Monday, October 7, 2019

नदीसूत्रः साबरमती नदी के पानी में पल रहा है सुपरबग

नदियों में प्रदूषण के खतरों के कई आयाम बन रहे हैं. एक अध्ययन बता रहा है कि प्रदूषण की वजह से गुजरात की साबरमती नदी में ई कोली बैक्टिरिया में एंटी-बायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी क्षमता विकसित हो गई है. जो इसे संभवतया सुपरबग में बदल देगी. यह एक संभावित जैविक बम साबित हो सकता है


भारतीय मनीषा में एक पौराणिक कथा है कि एक बार भगवान शिव देवी गंगा को लेकर गुजरात लेकर आए थे, और इससे ही साबरमती नदी का जन्म हुआ. कुछ सदी पहले इसका नाम भोगवा था. भोगवा का नाम बदला तो इसके साथ नए नाम भी जुड़े.


गुजरात की वाणिज्यिक और राजनीतिक राजधानियां; अहमदाबाद और गांधीनगर साबरमती नदी के तट पर ही बसाए गए थे. एक कथा यह भी है कि गुजरात सल्तनत के सुल्तान अहमद शाह ने एक बार साबरमती के तट पर आराम फरमाते वक्त एक खरगोश को एक कुत्ते का पीछा करते हुए देखा. उस खरगोश के साहस से प्रेरित होकर ही 1411 में शाह ने अहमदाबाद की स्थापना की थी. बाद में, पिछली सदी में साबरमती नदी गांधीवादियों और देशवासियों का पवित्र तीर्थ बना क्योंकि महात्मा गांधी ने इसी नदी के तट पर साबरमती आश्रम की स्थापना की थी.

लेकिन पिछले कुछ दशकों में यह परिदृश्य भी बदल गया है.

साबरमती नदी का अपशिष्ट साफ करने के लिए बना एसटीपी. फोटो सौजन्यः सोशल मीडिया




साबरमती अब दूसरे वजहों से खबरों में आती है. पहली खबर तो यही कि साबरमती का पेटा सूख गया है और अब इस नदी में इसका नहीं, नर्मदा का पानी बहता है. दूसरी खबर, गुजरात सरकार ने इसके किनारे रिवरफ्रंट बनाया है. और अब इस नदी के किनारे अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव से लेकर न जाने कितने आयोजन होते हैं. शी जिनपिंग को भी प्रधानमंत्री ने यहीं झूला झुलाया था. 2017 में विधानसभा चुनाव के वक्त यहीं रिवरफ्रंट पर मोदी जी सी-प्लेन से उतरे थे.

बहरहाल, अगर आप कभी अहमदाबाद गए हों तो खूबसूरत दिखने वाले रिवरफ्रंट पर गए जरूर होंगे. क्या पता आपने नदी के पानी पर गौर किया या नहीं. विशेषज्ञ कहते हैं कि साबरमती में बहने वाला पानी अत्यधिक प्रदूषित है. इस बारे में एनजीओ पर्यावरण सुरक्षा समिति और गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जीपीसीबी) ने एक संयुक्त अध्ययन किया है अपने अध्ययन में साबरमती में गिरने वाले उद्योगों से गिरने वाले अपशिष्ट और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से गिरने वाले पानी से जुड़े तथ्य खंगाले. 

इस साल की शुरुआत में आई डिजास्ट्रस कंडीशन ऑफ साबरमती रिवर नाम की इस रिपोर्ट में कई खतरनाक संदेश छिपे हैं. रिपोर्ट कहती है कि अहमदाबाद के वासणा बैराज के आगे बने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांथट जिसकी क्षमता 160 मिलियन लीटर रोजाना (एमएलडी) उसमें से गिरने वाले पानी में बायो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) की मात्रा 139 मिग्रा प्रति लीटर है. केमिकल ऑक्सी जन डिमांड (सीओडी) 337 मिग्रा प्रति लीटर है और टोटल डिजॉल्वड सॉलिड (टीडीएस) की मात्रा 732 मिग्रा प्रति लीटर है. 

वैसे राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) का मानक पानी बीओडी की मात्रा अधिकतम 10 मिग्रा प्रति लीटर तक की है. वैसे नदी के पानी में सल्फेीट की मात्रा 108 मिग्रा प्रति लीटर और क्लोरराइड की मात्रा 186 मिग्रा प्रति लीटर बताई गई है. 

इसी तरह वासणा बैराज के आगे नदी में इंडस्ट्री के गिरने वाले पानी की जांच गई तो सामने आया कि इसमें बायो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) की मात्रा 536 मिग्रा प्रति लीटर है. केमिकल ऑक्सीकजन डिमांड (सीओडी) की मात्रा 1301 मिग्रा प्रति लीटर, टोटल डिजॉल्वड सॉलिड (टीडीएस) की मात्रा 3135 मिग्रा प्रति लीटर पाई गई है. सल्फेतट की मात्रा 933 मिग्रा प्रति लीटर है, वहीं क्लोसराइड की मात्रा 933 मिग्रा प्रति लीटर है.

खास बात है कि इंडस्ट्रीफ का केमिकल युक्तम कितना पानी रोजाना साबरमती में गिर रहा है इसका कोई लेखा जोखा नहीं है.

हालांकि, साबरमती में अपशिष्ट जल के ट्रीटमेंट के लिए एसटीपी बनाए गए हैं पर इससे एक अलग ही समस्या खड़ी हो रही है. एक अध्ययन यह भी बता रहा है कि इन एसटीपी में ट्रीटमेंट के दौरान बीमारी पैदा करने वाले सूक्ष्मजीव एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर लेते हैं. जाहिर है, इससे एक बड़ी समस्या खड़ी होने वाली है. 

पर्यावरण पर लिखने वाली वेबसाइट डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट में आइआइटी गांधीनगर में अर्थ साइंसेज के प्रोफेसर मनीष कुमार कहते हैं कि हमने पाया है कि प्रदूषण की वजह से सीवेज और जलाशयों में ई कोली बैक्टिरिया में मल्टी-ड्रग एंटी-माइक्रोबियल रेजिस्टेंस यानी प्रतिरोधी क्षमता विकसित हो गई है. जो इसे संभवतया सुपरबग में बदल देगी. ई कोली के सुपरबग में बदलने का क्या असर होगा? हालांकि ई कोली की अधिकतर नस्लें बीमारियों के लिए उत्तरदायी नहीं है लेकिन उनमें से कई डायरिया, न्यूमोनिया, मूत्राशय में संक्रमण, कोलेसाइटिस और नवजातों में मनिनजाइटिस पैदा कर सकते हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि यह काम सीवेज ट्रीटमेंट में क्लोरीनेशन और अल्ट्रा-वायलेट रेडिएशन के दौरान बैक्टिरिया के जीन में उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) से हुआ होगा. 

समस्या यह है कि अगर बैक्टिरिया से यह जीन ट्रांसफर किसी अलहदा और एकदम नई प्रजाति को जन्म न दे दे. यह खतरनाक होगा. 

बहरहाल, साबरमती नदी की कोख में पल रहे इन संबावित जैविक बमों की तरफ किसी का ध्यान नहीं है. भगवान शिव और गंगा की देन यह नदी अब नर्मदा से पानी उधार लेकर बह रही है. मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि साबरमती में पानी नहर के जरिए भरा जा रहा है. रिवरफ्रंट जहां खत्म होता है वहां वासणा बैराज है, जिसके सभी फाटक बंद करके पानी को रोका गया है. ऐसे में रिवरफ्रंट के आगे नदी में पानी नहीं है और न उसके बाद नदी में पानी है. वासणा बैराज के बाद नदी में जो भी बह रहा है वो इंडस्ट्री और नाले का कचरा है. नदी में गिर रहा कचरा बेहद खतरनाक है और इस पानी का उपयोग करने वाले लोगों के लिए यह नुकसान ही करेगा.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, अहमदाबाद के बाद अगले 120 किमी तक नदी में सिर्फ औद्योगिक अपशिष्ट सड़े हुए पानी की शक्ल में बहता है और यही जाकर अरब सागर में प्रवाहित होता है. 

पर नर्मदा के खाते में भी कितना पानी बचा है जो वह इस तदर्थवाद के जरिए साबरमती को जिंदा रख पाएगी, यह भी देखने वाली बात होगी.

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1 comment:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (09-10-2019) को    "विजय का पर्व"   (चर्चा अंक- 3483)     पर भी होगी। --
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
 --विजयादशमी कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'