भस्मांकुर
बारात शहर के ठीक बीचों-बीच बाज़ार से गुज़र रही थी. बारात में, भूत-प्रेत- राक्षस- किन्नर-चुड़ैलें- किच्चिनें...बैताल, ब्रह्मराक्षस हैं...कोई दांत किटकिटाता...कोई शंख बजाता...कोई दुंदुभी पीटता...
गौरा तोर अंगना/ बड़ अजगुत देखल तोर अंगना
एक दिस बाघ-सिंह करे हुलना/ दोसर बरद छह सेहो बऊना...
गौरा तोर अंगना
उधर, महल में बड़ी गहमा-गहमी थी। बारात दरवज्जे पर आ गई है. गौरी की सखियां बेहद हैरत में थीः दूल्हा! मत मूछो दिदिया। पूरी देह में राख, माला की जगह नाग, बाल तो जाने कब से नहीं धोए...रथ की जगह बैल पर सवार हैं दूल्हे शिव.
सखियां ठठाकर हंस पड़ीं. लेकिन गौरी की आंखों में खुशियां दमक रही थीं. शिव को जो नहीं जानता, वह उनके रूप पर जाएगा, जो जानता है वह मन को पढ़ेगा. मेरे शंकर! मेरे भोलेः गौरी का मन हो रहा था वह भी झरोखे में जाकर नंदी बैल पर सवार भोलेनाथ को देखे,
सखियां गा उठी थीं,
शिव छथि लागल दुआरी, गे बहिना,
शिव छथि लागल दुआरी
इंद्र चंद्र दिग्पाल वरूण सब,
चढ़ि-चढ़ि निज असवारी गे बहिना
शिव छथि लागल दुआरी...
पिता पर्वतराज ने शिव से उनका वंश पूछा था. शिव कहीं शून्य में ताकते चुपचाप बैठे रहे. फुसफुसाहटें तेज़ हो गईं. सन्नाटा खिंच गया।
गौरी की मां मैना ने नारद को टहोका दियाः अब कुछ बोलते क्यों नहीं? बताइए न पहुना के खानदान के बारे में?
नारद ने कहाः ‘पर्वतराज, भगवान महादेव स्वयंभू हैं. इन्होंने खुद की रचना की है. इनका एक ही वंश है – ध्वनि. प्रकृति में अस्तित्व में आने वाली पहली चीजः ध्वनि... यह ध्वनि है- ओम्...
शिव छथि लागल दुआरी
इंद्र चंद्र दिग्पाल वरूण सब,
चढ़ि-चढ़ि निज असवारी गे बहिना
शिव छथि लागल दुआरी...
पिता पर्वतराज ने शिव से उनका वंश पूछा था. शिव कहीं शून्य में ताकते चुपचाप बैठे रहे. फुसफुसाहटें तेज़ हो गईं. सन्नाटा खिंच गया।
गौरी की मां मैना ने नारद को टहोका दियाः अब कुछ बोलते क्यों नहीं? बताइए न पहुना के खानदान के बारे में?
नारद ने कहाः ‘पर्वतराज, भगवान महादेव स्वयंभू हैं. इन्होंने खुद की रचना की है. इनका एक ही वंश है – ध्वनि. प्रकृति में अस्तित्व में आने वाली पहली चीजः ध्वनि... यह ध्वनि है- ओम्...
नारद ने कहा ओम्...और उसके साथ ही पूरी प्रकृति से आवाज़ आई
ओम...हवा ने, नदियो ने, पेड़ों ने, समंदर ने, पत्थरों ने, चिड़ियो ने, तितलियो ने...सबने एक साथ दोहरायाः ओम्...
पर्वतराज समझ गए. वक्त जयमाला का आ पहुंचाः लेकिन गौरी
एक पल के लिए रुकी थी. जयमाला से ठीक पहले गौरी ने शिव के
सामने अपनी हथेली खोल दी थी. उनकी हथेली में थोड़ी राख थी।
कामदेव की देह की राख.
शिव मुस्कुराए और उन्होंने वह राख चुटकियों मे उठाकर विवाह मंडप के नीचे डाल दियाः सबने देखा, वहां एक अंकुर निकल आया था.
ओम...हवा ने, नदियो ने, पेड़ों ने, समंदर ने, पत्थरों ने, चिड़ियो ने, तितलियो ने...सबने एक साथ दोहरायाः ओम्...
पर्वतराज समझ गए. वक्त जयमाला का आ पहुंचाः लेकिन गौरी
एक पल के लिए रुकी थी. जयमाला से ठीक पहले गौरी ने शिव के
सामने अपनी हथेली खोल दी थी. उनकी हथेली में थोड़ी राख थी।
कामदेव की देह की राख.
शिव मुस्कुराए और उन्होंने वह राख चुटकियों मे उठाकर विवाह मंडप के नीचे डाल दियाः सबने देखा, वहां एक अंकुर निकल आया था.
फिर शिव ने सबको कहाः कामदेव बिना शरीर जगत के हर जीव में मौजूद रहेंगे...प्रेम के रूप में. गौरी ने शिव को और शिव ने गौरी को जयमाला पहनाई तो गणों ने जयघोष कियाः हर-हर महादेव!
1 comment:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (20-07-2017) को ''क्या शब्द खो रहे अपनी धार'' (चर्चा अंक 2672) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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