अगर पार्टी ने वसुंधरा का साथ दिया होता तो तस्वीर थोड़ी और बेहतर होती. मोदी अपनी जनसभाओं में कांग्रेस, राहुल, नीम कोटेड यूरिया की बात करते रहे, लेकिन वसुंधरा का नाम लेने से बचते रहे. अमित शाह ने भरे मंच से कहा था कि वसुंधरा आपने काम तो किया है, लेकिन अपना काम बता नहीं पाईं.
राजस्थान में कुल 200 सीटें हैं, इसमें से 199 सीटों पर चुनाव हुए थे. एक उम्मीदवार की मौत हो जाने के कारण 1 सीट पर मतदान नहीं कराया जा सका था.
आंकड़ों के मुताबिक कांग्रेस और उसके साथी 101 सीटें जीत गए हैं. वहीं, बीजेपी 75 सीटों पर आगे चल रही है. राजस्थान में 26 सीटों पर निर्दलीय और छोटी पार्टियों के उम्मीदवार आगे हैं जिससे तय है कि भाजपा से नाराजगी वाले सारे वोट कांग्रेस को ट्रांसफर नहीं हुए हैं. अगर ऐसा होता तो कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिल सकता था.
दूसरा, ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि राजस्थान में भाजपा का सूपड़ा साफ हो जाएगा, वैसा भी होता नहीं दिख रहा है. रुझानों को देखकर तो ऐसा लग रहा है कि अगर पार्टी ने वसुंधरा का साथ दिया होता तो तस्वीर थोड़ी और बेहतर होती. मोदी अपनी जनसभाओं में कांग्रेस, राहुल, नीम कोटेड यूरिया की बात करते रहे, लेकिन वसुंधरा का नाम लेने से बचते रहे.
अमित शाह ने तो भरे मंच से कह दिया था कि वसुंधरा आपने काम किया है, लेकिन अपना काम बता नहीं पाईं. राजस्थान में कांग्रेस को सीटें भले ही ज्यादा मिलती दिख रही हों, लेकिन दोनों के वोट प्रतिशत में मामूली अंतर है. कांग्रेस को 39.2 फीसदी मत मिले हैं वहीं भाजपा को 38.8 फीसदी वोट मिले हैं.
तो फिर भाजपा की संभावित हार की वजहें क्या रही हैं?
वसुंधरा राजे और भाजपा ने राजस्थान में पिछले चार साल में अपने वोट बैंक (जाट, गुर्जर और राजपूत) को हर तरह से दुलारकर रखने की कोशिश की. पर यह तीनों ही जातियां (जो राजस्थान की आबादी में करीबन 20 फीसदी हैं और जिनका असर पड़ोसी राज्यों हरियाणा और मध्य प्रदेश में भी है) भाजपा से नाराज हैं. सचिन पायलट के आने से गुर्जर समुदाय भी भाजपा से दूर हो रहा है.
जाटः मारवाड़ क्षेत्र समेत राज्य के 100 विधानसभा सीटों पर जाटों का असर है. यह समुदाय भाजपा से गुस्सा है, क्योंकि पार्टी में इनकी कोई खास जगह नहीं है. किसान होने की वजह से कृषि संकट भी एक सबब है. राजपूतों के मुकाबले कम तवज्जो मिलने से भी इस समुदाय में नाराजगी थी.
राजपूतः यह समुदाय अमूमन भाजपा का वफादार रहा है. हर विधानसभा में 15-17 राजपूत भाजपा के टिकट पर विधायक बनते रहे हैं. 2013 में कुल 27 राजपूत विधायकों में से 24 भाजपा से थे. पर इस जाति में बेचैनी है क्योंकि राजपूत नेताओं के खिलाफ मुकदमे किए गए. गैंगस्टर आनंदपाल की मुठभेड़ में मौत के बाद भी इस समुदाय में रोष है और करणी सेना पद्मावत मसले के बाद से सरकार से नाराज है.
जाटों के साथ राजपूतों का संघर्ष भी चल रहा है. भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे जसवंत सिंह की उपेक्षा और मानवेंद्र सिंह का कांग्रेस में जाना भी बड़ा फैक्टर है. राजपूत समुदाय करीब 100 विधानसभा सीटों पर मौजूद है.
गुर्जरः 50 सीटों पर इस समुदाय की मौजूदगी है. आरक्षण के मुद्दे पर गूजर भाजपा से नाराज थे. पुलिस फायरिंग और आपसी संघर्ष में 2007 के बाद से 70 से अधिक गूजर मारे गए हैं. सचिन पायलट को भावी मुख्यमंत्री के रूप में संभावना से कांग्रेस की तरफ इनका चुनाव अभियान में झुकाव बढ़ता देखा गया था. इन सारे फैक्टर भाजपा की संभावनाओं में पलीता लगाने वाले साबित हुए हैं.
चुनावी लिहाज से राजस्थान को मोटे तौर पांच क्षेत्रों में बांटा जाता है.
इनमें से एक तो जयपुर ही है. इस क्षेत्र में 19 सीटें हैं जिनमें शाम 6 बजे तक के रुझानों के मुताबिक, भाजपा के पास 6, कांग्रेस के पास 11 और अन्य के पास 2 सीटें जाती दिख रही हैं.
दूसरे चुनावी क्षेत्र मध्य राजस्थान में भी तीन इलाके हैं. धूंधड़ इलाके में अजमेर, सवाई माधोपुर, करौली, टोंक और दौसा 5 जिले हैं. इस इलाके में मीणा फैक्टर प्रभावी है. ऐसा माना जाता है कि मीणाओं का झुकाव भाजपा की तरफ था लेकिन इस इलाके में भाजपा को 8, कांग्रेस को 13 और अन्य को 3 सीटों पर बढ़त/जीत हासिल हुई है. ऐसे में आंकड़े कुछ और ही कहानी बयान करते हैं.
मध्य राजस्थान के मत्स्यांचल में 3 जिले हैं, भरतपुर, अलवर और धौलपुर. इनमें 22 सीटें हैं. यह इलाका सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का इलाका है. मीणा फैक्टर भी यहां काम करता है. फिर भी, यहां भाजपा 4, कांग्रेस 10 और अन्य 7 सीटों पर आगे है. तो इसका अर्थ है कि मंदिर मुद्दा यहां चला नहीं.
तीसरे क्षेत्र हाड़ौती में 4 जिले हैं, जिनमें कोटी बूंदी बाराँ और झालावाड़ हैं. इसमें 17 सीटें हैं और कांग्रेस बनाम भाजपा के सीधी टक्कर वाली 13 सीटें हैं, 4 सीटें बहुकोणीय मुकाबले वाली रही हैं. लेकिन भाजपा 9 और कांग्रेस 8 सीटों पर जीतती दिख रही है. यानी बाकी को कोण वाली पार्टियों को कुछ खास हासिल नहीं हुआ है.
तीसरा चुनावी इलाका, दक्षिणी राजस्थान है, जिसे मेवाड़ भी कहा जाता है.
यह इलाका हर पांच साल पर जनादेश बदल देता है. माना जाता है कि जो पार्टी मेवाड़ जीत लेती है वही सरकार बनाती है. खासकर सालुम्बर सीट खास सलिए है क्योंकि 1977 से जो पार्टी यह सीट जीतती है सरकार उसी की बनती आई है. मेवाड़ में 7 जिले हैं और 35 सीटें हैं. इनमें उदयपुर, डुंगरपुर, भीलवाड़ा, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा के इलाके हैं. यहां 27 सीटों पर सीधी टक्कर थी. भीलवाड़ा सीपी जोशी के प्रभाव का इलाका है. 2009 में यहां भाजपा 9 और कांग्रेस 24 सीटों पर जीती थी. लेकिन इस बार भाजपा 19, कांग्रेस 13, अन्य 3 सीटों पर जीतती नजर आ रही है.
पश्चिमी राजस्थान का इलाका कांग्रेस के दिग्गज नेता अशोक गहलोत का है. यहां किसी तीसरी सियासी पार्टी का कोई वजूद नहीं है. कुल 43 सीटें इस इलाके में हैं जिनमें से 33 सीटों पर सीधी टक्कर थी. इस इलाके में ओबीसी और जाट वोट बेहद निर्णायक होते हैं. इसके अलावा मेघवाल, राजपुरोहित और राजपूतों का वोट भी अहम होता है.
इस इलाके के तहत जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, नागौर, जालौर, पाली और सिरोही जिले आते हैं. 2008 में भाजपा को 19 और कांग्रेस को 20 सीटें मिली थीं. अन्य को 4 सीटें हासिल हुई थीं. लेकिन इस बार 2018 में भाजपा को 15, कांग्रेस को 26 और अन्य को 3 सीटें मिलती दिख रही हैं.
उत्तरी राजस्थान में शेखावटी और बीकानेर दो जोन हैं. शेखावटी में सीकर, झूंझनूं और चुरू जिले हैं जिनमें 21 सीटें हैं. इस जोन में कांग्रेस को 14, भाजपा को 5 और अन्य को 2 सीटें मिलती दिख रही हैं.
बीकानेर जोन में बीकानेर, गंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों में कुल 18 सीटें हैं. यहां भाजपा को 9, कांग्रेस को 6 और अन्य को 2 सीटें मिलती दिख रही हैं.
इस इलाके के जाट वोटबैंक का कांग्रेस की तरफ झुकाव था जबकि राजपूत अमूमन भाजपा को वोट करते रहे है.
वैसे, राजस्थान में अब बहस यह है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बनेंगे या सचिन पायलट, लेकिन कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, सीटों की संख्या के मद्देनजर जादूगर कहे जाने वाले गहलोत को ही कमानी सौंपी जा सकती है. युवा सचिन थोड़ा और इंतजार करने के लिए कहे जा सकते हैं.
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आंकड़ों के मुताबिक कांग्रेस और उसके साथी 101 सीटें जीत गए हैं. वहीं, बीजेपी 75 सीटों पर आगे चल रही है. राजस्थान में 26 सीटों पर निर्दलीय और छोटी पार्टियों के उम्मीदवार आगे हैं जिससे तय है कि भाजपा से नाराजगी वाले सारे वोट कांग्रेस को ट्रांसफर नहीं हुए हैं. अगर ऐसा होता तो कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिल सकता था.
दूसरा, ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि राजस्थान में भाजपा का सूपड़ा साफ हो जाएगा, वैसा भी होता नहीं दिख रहा है. रुझानों को देखकर तो ऐसा लग रहा है कि अगर पार्टी ने वसुंधरा का साथ दिया होता तो तस्वीर थोड़ी और बेहतर होती. मोदी अपनी जनसभाओं में कांग्रेस, राहुल, नीम कोटेड यूरिया की बात करते रहे, लेकिन वसुंधरा का नाम लेने से बचते रहे.
अमित शाह ने तो भरे मंच से कह दिया था कि वसुंधरा आपने काम किया है, लेकिन अपना काम बता नहीं पाईं. राजस्थान में कांग्रेस को सीटें भले ही ज्यादा मिलती दिख रही हों, लेकिन दोनों के वोट प्रतिशत में मामूली अंतर है. कांग्रेस को 39.2 फीसदी मत मिले हैं वहीं भाजपा को 38.8 फीसदी वोट मिले हैं.
तो फिर भाजपा की संभावित हार की वजहें क्या रही हैं?
वसुंधरा राजे और भाजपा ने राजस्थान में पिछले चार साल में अपने वोट बैंक (जाट, गुर्जर और राजपूत) को हर तरह से दुलारकर रखने की कोशिश की. पर यह तीनों ही जातियां (जो राजस्थान की आबादी में करीबन 20 फीसदी हैं और जिनका असर पड़ोसी राज्यों हरियाणा और मध्य प्रदेश में भी है) भाजपा से नाराज हैं. सचिन पायलट के आने से गुर्जर समुदाय भी भाजपा से दूर हो रहा है.
जाटः मारवाड़ क्षेत्र समेत राज्य के 100 विधानसभा सीटों पर जाटों का असर है. यह समुदाय भाजपा से गुस्सा है, क्योंकि पार्टी में इनकी कोई खास जगह नहीं है. किसान होने की वजह से कृषि संकट भी एक सबब है. राजपूतों के मुकाबले कम तवज्जो मिलने से भी इस समुदाय में नाराजगी थी.
राजपूतः यह समुदाय अमूमन भाजपा का वफादार रहा है. हर विधानसभा में 15-17 राजपूत भाजपा के टिकट पर विधायक बनते रहे हैं. 2013 में कुल 27 राजपूत विधायकों में से 24 भाजपा से थे. पर इस जाति में बेचैनी है क्योंकि राजपूत नेताओं के खिलाफ मुकदमे किए गए. गैंगस्टर आनंदपाल की मुठभेड़ में मौत के बाद भी इस समुदाय में रोष है और करणी सेना पद्मावत मसले के बाद से सरकार से नाराज है.
जाटों के साथ राजपूतों का संघर्ष भी चल रहा है. भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे जसवंत सिंह की उपेक्षा और मानवेंद्र सिंह का कांग्रेस में जाना भी बड़ा फैक्टर है. राजपूत समुदाय करीब 100 विधानसभा सीटों पर मौजूद है.
गुर्जरः 50 सीटों पर इस समुदाय की मौजूदगी है. आरक्षण के मुद्दे पर गूजर भाजपा से नाराज थे. पुलिस फायरिंग और आपसी संघर्ष में 2007 के बाद से 70 से अधिक गूजर मारे गए हैं. सचिन पायलट को भावी मुख्यमंत्री के रूप में संभावना से कांग्रेस की तरफ इनका चुनाव अभियान में झुकाव बढ़ता देखा गया था. इन सारे फैक्टर भाजपा की संभावनाओं में पलीता लगाने वाले साबित हुए हैं.
चुनावी लिहाज से राजस्थान को मोटे तौर पांच क्षेत्रों में बांटा जाता है.
इनमें से एक तो जयपुर ही है. इस क्षेत्र में 19 सीटें हैं जिनमें शाम 6 बजे तक के रुझानों के मुताबिक, भाजपा के पास 6, कांग्रेस के पास 11 और अन्य के पास 2 सीटें जाती दिख रही हैं.
दूसरे चुनावी क्षेत्र मध्य राजस्थान में भी तीन इलाके हैं. धूंधड़ इलाके में अजमेर, सवाई माधोपुर, करौली, टोंक और दौसा 5 जिले हैं. इस इलाके में मीणा फैक्टर प्रभावी है. ऐसा माना जाता है कि मीणाओं का झुकाव भाजपा की तरफ था लेकिन इस इलाके में भाजपा को 8, कांग्रेस को 13 और अन्य को 3 सीटों पर बढ़त/जीत हासिल हुई है. ऐसे में आंकड़े कुछ और ही कहानी बयान करते हैं.
मध्य राजस्थान के मत्स्यांचल में 3 जिले हैं, भरतपुर, अलवर और धौलपुर. इनमें 22 सीटें हैं. यह इलाका सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का इलाका है. मीणा फैक्टर भी यहां काम करता है. फिर भी, यहां भाजपा 4, कांग्रेस 10 और अन्य 7 सीटों पर आगे है. तो इसका अर्थ है कि मंदिर मुद्दा यहां चला नहीं.
तीसरे क्षेत्र हाड़ौती में 4 जिले हैं, जिनमें कोटी बूंदी बाराँ और झालावाड़ हैं. इसमें 17 सीटें हैं और कांग्रेस बनाम भाजपा के सीधी टक्कर वाली 13 सीटें हैं, 4 सीटें बहुकोणीय मुकाबले वाली रही हैं. लेकिन भाजपा 9 और कांग्रेस 8 सीटों पर जीतती दिख रही है. यानी बाकी को कोण वाली पार्टियों को कुछ खास हासिल नहीं हुआ है.
तीसरा चुनावी इलाका, दक्षिणी राजस्थान है, जिसे मेवाड़ भी कहा जाता है.
यह इलाका हर पांच साल पर जनादेश बदल देता है. माना जाता है कि जो पार्टी मेवाड़ जीत लेती है वही सरकार बनाती है. खासकर सालुम्बर सीट खास सलिए है क्योंकि 1977 से जो पार्टी यह सीट जीतती है सरकार उसी की बनती आई है. मेवाड़ में 7 जिले हैं और 35 सीटें हैं. इनमें उदयपुर, डुंगरपुर, भीलवाड़ा, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा के इलाके हैं. यहां 27 सीटों पर सीधी टक्कर थी. भीलवाड़ा सीपी जोशी के प्रभाव का इलाका है. 2009 में यहां भाजपा 9 और कांग्रेस 24 सीटों पर जीती थी. लेकिन इस बार भाजपा 19, कांग्रेस 13, अन्य 3 सीटों पर जीतती नजर आ रही है.
पश्चिमी राजस्थान का इलाका कांग्रेस के दिग्गज नेता अशोक गहलोत का है. यहां किसी तीसरी सियासी पार्टी का कोई वजूद नहीं है. कुल 43 सीटें इस इलाके में हैं जिनमें से 33 सीटों पर सीधी टक्कर थी. इस इलाके में ओबीसी और जाट वोट बेहद निर्णायक होते हैं. इसके अलावा मेघवाल, राजपुरोहित और राजपूतों का वोट भी अहम होता है.
इस इलाके के तहत जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, नागौर, जालौर, पाली और सिरोही जिले आते हैं. 2008 में भाजपा को 19 और कांग्रेस को 20 सीटें मिली थीं. अन्य को 4 सीटें हासिल हुई थीं. लेकिन इस बार 2018 में भाजपा को 15, कांग्रेस को 26 और अन्य को 3 सीटें मिलती दिख रही हैं.
उत्तरी राजस्थान में शेखावटी और बीकानेर दो जोन हैं. शेखावटी में सीकर, झूंझनूं और चुरू जिले हैं जिनमें 21 सीटें हैं. इस जोन में कांग्रेस को 14, भाजपा को 5 और अन्य को 2 सीटें मिलती दिख रही हैं.
बीकानेर जोन में बीकानेर, गंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों में कुल 18 सीटें हैं. यहां भाजपा को 9, कांग्रेस को 6 और अन्य को 2 सीटें मिलती दिख रही हैं.
इस इलाके के जाट वोटबैंक का कांग्रेस की तरफ झुकाव था जबकि राजपूत अमूमन भाजपा को वोट करते रहे है.
वैसे, राजस्थान में अब बहस यह है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बनेंगे या सचिन पायलट, लेकिन कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, सीटों की संख्या के मद्देनजर जादूगर कहे जाने वाले गहलोत को ही कमानी सौंपी जा सकती है. युवा सचिन थोड़ा और इंतजार करने के लिए कहे जा सकते हैं.
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