Saturday, August 2, 2008

शिबू सोरेन- ना ख़ुदा मिला ना विसाले सनम..

सोरेन के लिए यह लाईन बेहद सटीक बैठती है। ना खुदा मिला ना विसाले सनम, ना इधर के रहे ना उधर के... यूपीए के विश्वास मत प्रस्ताव में पक्ष में वोट देकर अपनी गोटी लाल करने का इरादा शिबू ने जाहिर किया। लेकिन सोनिया और सरकार उनपर कोई ध्यान ही नहीं दे रही। गुरुजी ने सोचा था, एक तीर से दो शिकार॥।

झारखंड में मुख्यमंत्री का पद एक नगरवधू की तरह है, खुद उस पर कब्जा जमा लें, और अपने दो सांसदों को केद्र में मंत्री पद दिलवा दें। झारखड में एक निर्दलीय मुख्यमंत्री बना बैठा है। दो दिनों से सोरेन दिल्ली में अपने बाकी के चार सासंदों के साथ लाईन में लगे बैठे हैं॥ पर सोनिया जी भाव ही नहीं दे रहीं। मिलने का वक्त ही नही मिल रहा। अभी कुछ हफ्ते पहले ही विश्वास प्रस्ताव से पहले उनका कथित १२ मांगें मान ली गई थीं।


लेकिन झारखंड मुक्ति मोर्चा को अंदेशा भी न था कि सबकुछ इतनी जल्दी बदल जाएगा। इन्ही सोरेन के लिए पूरी कॉन्ग्रेस ने पलक-पांवडे बिचा दिए थे। अब झारखंड की राजनीति करने की सार्वजनिक इच्छा ज़ाहिर करने के बावजूद यूपीए उन्हे भाव नहीं दे रहा। झामुमो के ही अंदर भारी खींचतान मची है। खुद झारखंड में सोरेन को दूर रखने के लिए कई घटक तैयार हो गए हैं।


पार्टी के भीतर ही महत्वाकांक्षा की टकराहट शुरु हो गई है। सभी सांसद खुद को मंत्रिमंडल में जगह दिलवाने की फिराक में हैं। अब दो-तीन दिनों के भीतर केंद्र उनकी नहीं सुनता है , तो सोरेन क्या करेगे? तीखे तेवर अपनाएंगे? लेकिन कांग्रेस तो उनका इस्तेमाल कर चुकी, अपने वादे से मुकर जाए तो सोरेन करेंगे क्या?


जो भी हो, ऐसी स्थिति में चुप रहना सोरेन के लिए हितकर नहीं होगा। राज्य की कमान उनके हाथ में हो तभी बात बनेगी, वरना झारखंड में एंटी-इंकम्बेंसी फैक्टर उन्हे लील जाएगा। लेकिन यूपीए के लिए तो सोरेन -मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं... वाला गाना गा रहे हैं।

5 comments:

रंजना said...

सही कहा आपने.वैसे जो हुआ हो रहा है,बहुत ही अच्छा हो रहा है.मरी हुई अंतरात्मा के साथ ख़ुद को झारखण्ड प्रदेश के भाग्य विधाता कहने ,मानने वाले ये लोग कितने बेशर्म बेगैरत और राज्य को लूट कर अपनी पीढियों को तारने कि जुगत में लगे इतने व्यस्त हैं कि इन्हे इतना भी देखने की फुर्सत नही कि जनता बेवकूफ नही है,सब देख सुन जान रही है.
शीबू ही क्या,इन सारे झारखण्ड के लालों ने मिलकर सत्ता पर काबिज हो प्रदेश को जिस मोड़ पर आज लाकर खड़ा कर दिया है,इतना तो लालू पन्द्रह सालों में भी नही कर पाये थे.

चाणक्य said...

उनको खुदा मिले हैं , खुदा की जिन्हें तलाश ! इनको तो बस एक बक्सा नोट हज़ार की मिले .

rakhshanda said...

खुदा से इन्हें मतलब होता तो ये ऐसे कहाँ होते,जो चाहिए बस इसी दुनिया में जी भर के चाहिए..चाहे बदले में कितना भी गिरना पड़े...

vipinkizindagi said...

sahi chot hui hai soren ke saath....

Gajendra said...

सिबू सोरेन एक ऐसे शख्स हैं जिन्होंने अपनी कब्र खुद ही खोद ली। मुझे याद है जब नवभारत टाइम्स अखबार पटना से पहली बार प्रकाशित हुआ था और पहले अंक में काफी भारी भड्कम विशेषांक आया था। सिबू सोरेन गुरुजी थे, शिक्षक, गुरु फिल्म वाले नहीं। आदिवासियों को पढ्ने के लिए प्रेरित करते थे, वरना जो नहीं पढेगा उस आदिवासी का अंगूठा वो काट लेंगे, ऐसा प्यार भरा फरमान था उनका। एक आदर्श चरित्र। पर अब तो "गुरु" फिल्म के गुरू हो गए हैँ।

गुस्ताख जी के लिए:
मंजीत जी,

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গজেন্দ্র ঠাকুব