Wednesday, February 9, 2011

अथ 'पहुंचेली' कथा-दूसरी किस्त

....हाथ की सिगरेट राख हो गई। 'पहुंचेली' पता नहीं किधर निकल ली। मैंने धीरे से बाहर झांका। मन का अंधेरा खिड़की बाहर दिखने लगा था। मच्छरों की वजह से शाम संगीतमय लगने लगी थी।

लाई हयात आये कज़ा ले चली चले...अपनी खुशी न आए न अपनी खुशी चले...पड़ोस के घर में बेग़म अख्तर की आवाज़ दिल के ग़म को गहराई देने लगे। मैं उस आदमी को कोसने लग गया, एक तो 'पहुंचेली' के अचानक ग़ायब हो जाना, उस पर से बेग़म अख़्तर...।

सामने एक पैग बनाकर मैने रख ली। ग़म का सारे  इंतज़ाम मुकम्मल हो गए।

न जाने क्यों मन फिर 'पहुंचेली' की ओर खिंच गया। मेरी फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट का जवाब देने से पहले ही 'पहुंचेली' पेज में तब्दील हो गई। उसके दोस्त पांच हजार से ज्यादा हो गए। अब मैं उसका फॉलोअर हो सकता था, दोस्त और प्रेमी नहीं...तमाम किस्म के भावुकता भरे मेसेज भेजने के बाद भी 'पहुंचेली' पहुंच से बाहर ही रही।

इस कन्या के बारे में कई मित्रों ने कहा भी कि बहुत पहुंचेली लड़की  है...लेने के देने पड़ जाएंगे। लेकिन दिल का क्या है मानता ही नहीं। एक दोस्त ने फेसबुक पर ही स्टेटस अपडेट किया था, चाहना न चाहना किसके बस की बात है, दिल का आ जाना किसी पे किस्मतों की बात है...

मैं फटीचर प्रेमी की तरह फिर से 'पहुंचेली' के प्रोफाइल की गलियों में भटक रहा हूं। उसके कई सारे फोटो डाउनलोड कर लिए...टाइट क्लोज अप  और एक्स्ट्रीम क्लोज अप को और भी टाइट बनाने के वास्ते सिर्फ आंखों वाले हिस्से क्रॉप कर लिए...मैं दीवाना हूं, मैं पागल हूं..तमाम किस्म की बॉलिवुडीय भावुकता मेरे सर पर भन्ना रही है। दारु का नशा काम कर रहा है।

मैंने आंखें उठाई। पहुंचेली फिर सामने थी। पलंग पर अधलेटी।

"कहां चली गई थी तुम.."?
ऑरेंज सूट में सज रही पहुंचेली, होठों पर सज रही लिपस्टिक में जानमारु लग रही थी। उसने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी चुप्पी भी जानमारु है।

वह मुस्कुरा रही है, वह अंगडाईयां ले रही है, वह कटाक्षपूरित आंखों से देख रही है...पर बोल नहीं रही है।  उसका लेटेस्ट मॉडल का फोन, एक नहीं दो-दो, लगातार उसके इनबॉक्स में मेसेज भर रहे हैं। फोन हर तीसरे सेंकेड वाइव्रेट कर जाता है....साइलेंट पर हैं दोनों, फोन भी, फोन की मालकिन भी, पर हमेशा कार्यशील...किसी ना किसी का फोन या मेसेज आ रहा है।

"पहुंचेली तुम इतनी मशहूर क्यों हो, मुझे जलन हो रही है। तुम्हारा वक्त मेरे लिए क्यों नहीं है...??"
"क्या बात कर रहे हो..तुम्ही मेरे मंदिर हो, तुम्ही देवता हो..." पहुंचेली गा रही है या गुनगुना रही है..मुझे पता नहीं चलता। मैं तंन्द्रा में हूं...उसने सिर्फ कोई गीत गाया है या उसका जवाब है।

मैं फ्रस्ट्रेट हो रहा हूं। मैं अब सोचने भी हिंग्लिश में रहा हूं...परसों एक वीओ-वीटी लिखते टाइम 'पलायन' वर्ड लिख दिया था। मेरे कॉपी एडिटर ने ऐसे देखा जैसे मैं टीवी इँडस्ट्री का सबसे चूतियाटिक रिपोर्टर हूं। ....स्साला...भैन....बहरहाल, फ्रेस्टेट के लिए क्या वर्ड हैं, हताश..?? शायद ...अगर हां तो मैं हताश हो रहा हूं।

'पहुंचेली' तिरछी आंखों से मेरी तरफ देखती है। कैमरा मेरे ओवर द सोल्डर से ट्रैक होता हुआ 'पहुंचेली' की आंखों पर एक्सट्रीम क्लोज अप तक ज़ूम होता है। लेकिन मैं इन आंखों के भाव नहीं पढ़ पा रहा। आँखों में भाव तो हैं लेकिन कौन से...मेरा गला सूख रहा है।

गला सूखने का यह क्रम एक महीने से जारी है। एक महीने पहले भी ऐसे ही चार पैग के बाद मेरा गला सूखा था, आज भी पैगों की संख्या और गले सूखने की प्रक्रिया एक-सी है।

कोई आवाज़ आई, मैं चौंका। "सुनो..सुनो ना.."पहुंचेली अनुनय भरे आवाज में बोल रही थी। मुझे सहसा भरोसा नहीं हुआ। मुझसे बोल रही थी..मुझसे। मिल गया आज का फेसबुक अपडेट..।

हां जी कहिए...मैं ने कहा। 'पहुंचेली' अचानक इनसैट में चली गई तस्वीर हो गई। उसका नाम केस सेंसिटिव हो गया, क्लिक करते ही कई लिंक खुलते हैं, एक तो उसकी प्रोफाइल ही..पहुंचेली के बारे में बताने वाले। फिलहाल, छोटी सी तस्वीर के सामने हरी बत्ती जल गई।

पहुंचेली ऑन लाइन आ गई थी, और अनुनय कर रही थी---"सुनो ना।"

पहुंचेली मेरी दोस्त नहीं, फिर ऑनलाइन कैसे दिख गई मुझे...मैंने आंखें मलने की कोशिश की...पहुंचेली दो-तीन बार ऑनलाइन ऑफलाईन दिखी, मैंने जवाब दिया --कहिए । एक बार, दो बार, तीन बार...सात बार..दस बार।

बस्स। अब नहीं। मेरे इस मारु प्रेम का अंत हो ना चाहिए, फौरन से पेश्तर..अदालती भाषा में कहें तो विद इमीडिएट इफैक्ट..मेरा लीगल कॉरेस्पॉन्डेंट यही भाषा बकता है।

करीब 20 मिनट बाद फिर पॉप अप विंडो में मेसेज दिखा, तुम्हारा फोन नंबर बताओ...।

या तो मैं नशे में हूं..या मर गया हूं। जिंदा होता तो इतनी खुशी बर्दाश्त कर पाता क्या..।

3 comments:

Rahul Singh said...

आजकल जोशी जी कैसे हैं, मनोहर.

नीरज गोस्वामी said...

मनोहर श्याम जोशी के चर्चित उपन्यास " कुरु कुरु स्वाहा" को आधुनिक बनाते हुए रोचक ढंग से प्रस्तुत कर रहे हैं आप...

नीरज

अंतर्मन said...

पहुचेली का सफ़र काफी रोमांचक है ........