Sunday, May 8, 2016

इक शहर की हसरतें- मेरा मधुपुर

"मैं इक शहर हूं
मेरी भी कुछ हसरतें हैं
कभी मुझसे भी पूछकर तो देखो
कि मैं चाहता क्या हूं !"
----(उत्तम पीयूष)

क्या मधुपुर उस तांगेगाडी की तरह नहीं है जो हमारे कहने पर हांका जाता है पर न तो हम गाडीवान की इच्छाएं जान पाते हैं और न गाडी खींचने वाले घोडे की ख्वाहिशें ही समझ पाते हैं।

आज पता नहीं क्यों ऐसा लगने लगा है कि फिर से एक ऐसी पीढी -एक ऐसा जेनरेशन आया है जो मधुपुर की संवेदनाओं से बावस्ता है।फिक्र है मधुपुर की।आये दिन मैं देखता हूं कि मेरे कई नौजवान दोस्त अपनी चिन्ताएं,अपना प्यार और अपनी जिग्यासाएं जो मधुपुर से जुडी होती हैं -वे पोस्ट करते रहते हैं।यह अच्छा शगुन है इजहार ए इश्क का।यह शुभ लक्षण है मित्रो।

मधुपुर को लेकर यदि कोई शहरी भावुक न हो, इमोशनल न हो तो चिंता होती है। पर यह भावुकता महज किसी आरोप-प्रत्यारोप के लिए नहीं, मधुपुर के हाल-ए-दिल को अहसास करने के लिए हो तो बेहतर होगा। हमारी चिन्ताओं का रेंज सदियों का हो तभी कुछ नया गढा जा सकेगा।आपको शायद पता हो कि हमारे इंजीनियर्स जब नदियों पर पुल बनाते हैं तो यह भी आकलन करते हैं कि इस नदी में सौ साल में कब ,कितना, किस हाईट तक पानी आया था और आगे के दशकों में इसकी क्या संभावनाएं हैं।

मधुपुर को गढने /बनाने वालों ने भी मधुपुर को पहले अपने तसव्वुर में बसाया था,ख्वाबों में संजोया था ।एक चालू विग्यापन की तर्ज पर कहें तो-"यूं ही नहीं मैं मधुपुर हो जाता हूं।"

द मेकिंग आफ मधुपुर की कथा जब जब समय मिला आप दोस्तों से शेयर करता जाऊंगा। पर, इस वक्त मैं चाहता हूं कि हम सभी जो मधुपुरी हैं और अपने अपने तरह से अपनी 'मधुपुरियत ' की फिक्र करते हैं,जगह जगह चाय की चुस्कियों के साथ चिन्ता करते हैं-कुछ बेहतर करना चाहते हैं,अपने शहर को सुन्दर ,हसीन और आत्मीय बनते देखना चाहते हैं -कुछ रचनात्मक -कुछ क्रियेटिव करना चाहते हैं तो थोडा करीब आईए -अरे एकदम पास। अरे हां,मनोज जी,मंडल जी,यादव जी या स्टेशन की इस्पेशल चाय पिला रहा भाई पर क़रीब तो आईए।एक बात बोलूं ?? अपने शहर से अकेले में पूछिए -वह आपके कान में कुछ कहना चाह रहा।इसीलिए तो कह रहे जरा करीब आईए।यह करीब होना भी जरूरी है।

मधुपुर शहर कह रहा जरा धीमी जुबान से ही सही -पर कह रहा-"भईया। एक ठो हमारा भी "जन्मदिन" मना दो न। कितना अच्छा लगता है जब सबका "हैप्पी बर्थ डे"मनता है।पार्टी होती है,खुशियां आती है,लोग बधाईयां देते हैं और गिफ्ट भी देते हैं।मुझे भी मन करता है अपने जन्म का केक काटूं और आपलोगों को खिलाऊं।"
लीजिए,गरमागरम चाय भी आ गयी।मुझे लगता है शहर ए मधुपुर की बात सुननी /समझनी चाहिए।वो जो जिन्दा है जमाने से हमारी खिदमत में /उसके लिए कुछ ऐसा करें यह तो फर्ज है।

मधुपुर का जन्मदिन मनाना दरअसल मधुपुर का पुनर्उद्भव जैसा कुछ होगा।हम मधुपुर के इतिहास से जुडेंगे,उसे महसूस करैंगे और इतिहास को आने वाली नस्लों में रोपैंगे।यह दिन मधुपुर का होगा।मधुपुर के प्रत्येक नागरिक का होगा।सब खुश होंगे और सब अपने अपने तरीके से कुछ न कुछ कंट्रीब्यूट करैंगे।यह हम सबका उत्सव होगा।

जो इतिहास में था उस चेतना,उस संवेदना,उस जज्बात का यह "नया जन्मदिन"होगा।

--उत्तम कुमार पीयूष

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