मालदा के पूरे इलाके में 24 अप्रैल को 6 सीटों पर
मतदान होना था। इन सीटों में शामिल थे, जंगीपुर, रायगंज, मालदा उत्तर, मालदा
दक्षिण, मुर्शिदाबाद और बालुरघाट। इस पूरे इलाके में 57 फीसद आबादी भी मुसलमानों
की है। इन छह में से 5 पर कांग्रेस का कब्जा रहा था। याद रहे कि पूरे बंगाल में
कांग्रेस को छह सीटें हासिल हुई थीं, वह भी तब जब वह सीपीएम विरोध की लहर पर
तृणमूल कांग्रेस के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी।
इस इलाके में विवाह की औसत आयु है बारह से तेरह साल।
मालदा जिले में किया गया वर्धमान विश्वविद्यालय का एक अध्ययन बताता है कि 42 फीसद
लड़कियों का शादी 18 साल से पहले हो जाती है।
मुसलमान इस इलाके में बड़ा वोट बैंक हैं। लेकिन नेता
लोग दोषारोपण करने में माहिर हैं। मालदा दक्षिण से बीजेपी के उम्मीदवार थे
बिष्णुपद राय। उन्हें शायद अपनी उम्मीदवारी की संजीदगी का पता भी नहीं था। बच्चों
की मौत पर उनका एक ही जबाव था, दिल्ली में मोदी आएंगे तो सब ठीक हो जाएगा। आमीन।
मौजूदा सांसद और कांग्रेस की मजबूत उम्मीदवार मौसम
बेनज़ीर नूर के पास अपनी उपलब्धियों की एक कितबिया है। वह कितबिया पलटती हैं। कहती
हैं, हमने इस इलाके में एम्स की तर्ज पर अस्पताल खुलवाने को कोशिश की, लेकिन
पश्चिम बंगाल की तृणमूल सरकार ज़मीन अधिग्रहण में अड़ंगे डाल रही है।
मौसम बेनज़ीर नूर अपने सौन्दर्य को लेकर बहुत सजग
दिखती है। उनके खास चाकर बताते हैं कि वह रोज़ ब्यूटी पार्लर जाती हैं। उनके
समर्थक बहुतेरे हैं, कुछ का कहना है कि उन्होंने बहुत काम किया है। कुछ ने कहा
उनका ग्लैमर काम कर जाएगा। कितबिया के आंकड़े भी बताते हैं कि मौसम नूर ने एमपीलैड
का ज्यातार पैसा अच्छे कामों में खर्च किया है। मिसाल के तौर पर, पीसीसी सड़कें,
हैंडपंप, एम्बुलेंस...क़ब्रिस्तान...और हां, श्मशान भी,--मौसम नूर इंटरव्यू में
श्मशान शब्द पर ख़ासा ज़ोर देती हैं।
मालदा के इलाके में कुपोषण की स्थिति गंभीर है। गरीबी
है, पिछड़ापन है, विकास के रास्ते नहीं खुले हैं, खेती की स्थिति खराब है तो
कुपोषण तो होगा ही। कम उम्र में विवाह और कुपोषण, मानो आग में घी। पैदा होने वाले
बच्चे कम वज़न के होते हैं। जाहिर है, नवजात बच्चे मौत के मुंह में जाते हैं।
लेकिन लहरें चल रही हैं, तूफ़ान है, झंझावात है...कोई
मोदी लहर कह रहा है, कोई ममता के तूफ़ान की बात कर रहा है। किसी को सेहत की फिक्र
नहीं। हो भी क्यों, संप्रदाय और जाति के नाम पर वोट पड़ेंगे तो फिक्र किसी को
क्यों होगी।
जंगीपुर से प्रणब मुखर्जी चुनाव जीते थे। कानाफूसी
करने वालों ने कहा था कि उनकी शख्सियत ही ऐसी थी कि प्रणब दा के खिलाफ सीपीएम ने
भी मृगांक चटोपाध्याय जैसे कमजोर खिलाड़ी को मैदान में उतारा था। दादा जीत गए थे।
प्रणब मुखर्जी जब राष्ट्रपति बन गए उसके बाद उनकी
खाली सीट को भरने के लिए उनके ही विधायक बेटे अभिजीत मुखर्जी को टिकट दिया गया।
साल 2012 में हुए उप-चुनाव में अभिजीत बहुत कम अंतरो से जीत हासिल कर पाए थे।
जंगीपुर और मुर्शिदाबाद के ही आसपास वह इलाका है जहां
मशहूर पीतल के बर्तनों का काम होता है। ऐसा ही एक गांव है—कांसमणि पाड़ा।
कांसमणिपाड़ा की कहानी बंगाल के कुटीर उद्योग के मरते
जाने की एक दास्तान है।
जारी...
2 comments:
बहुत बढ़िया मित्र। बहुत कम पत्रकार हैं जो स्वास्थ्य और खेती जैसे मुद्दों पर लिखते हैं। साधु-साधु।
u look so cute
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