मैं कभी बतलाता नहीं... पर परीक्षाओं से डरता हूँ मैं माँ ...|
यूं तो मैं दिखलाता नहीं ... मार्क्स की परवाह करता हूँ मैं माँ ..|
तुझे सब है पता ....है न माँ ||
किताबों में ...यूं न छोडो मुझे..
पाठों के नाम भी न बतला पाऊँ माँ |
वह भी तो ...इतने सारे हैं....
याद भी अब तो आ न पाएं माँ ...|
क्या इतना गधा हूँ मैं माँ ..
क्या इतना गधा हूँ मैं माँ ..||
जब भी कभी .इनविजिलेटर मुझे ..
जो गौर से ..आँखों से घूरता है माँ ...
मेरी नज़र ..ढूंढे कॉपी में ...सोचूं यही ..
कोई सवाल तो बन जायेगा.....||
उनसे में ...यह कहता नहीं ..बगल वाले से टापता हूँ मैं माँ |
चेहरे पे ...आने देता नहीं...दिल ही दिल में घबराता हूँ माँ ||
तुझे सब है पता .. है न माँ ..|
तुझे सब है पता ..है न माँ ..||
मैं कभी बतलाता नहीं... पर परीक्षाओं से डरता हूँ मैं माँ ...|
यूं तो मैं दिखलाता नहीं ... अंकों की परवाह करता हूँ मैं माँ ..|
तुझे सब है पता ....है न माँ ||
तुझे सब है पता ....है न माँ |
3 comments:
बहुत ही अच्छी तरह से भावों को चित्रित किया है आपने।
wa gustak wa badiya hai
कुछेक लाइना मेरे मस्तिष्क में खड़बड़ा रही हैं..
जब कोटा और रिश्वत से ही बेरा पार लगना है, तो ..
फिर मुझसे अंको की परवाह क्यों करायी जाती है, माँ..
कैसी रही यह जोड़ी ?
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