Monday, November 25, 2019

नदीसूत्रः कहीं गोवा के दूधसागर झरने का दूधिया पानी गंदला लाल न हो जाए

गोवा की नदियों के पारितंत्र पर खनन गतिविधियों ने बुरा असर डाला है. मांडवी और जुआरी जैसी प्रमुख नदियों में लौह अयस्क की गाद जमा होने लगी है इसके इन नदियों की तली में जलीय जीवन पर खतरा पैदा हो गया है


इन दिनों गोवा में अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव की धूम हुआ करती है. मांडवी के किनारे कला अकादमी और और पुराने मेडिकल कॉलेज के पीछे आइनॉक्स थियेटर में गहमागहमी होती है. फिल्मों के बीच थोड़ी छुट्टी लेकर लोगबाग मांडवी के तट पर टहल आते हैं. ज्यादा उत्साही लोग दूधसागर जलप्रपात भी घूमने जाते हैं. दूधसागर जलप्रपात पर ही मांडवी नदी थोड़ा ठहरती है और आगे बढ़ती है. दूधसागर यानी दूध का सागर. इस नाम के पीछे भी एक दिलचस्प किस्सा है.

बहुत पहले, पश्चिमी घाट के बीच एक झील हुआ करती थी जहां एक राजकुमारी अपनी सखियों के साथ रोज स्नान करने आती थी. स्नान के बाद राजकुमारी घड़ा भर दूध पिया करती थी. एक दिन वह झील में अठखेलियां कर ही रही थी, कि वहां से जाते एक नवयुवक की उन पर नजर पड़ गई और वह नौजवान वहीं रुककर नहाती हुई राजकुमारी को देखने लग गया.

अपनी लाज रखने के लिए राजकुमारी की सखियों ने दूध का घड़ा झील में उड़ेल दिया ताकि दूध की परत के पीछे वे खुद को छुपा सकें. कहा जाता है कि तभी से इस जलप्रपात का दूधिया जल अनवरत बह रहा है.

पर अब यह दूधिया पानी लाल रंग पकड़ने लगा है. लौह अयस्क ने मांडवी को जंजीरों में बांधना शुरू कर दिया है. लौह अयस्क का लाल रंग मांडवी के पानी को बदनुमा लाल रंग में बदलने लगा है.

माण्डवी नदी जिसे मांडोवी, महादायी या महादेई या कुछ जगहों पर गोमती नदी भी कहते हैं, मूल रूप से कर्नाटक और गोवा में बहती है. गोवावाले तो इसको गोवा की जीवन रेखा भी कहते हैं. मांडवी और जुआरी, गोवा की दो प्रमुख नदियां हैं. 

लंबाई के लिहाज से मांडवी नदी बहुत प्रभावशाली नहीं कही जा सकती. जिस नदी की कुल लंबाई ही 77 किलोमीटर हो और जिसमें से 29 किलोमीटर का हिस्सा कर्नाटक और 52 किलोमीटर गोवा से होकर बहता हो, आप उत्तर भारत की नदियों से तुलना करें तो यह लंबाई कुछ खास नहीं है. पर व्यापारिक और नौवहन की दृष्टि से यह देश की सबसे महत्वपूर्ण नदियों में से एक है और यह इसकी ताकत भी है और कमजोरी भी.

इस नदी का उद्गम पश्चिमी घाट के तीस सोतों के एक समूह से होता है जो कर्नाटक के बेलगाम जिले के भीमगढ़ में है. नदी का जलग्रहण क्षेत्र, कर्नाटक में 2,032 वर्ग किमी और गोवा में 1,580 वर्ग किमी का है. दूधसागर प्रपात और वज्रपोहा प्रपात, मांडवी के ही भाग हैं.

गोवा में खनिजों में लौह अयस्क सबसे महत्वपूर्ण हैं और राज्य के राजस्व का बड़ा हिस्सा भी. लेकिन लौह अयस्क के गाद ने राज्य की दोनों प्रमुख नदियों की सांस फुला दी है. गोवा की नदियों पर हुए एक हालिया अध्ययन कहता है कि लौह अयस्क की गाद से दोनों नदियां दिन-ब-दिन उथली होती जा रही हैं. और इसका असर नदियों की तली में रहने वाले जलीय जीवन पर पड़ने लगा है.

गोवा विश्वविद्यालय के सागर विज्ञान विभाग के एक अध्ययन में बात सामने आई है कि राज्य की बिचोलिम लौह और मैगनीज के अयस्कों की वजह से बेहद प्रदूषित है वहीं मांडवी नदी के प्रदूषकों में मूल रूप से लौह और सीसा (लेड) हैं.

बिचोलिम उत्तरी गोवा जिले में बहती है और मांडवी की सहायक नदी है. इस अध्ययन में इस बात पर चिंता जताई गई है कि दक्षिणी गोवा जिले में बहने वाली जुआरी नदी और उसके नदीमुख (एस्चुअरी) पर भी धात्विक प्रदूषण का असर होगा.

गोवा में खनिज उद्योग करीबन पांच दशक पुराना है और 2018 में मार्च में उस पर रोक लग गई थी जब सुप्रीम कोर्ट ने 88 लौह अयस्क खदानों के पट्टों का नवीकरण खारिज कर दिया था. गोवा विश्वविद्यालय के शोधार्थियों सिंथिया गोनकर और विष्णु मत्ता ने गोवा की नदियों और उसकी तली के पारितंत्र पर खनन के असर और जुआरी नदी की एस्चुअरी (जहां नदी समुद्र में मिलती है) पर धात्विक प्रदूषण के बारे में अध्ययन किया है.

यह अध्ययन रिसर्च जरनल इनवायर्नमेंट ऐंड अर्थ साइंसेज में छपा है और इसमें कहा गया है कि उत्तरी गोवा में रफ्तार से हुए खनन की वजह से प्रदूषण बढ़ा है. इस में गोवा की तीन नदियों बिचोलिम, मांडवी और तेरेखोल से नमूने लिए गए था.

अध्ययन के मुताबिक, बिचोलिम नदी में लौह और मैगनीज के साथ सीसे और क्रोमियम का भी प्रदूषण बडे पैमाने पर मौजदू है. इनमें से सीसा और क्रोमियम भारी धातु माना जाता है और इसके असर से कैंसर का खतरा होता है. जबकि मांडवी नदी में मैगनीज और सीसे का प्रदूषण है. तेरेखोल नदी (जो हाल तक प्रदूषण से पूरी तरह मुक्त थी) में तांबे और क्रोमियम (यह भी खतरनाक है) जैसे धातुओं की भारी मात्रा मौजूद है.

गौरतलब है कि इन नदियों में बड़े पैमाने पर जहाजों के जरिए अयस्कों का परिवहन किया जाता है और इससे अयस्क नदी में गिरते रहते हैं. खुले खदानों से बारिश में घुलकर अयस्कों का मलबा भी आकर नदियों में जमा होता है. इससे नदियों की तली में गाद जमा होने गई है और इसने तली के पास रहने वाले या तली में रहने वाले जलीय जीवों का भारी नुक्सान किया है.

अध्ययन के मुताबिक, जुआरी नदी के पानी में ट्रेस मेटल्स (सूक्ष्म धातुओं) की मात्रा खनन के दिनों के मुकाबले खनन पर बंदिश के दौरान में काफी कम रही हैं. इससे साफ है कि यह प्रदूषण खनन की वजह से ही हो रहा है.

मांडवी पर गोवा के लोग उठ खड़े हुए हैं. सरकार भी सक्रिय हुई है और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने भी आदेश दे दिया है. कोशिश यही होनी चाहिए कि मांडवी का जल गाद में जकड़ न जाए और दूधसागर प्रपात का जल दूधिया ही रहे, गंदला लाल न हो जाए.

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