बहुत जाहिर सी बात है कि मुलायम सिंह यादव प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। इसमें कोई गलत बात भी नहीं। कौन सा नेता होगा जो प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहेगा। बहरहाल, तीन बार उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके नेता के लिए प्रधानमंत्री बनना कोई बड़ी बात नहीं होनी चाहिए।
लेकिन, मुलायम प्रधानमंत्री बनेंगे कैसे,क्या वो गफलत में है या हवाई किले बना रहे हैं। फिलहाल, लोकसभा में उनकी जेबी पार्टी समाजवादी पार्टी के बाईस सांसद हैं। चार तो उनके घर से ही हैं। और देवेगौड़ा जब बन सकते हैं तो मुलायम क्यों नहीं। दरअसल, बनना तो मुलायम को देवेगौड़ा वाले वक्त में ही था, लेकिन उस वक्त उनके दो यादव सजातीयों, शरद और लालू ने भांजी मार दी थी।
अब 2012 के विधानसभा चुनावों के नतीजों ने मुलायम की महत्वाकांक्षाओं को नए पंख दिए। लेकिन जानना दिलचस्प होगा कि आखिर मुलायम के इस सपने की ज़मीनी हकीकत क्या है।
फिलहाल, तो जिसतरह की राजनीतिक गतिविधियां हैं देश की, और जिसतरह देश का मिजाज़ है--हालांकि लोकसभा चुनाव में अभी चार महीने का वक्त है और इतने में तो यमुना में न जाने कितना पानी बह जाना है--कांग्रेस जनाधार खो रही है, भाजपा की सीटें बढ़ रही हैं, लेकिन मोदी के पास इतनी सीटें नहीं होगी कि वह खुद प्रधानमंत्री बन पाएँ।
खुद मोदी भी इस गफलत में नहीं होंगे कि बिना 200 का आंकड़ा पार किए, उनको कोई 7 रेसकोर्स के आसपास फटकने भी देगा। तो भाजपा अगर सरकार बनाने में नाकाम रही, तो बनेगा तीसरा मोर्चा। लेकिन तीसरे मोर्चे के नेता मुलायम तभी बन सकते हैं, जब उनके पास कम से कम 32-35 सीटें हों।
लेकिन, सपा को इतनी सीटें आएँगी कैसे। 2012 के विधानसभा चुनाव में और 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी फैक्टर काम करेगा, और पूर्वांचल, जहां सपा की अच्छा-खासा जनाधार है, वहां की चुनावी आबोहवा में बदलाव दिख रहा है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में26 जिलें हैं और 27 लोकसभा सीटें हैं, पिछली बार बुरे प्रदर्शन के बावजूद सपा ने इस इलाके में 9 सीटें हासिल की थीं।
मध्य उत्तर प्रदेश में कुल 21 में से 5 सीटें सपा के कब्जे में हैं, बुंदेलखंड से सपा के दो, और रूहेलखंड से एक सांसद है। पश्चिमी यूपी में सपा की हालत पिछली बार भी खस्ता ही थी। कुल 24 सीटों में से सपा केो सिर्फ 5 सीटें हासिल हुई थी।
इस बार सपा को पश्चिमी यूपी में मुजफ्फरनगर दंगों से बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है। दंगो की आंच ने मुलायम की छवि को तार-तार किया है, जो शायद उनके प्रधानमंत्री बनने के इरादों को पलीता लगा सकता है।
--जारी
लेकिन, मुलायम प्रधानमंत्री बनेंगे कैसे,क्या वो गफलत में है या हवाई किले बना रहे हैं। फिलहाल, लोकसभा में उनकी जेबी पार्टी समाजवादी पार्टी के बाईस सांसद हैं। चार तो उनके घर से ही हैं। और देवेगौड़ा जब बन सकते हैं तो मुलायम क्यों नहीं। दरअसल, बनना तो मुलायम को देवेगौड़ा वाले वक्त में ही था, लेकिन उस वक्त उनके दो यादव सजातीयों, शरद और लालू ने भांजी मार दी थी।
अब 2012 के विधानसभा चुनावों के नतीजों ने मुलायम की महत्वाकांक्षाओं को नए पंख दिए। लेकिन जानना दिलचस्प होगा कि आखिर मुलायम के इस सपने की ज़मीनी हकीकत क्या है।
फिलहाल, तो जिसतरह की राजनीतिक गतिविधियां हैं देश की, और जिसतरह देश का मिजाज़ है--हालांकि लोकसभा चुनाव में अभी चार महीने का वक्त है और इतने में तो यमुना में न जाने कितना पानी बह जाना है--कांग्रेस जनाधार खो रही है, भाजपा की सीटें बढ़ रही हैं, लेकिन मोदी के पास इतनी सीटें नहीं होगी कि वह खुद प्रधानमंत्री बन पाएँ।
खुद मोदी भी इस गफलत में नहीं होंगे कि बिना 200 का आंकड़ा पार किए, उनको कोई 7 रेसकोर्स के आसपास फटकने भी देगा। तो भाजपा अगर सरकार बनाने में नाकाम रही, तो बनेगा तीसरा मोर्चा। लेकिन तीसरे मोर्चे के नेता मुलायम तभी बन सकते हैं, जब उनके पास कम से कम 32-35 सीटें हों।
लेकिन, सपा को इतनी सीटें आएँगी कैसे। 2012 के विधानसभा चुनाव में और 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी फैक्टर काम करेगा, और पूर्वांचल, जहां सपा की अच्छा-खासा जनाधार है, वहां की चुनावी आबोहवा में बदलाव दिख रहा है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में26 जिलें हैं और 27 लोकसभा सीटें हैं, पिछली बार बुरे प्रदर्शन के बावजूद सपा ने इस इलाके में 9 सीटें हासिल की थीं।
मध्य उत्तर प्रदेश में कुल 21 में से 5 सीटें सपा के कब्जे में हैं, बुंदेलखंड से सपा के दो, और रूहेलखंड से एक सांसद है। पश्चिमी यूपी में सपा की हालत पिछली बार भी खस्ता ही थी। कुल 24 सीटों में से सपा केो सिर्फ 5 सीटें हासिल हुई थी।
इस बार सपा को पश्चिमी यूपी में मुजफ्फरनगर दंगों से बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है। दंगो की आंच ने मुलायम की छवि को तार-तार किया है, जो शायद उनके प्रधानमंत्री बनने के इरादों को पलीता लगा सकता है।
--जारी
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