Sunday, March 6, 2011

....मुहबब्त एगो चीज है-चौथी किस्त

"दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे,
डर है कहीं तक़दीर तमाशा न बना दे।"

हम नंबरों को अपने फोन में सुरक्षित कर लेते हैं...आदमी नंबरों में तब्दील हो गए...कहानियां टेक्स्ट मेसेजेज में। किसी का टेलिफोन नंबर पूछे तो पहले की तरह आप फटाक-देनी से बता नहीं पाएँगे। पहले नंबर आदमी पर हावी नहीं थे..पहले कितना अच्छा था

सुबह तक दारु का नशा बिलकुल उतर चुका था...दारु पीकर आदमी दार्शनिक हो जाता है। मेरी डायरी में दारुबाजी के बाद ऐसे ही दर्शन और तमाम किस्म के ब्रह्मज्ञान चस्पां हो जाते हैं।

बेग़म अख़्तर तकदीर के तमाशा न बनने और दीवाना बनना मंजूर करने के बाद डीवीडी में तब्दील होकर रह गईं थीं। एक बार फिर मैं और मेरी तन्हाई...।

एक बार फिर फोन देखा, पहुंचेली का मिस्ड कॉल..और एक मेसेज था। सुबह सात बजकर तैंतीस मिनट का कॉल..और मेसेज था--जाग जाओ तो कॉल बैक करो..।

बातचीत बेहद संक्षिप्त थी...पहुंचेली ने बुलाया था एक मॉल में। मैं मॉल में उसे खोजता रहा..हर सुंदर आंखों वाली लड़की मुझे पहुंचेली ही लगी। फोन आया--'कहां हो.?'
.मैंने कहा- 'बस आपको ही खोज रहा हूं..'
'सीसीडी आ जाओ..तुम्हारे इंतजार में पांच कप कॉफी गटक चुकी हूं..'.मेरे दिल की धड़कनें बढ़ गई। जीवन में पहली बार कोई लड़की, मेरे सपनों को शहज़ादी मेरा इंतजार कर रही थी ....सीसीडी में एक कुरसी को धन्य बनाती हुई पहुंचेली बैठेली थी..और हमेशा की तरह ऑरेंज सूट में सजेली थी..

पहुंचेली का आंखों का सुरुर हमेशा की तरह अपने शबाब पर था..।
 'सुनो..'उसने कटाक्षपूरित नयनों के बाण चलाए...'जी '---मैंने अपना सारा ध्यान उसकी बातों की तरफ लगा दिया। --'तुमने कल कहा था...कि तुम्हे एक सीढी लगानी है मेरे कंधों पर.." मैंने कहा।
'मैंने कल तुमसे बात की थी..?" -- वो हैरत में पड़ गई। हैरत में ही उसने कॉफी के कुछ सिप लिए। विस्फारित हो गई आंखों से उसने आगे कहा कि दरअसल वह यही बात करने मुझे सीसीडी तक खींच लाई है..और उसे बहुत हैरत हो रही है कि मैंने उसके कहने से पहले ही सारी बातें कह दी हैं।

वैसे...मुझे मॉडलिंग करनी है..मुझे पता चला है कि तुम्हारी पहचान कुछ डिजाइनर्स के साथ है। रैम्प पर मेरी पूछ बहुत कम होती जा रही है...कामयाबी के लिए जो सीढियां चढ़नी होती हैं उन्हें कंधों पर रखना होता है जानू...माइ बेस्ट फ्रेंड। ...और मैंने सोचा सिर्फ तुम मेरी मदद कर सकते हो।

मैं ही क्यों तुम्हारे तो सिर्फ फेसबुक पर ही 5 हजार से ज्यादा दोस्त हैं, न जाने कितने ऑरकुट पर होंगे..कितने हाईफाइव पर न जाने कितने कहां कहां होंगे...कंधों के लिए मुझे ही क्यों चुन  रही हो तुम?....


2 comments:

अंतर्मन said...

पहुचेली तक पहुच ही गए गुरुदेव, अगर पहुचेली रम्प पर है तो उसे कोफ़ी क्यों पिला रहे हैं, पहुचेली जैसा रापचिक नाम दियेला है तो सोमरस तक तो ले जाईये उस बेचारी का हक मत मारिये ..........................................

Rahul Singh said...

यानि आप कंधा देने को भी तैयार नहीं.