मैं
निर्जन में,
झुकते कंधों वाला बरगद.
मोनोलिथ पहाड़ में
थोड़ी सी जगह में उग आया.
मैं,
निपट सुनसान में
खुद से बातें करता.
मेरी शाखों पर आकर बैठते तो हैं परिन्दे
मुझे भाता है
उनका आना-बैठना-कूकना-उछलना
पर, परिन्दें नहीं समझते मेरी भाषा
पेड़ की भाषा मैं मौन मुखर होता है.
जो समझ सके
पेड़ की भाषा
इंतजार कर रहा हूं
मैं
निर्जन में,
झुकते कंधों वाला बरगद.
मोनोलिथ पहाड़ में
थोड़ी सी जगह में उग आया.
मैं,
निपट सुनसान में
खुद से बातें करता.
मेरी शाखों पर आकर बैठते तो हैं परिन्दे
मुझे भाता है
उनका आना-बैठना-कूकना-उछलना
पर, परिन्दें नहीं समझते मेरी भाषा
पेड़ की भाषा मैं मौन मुखर होता है.
जो समझ सके
पेड़ की भाषा
इंतजार कर रहा हूं
मैं
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