Tuesday, August 5, 2008

मंगल ठाकुर की मैथिली कविता

मांगिक पेट भरैय छी यौ
जौं शिव जनताह हमर कलेष
तौं दुख हरताह यौ
एसगर दिवस बिताबैं मंगल
दुख की गाइयब यौ
दुख दारुण अछि हमर महादेव
जौ दुख हरता यौ

2 comments:

Gajendra said...

माँग कर भरता हूँ पेट
यदि शिव बूझेँगे मेरा क्लेष
तो (शिव) क्लेष हरण करेंगे (मेरा)
एकला दिन काट रहा है मँगल (मैं,कवि)
दुख क्या गाऊँ मैं
दुख मेरा दारुण है
देखूँ (शिव) दुःख हरेगा क्या

वाह गुस्ताखजी

ggajendra@videha.com

kumar Dheeraj said...

एक के बाद एक बम घमाको से दिल वालो का शहर दहल उठा । धमाका इतना खौफनाक कि २६ लोगो को जाने गवानी पड़ी औऱ १०० से अधिक घायल लोग अस्पताल में जिन्दगी औऱ मौत से लड़ रहे है । ये धमाका कई सवाल खड़ा करता है कि न केवल दिल्ली बल्कि पूरे देश का कोई शहर महफूज नही है । जिस शहर का नाम ले ले वही धमाका हुआ है । मालेगांव,जयपुर ,बंगलुरू,अहमदाबाद ,दिल्ली ......ताजा मिसाल पेश कर रहा हूं। अब हम ये मान ले कि हम महानगर मे रहते है और कभी भी काल के गोद में समा सकते है । हमलोग जान को हथेली में लेकर चलते है । आखिर इतने बड़े देश में सारा का सारा खूफिया से लेकर इं‍टेलीजेंस ब्यूरो तक फेल है ।आखिर हम किसके सहारे है । गृहमंती अपना बयान दे चुके है ...लग रहा है कि चार साल पहले भी यही बोले थे । बेचारे को कपड़ा बदलना भाड़ी पर रहा है ..मामले को इतना तूल नही देना चाहिए था ..वे भी आम इंसान है ..कपड़े के शौकीन है ,बदलते रहते है । उनके पास कपड़े है वे बदलते है जिनके पास नही है नही बदलते है । बम में मरने वालो को तो कोई जाकर देख सकता है वहां देखना ही तो है ..प्रधानमंती से लेकर सोनिया जी तक कोई जाकर देख सकती है । जो होने का था वह हो गया । फिर २०-३० आदमी के मरने से पाटिल साहब अपना कपड़ा बदलना छोड़ दे । ये तो मीडिया का कमाल है कि मामले को इतना बढा कर पेश किया गया बरना इस देश में कितने बच्चे रोज भूख से मरते है ..कभी आपने मीडिया के मुख से सुना है। उसके लिए शिवराज पाटिल साहव क्या करेगे । हर जगह भूखमरी और गरीबी है तो उसके लिए पाटिल साहब दोषी ङै । उनका अपना अलग विभाग है ...अगली बार उन्हे कपड़ा मंती बना दीजिएगा ..उस पर भी वे गुस्सा नही करेगे । बेचारे चुनाव जीतकर नही आये है तो आप जो मन है कह लीजिए । खैर कोई बात नही है बेचारे गला फाड़कर कह रहे है कि सोनिया का हाथ उनके सर पर है ।चिंता की कोई बात नही है। आप को तो टेलीविजन के माध्यम से रोज कहा जा रहा है कि आप अपनी जान-माल की जिम्मेवारी खुद रखे फिर आप पाटिल साहव पर इतना गुस्सा क्यो हो रहे है ..समझ नही आ ऱहा है ।धमाके हुए है जिन्दगी जल्द पटरी पर लौटकर आ जाएगी । हम अपनी तहजीब और संस्कार को बनाए हुए है । मुझे तो यह लगता है कि आपको गृहमंती का कपड़ा बदलना अच्छा नही लगता है