नल को दमयंती से प्यार था और दमयंती को नल से. न कभी मिले, न कभी देखा...बस आवाज़ सुनी. दोनों सपनों में एक-दूसरे को देखते, कभी कश्मीर की वादियों में मिलते. चिनार के नीचे बिछी बर्फ़ीली चादर पर अंधेरी रातों में चलते, नश्तर चुभोती हवा में हाथ थामे सबसे चमकते तारे को निहारते और फिर सीसीडी के भीतर जाकर हॉट-चाकलेट और ब्राउनी ऑर्डर करते.
दमयंती ने पसीने-देहगंध और परछाईं वाले इंसान नल को चुन लिया.
#टाइममशीन #एकदा #प्रेमकहानी
वे कभी जंगलों में मिलते, कभी रेगिस्तान में. कभी दमयंती नल को अपने हाथों से आलू के परांठे खिलाती, कभी दोनों साथ झूले पर झूलते हुए अतीत और भविष्य बतियाते.
लेकिन दोनों कभी मिले नहीं थे.
...और अब दमयंती का स्वयंवर था. स्वयंवर में दिलेर और सुंदर राजकुमारों, कमनीय देवताओं की भीड़ में नल कहीं दुबका हुआ था.
देवताओं को भी दमयंती पसंद थी और उनतक दमयंती के मुहब्बत के क़िस्से पहुंच चुके थे. आनन-फानन में देवताओं ने नल का बाना धर लिया. दमयंती परेशान. पांच-पांच नल जैसे लोग! कौन है असली?
दमयंती पास गई तो देखाः पांच में से सिर्फ एक की परछाईं है, माथे पर पसीने की बूंद है, देह की एक ख़ास गंध है, जिसे सूंघकर दमयंती ने कहा था- "मुझे तुम पसंद हो. तुम्हारी गंध भी."
दमयंती ने पसीने-देहगंध और परछाईं वाले इंसान नल को चुन लिया.
#टाइममशीन #एकदा #प्रेमकहानी
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