बारिश का मौसम था। कार सांप की तरह बलखाई काली कोलतार की सड़क के किनारे खड़ी थी। मिट्टी लाल रंग की थी, और बारिश की वजह से और ज्यादा लाल हो गई थी। लड़का हरी झाड़ियों में घुस गया।
झाड़ियों में घुसकर पता नहीं धतूरा, भटकटैया, ओक और न जाने क्या-क्या अलाय-बलाय फूल बटोर लाया। लड़की को भेंट दी। लड़की ने रख लिया। डायरी के पन्नों में छिपाकर रख लिया।
लड़के ने वायदा किया कि उसके जन्मदिन पर गेहूं की दो बालियां भेंट करेगा। लड़का गेहूं की बालियां भेंट नहीं कर पाया। क्यों, ये सवाल अलहदा है। लेकिन वह एक सवाल छोड़ गया।
प्रेमिका के कोमल हाथों में जाने का सुख सिर्फ गुलाब ही को हासिल क्यों हो। यह भावनाएं भटकटैया या धतूरे या ओक को हासिल क्यों न हो। और बात सिर्फ प्रेमिका के हाथों में जाने की ही नहीं है।
बात है कि लोग कैक्टसों, नागफनियों, भटकटैयों, धतूरों से डरते क्यों है। धार्मिकों को तो इनसे प्रेम होना चाहिए। आपके आराध्य महादेव के प्रिय फूल हैं ये। लेकिन नहीं, महादेव से कुछ मांग लेना, और बेलपत्रो से बेल से भांग से लिंग की पूजा या मूर्त्ति की पूजा कर लेना एक बात है, जीवन में उतार लेना दूसरी।
ज़हर पीना हो, तो पिएं खुद महादेव, बनें नीलकंठ। हमें क्या। हम सुविधाभोगी लोग है, खुद में से कैक्टस चुनकर उनको जहर पीने के लिए आगे कर देते हैं। हर युग में नीलकंठों की जरूरत होती है, ऐसे नीलकंठो की जिनको नाग पसंद होते हैं, नागफनी पसंद होती है, जिनका कपड़ों से नहीं, छाल से काम चल जाता है, जिनको बेलपत्र-भंग-बेल ही नसीब होता है। और बाद में अमृत हासिल करने वाला समुदाय जहर उनके हवाले कर जाता है। हर युग में बंदर पुल बनाते हैं, राम जाकर रावण मार आते हैं, पुल तो राम के नाम का हो जाता है।
बंदर मर जाते हैं। उनका नामलेवा तक कोई नहीं, कितने बंदर पत्थरों में दब गए। युद्ध में कितने मरे, कोई इंडिया गेट नहीं बना, कहीं नाम नहीं खुदा। कैक्टस थे सबके सब। खुद उग आए थे। खुद उगगें तो कौन रखेगा खयाल।
कैक्टस होना, सरकारी स्कूलो में पढ़ने वाले बच्चों की तरह है। जड़ में कौई खाद डाल रहा है, पानी डाल रहा है, या कौन जाने दोपहर के खाने के नाम पर जहर ही परोस रहा हो, कौन जाने पोलियो की बजाय हेपेटाटिस का टीका ड्रॉप बनाकर पिला जाए। देवताओं की कमी नहीं, गुलाबों की कमी नहीं.. ये दुनिया ही गुलाबों ने अपनेलिए बनाई है। ये दुनिया देवताओं ने अपने लिए गढ़ी है।
इसमें नागफनियों के लिए स्पेस नहीं है।
देवताओं की दुनिया में गुलाबो की दुनिया में फ्लाईओवर हैं, वहां साइकिल के लिए स्पेस नहीं है। गुलाबों की दुनिया में नजाकत है नफासत है, वहां भदेस होना बेवकूफी है, वैसे ही जैसे हाथ से खाना।
कैक्टस को आजकल गमलों में लगाते हैं। नहीं, गमलों में लगने के लिए बना ही नहीं है कैक्टस।
बिना खाद बिना पानी, बिना माली के खुद उगता है कैक्टस। इसकी नियति है, सुनसान में उगना, औरजब फूलता है तो इसका सौन्दर्य किसी कदर गुलाब से कम नहीं होता। निराला ने इसी वजह से तो गरिआया है गुलाब को,
अबे सुन बे गुलाब,
भूल मत गर पाई खुशबू
रंगो-आब।
---
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट
डाल पर बैठा इतरा रहा कैपिटलिस्ट।
कैक्टस को देखिए, कांटों से भरा होता है। कांटे तो गुलाब मे भी होते हैं, लेकिन वो होते है गुलाब की रक्षा के लिए। उन कांटो की जो नज़ाकत होती है ना फूल तो फूल, कांटा भी नफीस-सॉफिस्टिकेटेड लगता है। नागफनी का कांटा छू लीजिए कभी। बिच्छू के दंश सा होता है। नानी जीवित हो दिवंगत, याद आनी तय है।
तो ग़िला किस बात का, किस बात की शिकायत, अगर आपके अंदर है नागफ़नी तो फिर किसी की परवाह क्यों...शान से सर उठा कि जिएं। बाजुओं में ताकत तो होगी ही, फिर काहे के लिए किसी को मुंह जोहना...।
लड़का इत्ता भाषण देकर सड़क के किनारे बैठ गया। लाल मिट्टी में अदरक बहुत बढ़िया होती है, हल्दी भी। देसी जंगली हल्दी औषधीय गुणो की होती है। उसकी खुशबू...पैकेट वाली हल्दी से एकदम अलहदा। लड़की के हाथ में एक और भटकटैया का फूल थमाया उसने, शीशे पर नज़र गई तो देखा उसका खुद का गला नीला-नीला सा हो रहा था।
झाड़ियों में घुसकर पता नहीं धतूरा, भटकटैया, ओक और न जाने क्या-क्या अलाय-बलाय फूल बटोर लाया। लड़की को भेंट दी। लड़की ने रख लिया। डायरी के पन्नों में छिपाकर रख लिया।
लड़के ने वायदा किया कि उसके जन्मदिन पर गेहूं की दो बालियां भेंट करेगा। लड़का गेहूं की बालियां भेंट नहीं कर पाया। क्यों, ये सवाल अलहदा है। लेकिन वह एक सवाल छोड़ गया।
प्रेमिका के कोमल हाथों में जाने का सुख सिर्फ गुलाब ही को हासिल क्यों हो। यह भावनाएं भटकटैया या धतूरे या ओक को हासिल क्यों न हो। और बात सिर्फ प्रेमिका के हाथों में जाने की ही नहीं है।
बात है कि लोग कैक्टसों, नागफनियों, भटकटैयों, धतूरों से डरते क्यों है। धार्मिकों को तो इनसे प्रेम होना चाहिए। आपके आराध्य महादेव के प्रिय फूल हैं ये। लेकिन नहीं, महादेव से कुछ मांग लेना, और बेलपत्रो से बेल से भांग से लिंग की पूजा या मूर्त्ति की पूजा कर लेना एक बात है, जीवन में उतार लेना दूसरी।
ज़हर पीना हो, तो पिएं खुद महादेव, बनें नीलकंठ। हमें क्या। हम सुविधाभोगी लोग है, खुद में से कैक्टस चुनकर उनको जहर पीने के लिए आगे कर देते हैं। हर युग में नीलकंठों की जरूरत होती है, ऐसे नीलकंठो की जिनको नाग पसंद होते हैं, नागफनी पसंद होती है, जिनका कपड़ों से नहीं, छाल से काम चल जाता है, जिनको बेलपत्र-भंग-बेल ही नसीब होता है। और बाद में अमृत हासिल करने वाला समुदाय जहर उनके हवाले कर जाता है। हर युग में बंदर पुल बनाते हैं, राम जाकर रावण मार आते हैं, पुल तो राम के नाम का हो जाता है।
बंदर मर जाते हैं। उनका नामलेवा तक कोई नहीं, कितने बंदर पत्थरों में दब गए। युद्ध में कितने मरे, कोई इंडिया गेट नहीं बना, कहीं नाम नहीं खुदा। कैक्टस थे सबके सब। खुद उग आए थे। खुद उगगें तो कौन रखेगा खयाल।
कैक्टस होना, सरकारी स्कूलो में पढ़ने वाले बच्चों की तरह है। जड़ में कौई खाद डाल रहा है, पानी डाल रहा है, या कौन जाने दोपहर के खाने के नाम पर जहर ही परोस रहा हो, कौन जाने पोलियो की बजाय हेपेटाटिस का टीका ड्रॉप बनाकर पिला जाए। देवताओं की कमी नहीं, गुलाबों की कमी नहीं.. ये दुनिया ही गुलाबों ने अपनेलिए बनाई है। ये दुनिया देवताओं ने अपने लिए गढ़ी है।
इसमें नागफनियों के लिए स्पेस नहीं है।
देवताओं की दुनिया में गुलाबो की दुनिया में फ्लाईओवर हैं, वहां साइकिल के लिए स्पेस नहीं है। गुलाबों की दुनिया में नजाकत है नफासत है, वहां भदेस होना बेवकूफी है, वैसे ही जैसे हाथ से खाना।
कैक्टस को आजकल गमलों में लगाते हैं। नहीं, गमलों में लगने के लिए बना ही नहीं है कैक्टस।
बिना खाद बिना पानी, बिना माली के खुद उगता है कैक्टस। इसकी नियति है, सुनसान में उगना, औरजब फूलता है तो इसका सौन्दर्य किसी कदर गुलाब से कम नहीं होता। निराला ने इसी वजह से तो गरिआया है गुलाब को,
अबे सुन बे गुलाब,
भूल मत गर पाई खुशबू
रंगो-आब।
---
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट
डाल पर बैठा इतरा रहा कैपिटलिस्ट।
कैक्टस को देखिए, कांटों से भरा होता है। कांटे तो गुलाब मे भी होते हैं, लेकिन वो होते है गुलाब की रक्षा के लिए। उन कांटो की जो नज़ाकत होती है ना फूल तो फूल, कांटा भी नफीस-सॉफिस्टिकेटेड लगता है। नागफनी का कांटा छू लीजिए कभी। बिच्छू के दंश सा होता है। नानी जीवित हो दिवंगत, याद आनी तय है।
तो ग़िला किस बात का, किस बात की शिकायत, अगर आपके अंदर है नागफ़नी तो फिर किसी की परवाह क्यों...शान से सर उठा कि जिएं। बाजुओं में ताकत तो होगी ही, फिर काहे के लिए किसी को मुंह जोहना...।
लड़का इत्ता भाषण देकर सड़क के किनारे बैठ गया। लाल मिट्टी में अदरक बहुत बढ़िया होती है, हल्दी भी। देसी जंगली हल्दी औषधीय गुणो की होती है। उसकी खुशबू...पैकेट वाली हल्दी से एकदम अलहदा। लड़की के हाथ में एक और भटकटैया का फूल थमाया उसने, शीशे पर नज़र गई तो देखा उसका खुद का गला नीला-नीला सा हो रहा था।
5 comments:
गुलाबों का प्रोपेगेंडा है ये कि ये दुनिया ही गुलाबों ने अपने लिए बनाई है. उनकी बाजुओं में कैक्टस जितना दम जो नहीं है. दया के पात्र हैं बेचारे. :)
अच्छा लगा पढ़ कर
काँटा कठोर है, तीखा है..
(कैक्टस को देखिए, कांटों से भरा होता है। कांटे तो गुलाब मे भी होते हैं, लेकिन वो होते है गुलाब की रक्षा के लिए। उन कांटो की जो नज़ाकत होती है ना फूल तो फूल, कांटा भी नफीस-सॉफिस्टिकेटेड लगता है। नागफनी का कांटा छू लीजिए कभी। बिच्छू के दंश सा होता है। नानी जीवित हो दिवंगत, याद आनी तय है।).............Sabse accha laga padh ke..:)
sabki apni niyati apni karni fir kya gulab se sikayat or cactus sahanubhuti,kaanton ke beech phool ugane ki niyat to dono ki hai haan GULAB premika ki tarah hifajat chahta hai aur cactus mahadev ki tarah mast hai..... Lekin kisi vyakti ki tulna sirf cactus ya gulab se sambhab nahi ho sakta kyonki ye MANAV kab Harishringar se naagfani ban das le aur phir Money plant ban aapke pair pakar le koi nahi janta ye MANAV hai mayavi MANAV.
सुन्दर पोस्ट! बिन्दास!
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