का दर्दनाक ठंड अपने सारे हथियार खोले बैठा है। रविवार है, दफ्तर भी नहीं जाना।

....खाना बनाने वाली आएगी नहीं। खुद ही खाना बनाना है। मुंह हाथ धोकर सीधे लैपटॉप और इंटरनेट से जुड़ गया। जल्दी जल्दी में मैगी बना कर सुड़क लिया, बाहर निकल के दूध की थैलियां ले आया था। लीटर भर चाय बनाकर थरमस में भर लिया। चलता रहेगा। कमरे में सिगरेट का धुआं घुमड़ रहा था...

मैं बार-बार फेसबुक मैं एक ही प्रोफाइल खोल रहा हूं...एक ही चेहरा बार-बार आंखों के सामने घूम रहा है...मेरी दोस्त भी नही है वो...दोस्त की दोस्त..लेकिन उसे रिक्वेस्ट भेजने की हिमाकत और हिम्मत नहीं कर पाया हूं..।

उसकी गहरी-गहरी आंखें...काजल ने उसे और भी गहरा बना दिया है...चारों तरफ रेगिस्तान है...रेत के बीच नखलिस्तान-सी।

अचानक बिस्तर पर रखे लैपटॉप  की स्क्रीन से निकल कर सामने आ गई।

कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा? कितना हसीन सपना है...तरह-तरह से खिंची तस्वीरें अब महज तस्वीरें रहीं नहीं।

मेरे सपनों की लड़की सजीव होकर मेरे सामने बिस्तर पर अधलेटी-सी है। ऑप्टिकल फाइबर प्रकाश के साथ-साथ क्या लड़की को भी ला सकता है..कंप्यूटर स्कीरन तक खींचकर..? कुछ-कुछ वैसा ही कि सत्यनारायण की कथाओ में आपने आवाहन किया देवताओं का, इंद्रादि दस दिग्पालों का, नवग्रहों का, और आपके आवाहन पर वह आ भी विराजें।


बिस्तर पर अधलेटी वह कुछ बोल नही रही, मैं भी नहीं बोल रहा। मैं तो अवाक् हूं..और वह? एक निर्वात की-सी स्थिति है। मैं उसकी आंखों से आगे बढ़ ही नहीं पा रहा..।

यार ये आंखों को इतना खूबसूरत भी नहीं होना चाहिए--मैंने सोचा। 'आदमी आंखो जैसी अनप्रोडक्टिव चीजों में फंसा रह जाता है'


वरना जिसने भी कहा था कि नारी ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है, सही ही कहा है। वह पूरे पैकेज में कमाल की थी, सांवली-सी, आंखो में गहरा काजल...लंबे घने बाल...लहरदार..। चौड़ा माथा..और एक उतनी ही चौड़ी मुस्कान। शरीर में जहां मांस होना चाहिए, वहां था...गैर-ज़रुरी जगहों पर बिलकुल ही नहीं। परफेक्ट फीगर...लंबाई 5 फुट 3 इंच..वाह गुरुदेव भारतीय नारियों की आदर्श लंबाई..।

आखिर मैंने कहा, संवादहीनता से क्या मतलब..?



"क्या नाम है तुम्हारा?"
"क्यों रोज़ तो प्रोफाइल चेक करते हो, बिना कमेंट किए भाग जाते हो...नाम नहीं पता..? "
"नाम पर ध्यान ही नहीं गया..."
"ध्यान कहां रहता है तुम्हारा..."
"कहीं भी, नाम तो बताओ..."
"लोग कहते हैं पहुंचेली..."
"पहुंचेली??"
"हां.."
"ये कैसा नाम है..???"
"नाम वही जिससे लोग आपको जानते हैं ..वरना नाम किस काम का..?"
"फिर भी नाम तो होगा कोई, नताशा, अनामिका कमला, विमला. परोमा...रुखसार..कुछ तो होगा.."
"कहा ना पहुंचेली नाम है.."
"कहां से आई हो"
"कुरु-कुरु स्वाहा से"
"वहां कौन हैं तुम्हारा"
"कोई नहीं है और सब हैं"
"कोई कौन नहीं है.."..और सब कौन हैं..?"
"मनोहर हैं, जोशी जी हैं.."

अच्छा..मेरा मन बुझने लगा । ये सपना ही है। ये अतीत से आई है। मेरे लायक नहीं...



जारी....

5 comments:

vidhi mehta said...
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आलोक कुमार said...

लीजिए, अब अगला किस्त के पढ़ेगा. नाम तो सार्वजनिक हो गया

अंतर्मन said...

जल्दी से कहानी को पूरा करें ....................
आपकी बात पर ध्यान दूंगा कविता के सन्दर्भ में ....

डॉ .अनुराग said...

पहुंचेली बड़ी खतरनाक चीज़ थी बीडू!!!!!!! तीनो को कन्फ्यूज़ रखती थी ...तीनो याने मनोहर ,श्याम ,एंड जोशी

Arvind Mishra said...

सौन्दर्य के पूरे पैकेज का मजा आपने लिया और अधूरी कहानी अपुन लोगों के लिए छोड़ दिए ...पूरी करने पर या अगली किश्तों को इस मेल पर डाईरेक्ट करने की सौजन्यता बर्तियेगा हुजूर -कथाकार आप काम के हैं !