Tuesday, September 29, 2015

परिवार, जाति, और बिपाशा और टीवी पर दिखती टल्ली लड़की

मैं अब अमूमन टीवी पर खबरें देखने की जहमत नहीं उठाता। खासकर निजी चैनलों पर। खबरों का मुहावरा सिर्फ डीडी के पास रह गया है। लेकिन आदत है जो जल्दी जाती नहीं। आदतन टीवी खोला, इस उम्मीद में कि टीवी पर कुछ खबरें देख लूं।

मुझे हैरत नहीं, गुस्सा आया कि अमूमन हर चैनल पर एक ही पट्टी चल रही थी, अगले आधे घंटे बाद नशे में टल्ली लड़की का थाने में हंगामा। विजुअल इम्पैक्ट रहा होगा कुछ उस खबर में। मुंबई देहरादून हर जगह लड़की का नशे में होना खबर बन गया।

टीवी पत्रकारिता में खबर का बिकाऊ होना एक बड़ी शर्त हो गई है। वैसे हैरत होनी नहीं चाहिए। जिस देश में, पैर की बिवाईयां सूखे खेतों में पड़ी दरारों से अधिक महत्वपूर्ण हो, जिस देश में सिर में डैंड्रफ की समस्या किसानों की आत्महत्या से अधिक अहम हो, जहां गोरेपन की क्रीम को महिला के आत्मविश्वास के लिए जरूरी माना जाता हो और जहां एक लड़के-लड़की के रिश्ते की नींव डियोडरेंट की खुशबू हो, वहां नशे में टल्ली लड़की का हेडलाइन होना बनता ही है।

अब इस विषय पर ज्यादा टिप्पणी की जाए तो भी टीवी पर खबरों का कुछ होने वाला नहीं है। बुधवार को नीतीश कुमार भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिखे। अठारह-उन्नीस साल बाद नीतीश को पता चला कि बीजेपी आरएसएस के कहने पर चलती है। नीतीश की दिक्कत है कि विकास पुरूष वाला उनका तमगा उनसे छिन गया है और वह हवा-हवाई मुद्दे उछालने की कोशिश कर रहे हैं।

इस बीच, खबरों के नाम पर बिहार में महागठबंधन, एनडीए और कथित तीसरे मोर्चे ने अपने प्रायः सारे उम्मीदवारों के नामों की सूची जारी की। टिकट पाने वालों की बल्ले-बल्ले हुई है, बेटिकट कभी प्रेस वार्ता में ही रोए-चीखे-चिल्लाए। बिहार की जनता दम साधे हुई है।

जनता दम साधे देख रही है कि बिहार में एक बार फिर परिवार का दबदबा है। लालू के दोनों बेटे, तेजस्वी और तेजप्रताप टिकट पा गए हैं। यह बात भी कोई हैरत वाली नहीं है। पप्पू यादव इसी वजह से लालू से नाराज़ हुए थे। लालू ने दो टूक कह ही दिया था, उनके बेटे चुनाव नहीं लड़ेंगे तो क्या भैंस चराएंगे।

लेकिन सिर्फ आरजेडी ही नहीं, वंशवाद की बेल एनडीए के घटक दलों लोजपा और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा में भी काफी हरी है। और उतनी ही ताकतवर यह जेडीयू और कांग्रेस तक है।

लगभग सारी पार्टियों में कार्यकर्ताओं की हैसियत तो कौड़ी के तीन की ही है। इन कार्यकर्ताओ ने पहले बाप के लिए बैनर पोस्टर लगाए अब बेटे और बेटियों के लिए लगाएंगे।

एलजेपी में 3 प्रत्याशी तो पासवान परिवार के ही हैं। रामविलास पासवान के छोटे भाई पशुपति पारस, अलौली से और सांसद रामचंद्र पासवान के बेटे प्रिंस की कल्याणपुर सुरक्षित सीट से चुनाव मैदान में उतर रहे हैं। सहरसा जिले की सोनबरसा सुरक्षित सीट से सरिता पासवान को टिकट मिला है वो रामविलास की रिश्ते में बहू लगती हैं। इस सूची में इस लेख के छपने तक संभवतया कुछ दामाद भी जुड़ जाएं। लोजपा के पूर्व सांसद सूरजभाऩ के साले रमेश सिंह को विभूतिपुर से टिकट मिला है। खगड़िया से लोजपा सांसद महबूब अली कैसर ने अपनी पुश्तैनी सिमरी बख्तियारपुर की सीट पर बेटे यूसुफ को उतारा है।

हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा यानी हम के प्रमुख जीतन राम मांझी के बेटे संतोष और पिता पुत्र शकुनी चौधरी और उनके बेटे राजेश उर्फ रोहित भी उम्मीदवार हैं। चकाई और जमुई सीट पर पेंच हैं। दोनों सीटों पर नरेंद्र सिंह के दो बेटे बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। मांझी ने अपनी ओर से पांच उम्मीदवारों की लिस्ट बीजेपी को भेजी है उसमें इन दोनों के नाम हैं।

बीजेपी में ब्रह्मपुर सीट से सीपी ठाकुर हों या नंदकिशोर यादव, चंद्रमोहन राय हों या हुकुमदेव नारायण यादव या फिर जनार्दन सिंह सिग्रीवाल सब अपने बेटों के लिए जीतोड़ कोशिशों में लगे हैं।

महागठबंधन में लालू परिवार के अलावा आरजेडी सांसद जयप्रकाश नारायण यादव के भाई विजय प्रकाश को जमुई से आरजेड़ी का टिकट मिला है। बरबीघा सीट से पूर्व सांसद राजो सिंह के पोते सुदर्शन को टिकट दिया गया है।

वंशवाद तो खैर अब बिहार की राजनीति में आम बात है लेकिन चिंता की बात यही है कि चुनाव अभी भी जाति के आधार पर ही लड़ा जा रहा है। कोई मुद्दा उछालने की बात करे, तो बिजली-पानी-सड़क यानी बिपाशा ही चुनावी मुद्दा है। जनता बुनियादी मसलों के लिए वोट देने का मन बना भी रही हो, लेकिन नेताओं के लिए परिवार ज्यादा अहम है। शायद उनके मन में यही बात रही हो कि परिवार ठीक करो, तो दुनिया ठीक हो जाएगी। उधर, इंतजार इस बात का भी है टीवी वाले नशे में धुत्त किसी और लड़की का वीडियो खोज निकालें, चुनाव के बीच जनता का रसरंजन भी तो होते रहना चाहिए। इंशाअल्लाह।

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