Saturday, August 2, 2008

पिता को श्रद्धांजलि..


कल मेरे पिता की पुण्यतिथि थी। मेरे पिता का १९८२ में तब निधन हो गया, जब मैं महज २ साल का था। पिता का चेहरा याद नहीं, लेकिन एक छाया जैसी महसूस करता हूं। पुनर्जन्म में मेरा यकीन नहीं॥ लेकिन अब भी उनकी उपस्थिति महसूस करता हूं।

और किसी परेशानी मे पड़ता हूं, ईश्वर को याद करने से पहले पिता को याद करता हूँ। उनकी ये उपस्थिति मेरे लिए एक देवता जैसी हो जाती है। मेरे पिता, जिन्हे मैं बाबूजी कहता हूं, देवता नहीं थे। लेकिन मेरे ख्याल से मुकम्मल इंसान थे। उनकी डायरी में निजी बातों की बजाय गरीबी और मानवता से पगी बातें हैं।

मेरे पिता कोई बहुत बड़े आदमी नहीं थे, एक क़स्बे के टिपिकल आम आदमी। लेकिन हमारे लिए एक ऐसी जोत, जो हमममें जीने की नई राह बताते चलते हैं।एक पुत्र के तौर पर ऐसा पिता पाकर में बेहद गौरवान्वित हूं। उस वक्त, जो राजनीतिक हलचल थी, उसमें भी राजनीतिक रुप से तटस्थ रहते हुए वे आम आदमी के लिए सोचते थे।

पेशे से शिक्षक मेरे पिता कभी किसी अखबार की सुर्खियों में नहीं आए, न राजनीतिक फतवेबाजी में पड़े, न इमरजेंसी के दौरान जेल जान की नौबत आई,। लेकिन परिवार के प्रति जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी बाबूजी ने सभी बच्चों में यानी हम सभी भाई-बहनों में अच्छे मानवीय मूल्य भरने की कोशिश की। मेरी मां अब भी उनकी बाते कहकर उनका उदाहरण देकर हमें गलत करने से रोकती हैं।

पिता की मृत्यु को २६ साल हो गए, लेकिन आज भी वह हमारे साथ हैं ऐसा लगता है। एक पूरी ईमानदारी से अपने जीवन के ४२ साल उन्होंने जिए, मेरी प्रार्थना है हर कोई जिए। अगर कहीं ईश्वर हैं, तो मेरी प्रार्थना है कि मेरे पिता ने जो गुण- देशभक्ति, मानवीयता और पर्यावरण के प्रति जारगुकता के गरीबी के प्रति लड़ाई के, - मुंझमें देखने चाहें वे मुझमें अगर हैं तो बने ,रहें नहीं हैं तो मुझमें आएँ।

हर जन्म में बाबूजी मेरे पिता बनें...। नमन

11 comments:

admin said...

मुंझमें देखने चाहें वे मुझमें अगर हैं तो बने ,रहें नहीं हैं तो मुझमें आएँ।हर जन्म में बाबूजी मेरे पिता बनें...।

आपके लफजों को सलाम करता हूं। मेरे दिल से बस इतना ही एक ही बात निकल रही है, आमीन।

नीरज गोस्वामी said...

आप के विचार इतने अच्छे हैं ये ही आपकी अपने पिता को सच्ची श्रधांजलि है....जो हमें दिखाई नहीं देते शायद वो हमारे सबसे करीब होते हैं...आप के बाबूजी को नमन.
नीरज

pallavi trivedi said...

आपके पिताजी सचमुच ही आसपास होंगे!मुझे भी अक्सर ऐसा ही महसूस होता है!अच्छा लगा आपके अपने पिताजी को इतनी शिद्दत से याद करना!हमारे अपने इस दुनिया में न रहकर भी हमारे दिलों में हमेशा जिंदा रहते हैं!

राज भाटिय़ा said...

आप के पिता जी को हमारी ओर से भी श्रधांजलि,आप के लेख से लगता हे आप के पिता जी,एक सच्चे ओर इमानदार इन्सान थे,तभी आप के लेखो मे भी सच झलकता हे,धन्यवाद,फ़िर से आप के बाबुजी कॊ नमन

संजय शर्मा said...

आपके पिताजी आपमें मौजूद हैं केवल आपमें ही नही उन विद्यार्थियों में भी झलक दिखती होगी जिसने उन्हें पढ़ा है .सतत पढ़े जाने की जरूरत है अपने पिता को .

कुश said...

पिता, दो अक्षर स्वयं में एक ग्रंथ.. आपके पिताजी को हमारी तरफ से हार्दिक श्रद्दांजलि.. इस उमीद के साथ जिए की आपके पिताजी हमेशा आपके साथ है..

शोभा said...

भावपूर्ण शैली में लिखा है। आपकी भावनाएँ वंदनीय हैं। सस्नेह

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आपकी पिताको दी भावपूर्ण और सच्ची श्रध्धाँजलि को
हमारे भी श्रध्धाभरे नमन !
- लावण्या

Udan Tashtari said...

पिता जी को हमारी ओर से भी श्रृद्धांजलि एवं नमन.

Unknown said...

Apne pitajee ko yaad karke aapne
dikhaya hai ki aap ek sachche pita ke sachche putr hai.apne maa ka biswas banae rakhhe&pita ke padchinho par chale.yahi hamaree subhkamna hai.bhagban apke pita kee atma ko shanti de.

मै क्या जानू said...

really a touching one....