Friday, November 22, 2019

अगर चुंबन निजी काम है तो हगना भी, दोनों खुलेआम कीजिए

यह पोस्ट चुंबन पर है. पर साथ ही पाखाने पर भी है. पर मुझे उम्मीद है आप पढ़ेंगे जरूर. आज दो ऐसी बातों पर लिखना चाहता हूं जो निजी मानी जाती हैं. एक है किस. जिसे आप अपनी सौंदर्यदृष्टि के मुताबिक चुंबन, पुच्ची, चुम्मा आदि नामों से अभिहीत कर सकते हैं. इसमें जब तक सामने वाले को पायरिया न हो, बू नहीं आती.

दूसरा निजी काम बदबूदार है. जिसकी बू आप क्या खाते हैं उस पर निर्भर करती है. वैसे यह निजी काम शुचिता से जुड़ा है पर इस विचार में कई पेच हैं. पर यह शरीर का ऐसा धर्म है जिसका इशारा भी सभ्य समाज में अटपटा माना जाता है. राजा हो या भिखारी, कपड़े खोलकर कोई इंसान जब मलत्याग करने बैठता है तो सभ्यता और सांस्कृतिक विकास की धारणाएं फीकी पड़ जाती हैं.

कम से कम हिंदी में मलत्याग के दैनिक कर्म के लिए सीधे शब्द नहीं है. पाखाना फारसी से आया है, जिसका अर्थ होता है पैर का घर. टट्टी आमफहम हिंदी शब्द है जिसका मतलब है कोई पर्दा या आड़ जो फसल की ठूंठ आदि से बना हो. खुले में शौच जाने को दिशा-मैदान जाना कहते हैं. कुछ लोग फरागत भी कहते हैं जो फारिग होने से बना है. आब को पेश करने से बना पेशाब तो फिर भी सीधा है पर लघु शंका और दीर्घ शंका जैसे शब्द अर्थ कम बताते हैं, संदेह अधिक पैदा करते हैं.

मलत्याग के लिए हगना और चिरकना जैसे शब्द भी हैं, मूलतः ये क्रिया रूप हैं और इनका उपयोग पढ़े-लिखे समाज में करना बुरा माना जाता है. इन शब्दों के साथ घृणा जुड़ी हुई है.

बहरहाल, सोचिएगा इस बात पर कि जिन सरकारी अफसरों और संभ्रांत लोगों को गरीबों की दूसरी समस्याओं से ज्यादा मतलब नहीं होता वे उनके शौचालय बनाने की इतनी चिंता क्यों करते हैं. क्या खुले में शौच जाना रुक जाए तो समाज स्वच्छ हो जाएगा?

छोड़िए, इसी के उलट हम बस इतना ही कहना चाहते हैं कि जिस देश में खजुराहो और कोणार्क की परंपरा रही है वहां किस ऑफ लव का विरोध क्यों? सहमत? चुंबन तो प्रेम का प्रतीक है न. पर खुले में चुंबन लेने से समाज में प्रेम का विस्तार होता है? अगर हां, इस प्रेम को खुलेआम अपने पिता और माता के सामने भी प्रकट करिए. अपनी बहन को भी वही करने की छूट दीजिए जो आप कर रहे हैं और अपने पिता और माती जी को भी. जली? खैर बुरा न मानिए. असल में, मसला दो सभ्यताओं के प्रतीकों का हैं. भारत के हिंदू हो या मुसलमान, जब तक हद दर्जे का और छंटा हुआ क्रांतिकारी न हो तब तक खुलेआम चुंबन को तरजीह नहीं देगा.

खुलेआम चुम्माचाटी को प्रेम का प्रतीक बताते हुए लोग कह रहे हैं कि 'किस' निजी चीज है. बिल्कुल. हम भी तो वही कह रहे हैं. किस निजी चीज है तो हगना भी निजी है. चुंबन के साथ-साथ सार्वजनिक स्थलों पर हगने की भी छूट क्रांतिकारियों को दी जाए.

(अगेन हगना शब्द पढ़े-लिखों को बुरा लग सकता है आप उस हर जगह पर मलत्याग पढ़ें जहां मैंने हगना लिखा है)

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3 comments:

Rishabh Shukla said...

बहुत सुंदर भाई....
आपका मेरे ब्लॉग पर भी स्वागत है|

https://hindikavitamanch.blogspot.com/

विकास नैनवाल 'अंजान' said...

वैसे चुंबन भी खुल्ले आम ही होता है। माँ बाप बच्चों को खुल्ले आम चूमते ही हैं। बड़े बुजुर्ग बच्चों को भी चूमते ही थे। प्रेमी प्रेमिका के चुंबन से ही फर्क पड़ता है। हाँ, कई बार भावना के अतिरेक में जोड़े बह जाते हैं लेकिन उन्हें सम्भलने को बोलो तो सम्भल भी जाते हैं।
खैर, आपने हगने की बात की तो पटरियों पर लोग हगते हुए दिख ही जाते हैं। मूतने की बात करते तो आप समझते कि मूतते हुए भी लोग दिख जाते हैं। हाँ, लेकिन आप चुंबन और हगने की तुलना किस प्रकार कर सकते हैं?? यह समझ से परे हैं। यह तो वही बात हुई कि आप कहें कि सेब को छिलकर नहीं खाया जाता तो केले को भी न खाओ। दोनों ही फल हैं।

free sing lyrics said...

अति उत्तम लेख