Friday, October 3, 2008

इस हफ्ते की फिल्में- द्रोण और किडनैप

शुक्रवार की बजाय गुरुवार को रिलीज़ हुई फिल्म द्रोण कई मायनों में एक बडी़ फिल्म है। बडे़ सितारे, बडा़ बैनर, स्पेशल इफैक्ट और विॾापन पर बडा़ खर्च...फिल्म से उम्मीदें भी बडी़ हैं.. लेकिन इसके रिजल्ट कितने बड़े होंगे यह अभी साफ होना बाकी है।
बॉलिवुड में फैंटेसी या एडवेंचर फिल्में कम ही बनती हैं लेकिन निर्देशक गोल्डी बहल की द्रोण उस कमी को एक हद तक पूरा करती है। द्रोण को आप स्टोरी लाईन की बजाय बेहतरीन दृश्यों के लिए कुछ दिनों तक ज़रूर याद रखेंगे।
फिल्म के लेखक फंतासी और सुपर हीरो फिल्म बनाने के मसले पर उलझ गए लगते हैं। सुपर हीरो यानी छोटे बच्चन को अधिक ताकतवर दिखाने के लिए खलनायक का भी ताकतवर होना जरुरी है, लेकिन फिल्म मंे के के मेनन खलनायक कम विदूषक ज्यादा लगे हैं। फिल्म की हीरोईन प्रियंका भी बोर करती हैं राहत की बात ये है कि अभिषेक बच्चन ने अपना किरदार संजीदगी से निभाया है।
फिल्म के गाने वैभव मोदी ने लिखे हैं और गाने अच्चे बन पड़े हैँ।
द्रोण एक औसत फिल्म है और पब्लिसिटी की वजह से कमाई तो कर लेगी लेकिन फिल्म बहुत दिनों तक जनता-जनार्दन के दिलो-दिमाग़ पर छाई रहेगी इसमें संदेह है।
रिलीज़ हुई दूसरी फिल्म है किडनैप। फिल्म के निर्देशक हैं संजय गढ़वी.. धूम और धूम टू जैसी फिल्मों के वजह से इनसे बड़ी उम्मीदें थीं, लेकिन किडनैप में इन्होंने पूरी तरह निराश किया है।
फिल्म एक लड़के की बदले की कहानी है, और बॉलिवुड के लिहाज से इस कहानी में बहुत संभावनाएं थीँ, लेकिन लेखक शिवानी बथिजा इसे भुना नहीं पाईँ। प्लॉट के लिहाज से फिल्म संजय दत्त की ही ज़िंदा के करीब नजर आ रही है। फिल्म बढिया शुरुआत के बाद बिखरती चली जाती है। संजय दत्त अदाकारी में असहज दिखे हैं और मीनिषा लांबा को मिसकास्ट किया गया है। वह न तो सॼह साल की लड़की दिखती है और न ही उनके चेहरे पर अपहृत होने के बाद का डर उभर पाया है।
लेकिन इमरान खान की अदाकारी ठंडे हवा की झोंके की तरह ताज़गी देती है। लेकिन अकेले उनकी एक्टिंग फिल्म को बॉक्स ऑक्स ऑफिस पर नहीं खींच पाएगी। इमरान के प्रदर्शन को छोड़ दें तो बाकी की फिल्म निराश करती है।

2 comments:

kumar Dheeraj said...

वेगूसराय से आगे बढ़ते ही जीरो माईल मिल जाता है । जीरो माईल पर रामधारी सिंह दिनकर की शानदार प्रतिमा स्थापित है जो बरअक्स सभी गुजरने वाले लोगो का ध्यान अपनी और खीच लेती है ।शायद इतनी भव्य प्रतिमा किसी कवि या लेखक की पूरे विहार में नही बनी हुई है ।दिनकर जी का जन्म यही के पास के गांव सिमरिया में हुआ था । इसी गांव से पढ़कर दिनकर जी राष्‍‍‍टकवि कहलाए ।
मौका २३ सितम्बर का था । दिनकर की जन्मशताब्दी के मौके पर प्रभास जोशी और अशोक वाजपेयी सरीखे लेखक वेगूसराय पहुंचे । इस दिन को खुशनुमा बनाने के लिए दूर-दूर से लोग सिमरिया पहुंचे थे । दिल्ली से भी कुछ लेखक और विद्वान पहुंचे । सभी लोगो ने अपनी राय ऱखी । जोशी और वाजपेयी जी ने भी दिनकर और उनकी कविताओ के संबंध में अपनी बेवाक टिप्पणी रखी । हालांकि वारिस ने मजा कुछ खराब जरूर कर दिया था कुछ ऐसे भी विद्वान थे जो यह कह रहे थे कि इस स्थिति में प्रोगाम संभव नही हो सकता है । लेकिन उस भयंकर वारिस में भी लोग मानने को तैयार नही थे । लोग जोशी जी और वाजपेयी जी के विचारो को सुनना चाहते थे । तेज होती मुसलाधार वारिस से पंडाल घटा की भांति गरज रहा था लेकिन लोग मानने को तैयार नही थे । आखिरकार अगले दिन प्रोगाम सम्पन्न किया गया ।
यहां के लोगो का कवि,साहित्य के प्रति काभी प्रेम रहा है और कायम है जिसका मिसाल यहां से ८ किलोमीटर की दूरी पर स्थित गोदरगांवा गाव है जहां की विप्लवी पुस्तकालय का जोड़ा शायद विहार में नही है और अगर गांव की बात की जाये तो पूरे देश में नही होगा । इसी साल वहां प्रगतिशील लेखक संघ का सम्मेलन हुआ था । देश भर से विद्वान वहां जुटे थे । शायद आम जनता के जेहन में यह आया भी नही होगा कि गांव में इतने बड़े लेखक पहुंच भी सकते है । लेकिन यह साहित्यिक गांव ने इस सम्मेलन को सम्मपन कराया ।
दिनकर के जन्मशताब्दी के मोके पर भी यही नजारा देखा गया ।
दिनकर शायद इस धरती को साहित्यिक बना गये थे ।दिनकर की यह कविताये आज भी कवि,लेखको और पढ़ने वाले को अपनी और खीचती है ।
सुनी क्या सिन्धु मै गजॆन तुम्हारा
स्वयं युगधमॆ का हुंकार हूं मै
या,मत्यॆ मानव की विजय का तूयॆ हूं मै
उवॆशी अपने समय का सूयॆ हूं मै।

कडुवासच said...

आपने ब्लाग पर अच्छा सबजेक्ट लिया है, कुछा अलग पढने को मिला, कृपया जारी रखें।