Thursday, March 26, 2009

गांधी बनाम गांधी

एक ने दूसरे से मुस्किया कर कहा- चुनाव से इतने पहले ही सारी मीडिया पर छाए रहोगे तो चुनाव में क्या करोगे? दूसरा जल-भुन गया, सब कुछ के बावजूद आखिरकार भाई थे। उसने कटखने सुर में कहा, -अग्रिम ज़मानत मिल गई है, और कुछ भी करुं न करुं, कम से कम जेल नहीं जाऊंगा?

वे जुड़वां नहीं थे , मगर भाई थे। सगे नहीं थे, मगर भाई थे। अलग-अलग महलों में रहते थे, मगर भाई थे। ठीक-ठाक अलग नज़र आते थे, गुजारे लायक अलग-अलग चल भी लेते थे, मगर एक दूसरे न टोकते थे, ना एक दूसरे का रास्ता काटते थे, क्योंकि भाई थे। घूम फिरकर उन्ही-उन्हीं जगहों पर पहुंच जाते थे, आखिरकार भाई थे। संयोग नहीं था कि दोनों गांधी थे, भाई थे।

एक दिन एक साथ, एक ही हवाई अड्डे पर पहुंचे, भाई जो थे। एक ही जगह के लिए एक ही हवाई जहाज में पहुंचे आखिर भाई थे। एक ही क्लास में एगल-बगल की सोटों पर बैठे, भाई जो थे। पीलीभीत हो चुका था। एक ने दूसरे से मुस्किया कर कहा- चुनाव से इतने पहले ही सारी मीडिया पर छाए रहोगे तो चुनाव में क्या करोगे? दूसरा जल-भुन गया, सब कुछ के बावजूद आखिरकार भाई थे। उसने कटखने सुर में कहा, -अग्रिम ज़मानत मिल गई है, और कुछ भी करुं न करुं, कम से कम जेल नहीं जाऊंगा?
बात कड़वाहट की तरफ जाती दिखी, तो दूसरे ने संभालने की कोशिश की, भाई जो थे।

चुनावी पॉलिटिक्स में कभी-कभी ऐसी समस्याए भी आती है। मगर ये रास्ता पकड़ ही लिया है तो जो भी समस्या सामने आए, धीरज से उसका मुकाबला करना चाहिए। एक बार जो गलती हो गई, दुबारा उसे दोहराना नहीं चाहिए। पहली वाली शक्ल में तो हरगिज नहीं। पहले को लगा, दूसरा ऊंचाई से खडे होकर बात कर रहा है,. सो बात संभलने से और दूर हो गई, भाई जो थे। पहले ने कुढ़कर कहा, नसीहत के लिए शुक्रिया। वैसे मुझे नहीं लगती कि मैंने कुछ गलती की है। जिसे दोहराने से मुझे बचना चाहिए।
पहले की स्थिति अपेक्षाकृत अच्छी और सुरक्षित थी। वह उदारता अफोर्ड कर सकता था, वैसे भी भाई जो थे। समझाने लगा बात सिर्फ करने या ना करने की नहीं होती है। ये डिमोक्रैसी है, इसमें सबसे ज्यादा मैटर ये करता है कि करने वाला कौन है? वही दूसरा करे तो कोई ध्यान तक नहीं देता, मगर हम करे तो मार तमाम आसमान सिर पर उठा लेंगे। कि हाय, ऐसा कर दिया। अपन गांधी जो हैंः डिमोक्रैसी के राजकुमार।

दूसरे को गांधी में तंज दिख गया। और बात संभलते-संभलते बिगड़ गई। कहने लगा- अब किसी को भला लगे कि बुरा, गांधी होना तो मुझसे कोई छीन नहीं सकता है। एरक बार गांधी, सो हमेशा के लिए गांधी। पर करूंगा मैं अपने मन की। दूसरे की अकड़बाजी, पहले को बेजा लगी। उसने घुमाकर तीर चलाया। गांधी होना कोई छीन भले न सकता हो, कई बार बहुत भारी ज़रुर पड़ सकता है। दूसरे के स्वर में तेज़ी आ गई- माने? पहले ने शब्द चबाते हुए कहा- गांधी होकर अगर कोई मारने-काटने बात करे, तो लोग इसे कैसे मंजूर करेगे? बार-बार यही सुनने को मिलेगा- राम, राम, गांधी नाम और ऐसे काम?
अब दूसरा उखड़ गया- आप लोगों की धद्म-धर्मनिरपेक्षता की ही तरह, आप लोगों का गांधी भी धद्म गांधी है। हम असली गांधी वाले हैं। हमारी अहिंसा अन्यायी हाथ काटने वाली, वीर की हिंसा है। कायर की अहिंसा नहीं। पहले ने आपत्ति की, मगर गांधी की वह दूसरा गाल आगे करने वाली बात।

दूसरे ने उसकी नादानी पर हंसते हुए कहा- जब तमाचा मारने वाला हाथ ही नहीं रहेगा,तो दूसरा गाल आगे करने न करने का सवाल ही क्यों उठेगा? पहले ने खीझ कर प्रहार किया- हमें भी पता है कि तुम लोगो की वीरता की तलवार कैसे अन्याय और किन अन्यायियों के खिलाफ है। दूसरे ने झट झुककर वार की काट की- मुश्किल अन्याय और अन्यायी कोजना नहीं, वीर खोजना है। वीर तो हाथ या सर कलम करने के लिए सैकड़ों साल पुराने इतिहास में से भी अन्याय और अनयायी खोज निकालाता है।
पहले ने बिगड़ कर कहा, यह तो गांधी धर्म नहीं है। दूसरे ने लापरवाही से कहा- मगर हम तो चुनावी कर्म की बात कर रहे हैं। फिर शिकायत करने लगा- चुनाव के लिए तुमन दलित की झोंपड़ी में रात बिताओ, तुम दलित के घर खाना खाओ, तो ठीक। मैं जय श्री राम का नारा लगाऊं, हिंदुओँ पर अन्याय करने वाले के हाथ काटने की कसम खाऊं तो गलत। यह कहां का न्याय है?

पहले ने समझाइश दी- तुम्हारा रास्ता गलत है। दूसरा भी अड़ गया- रास्ता तो मेरा भी वही है, संसद का। हां, हमारा रास्ता ज़रा अलग है। मगर रास्ते अलग हैं, तभी तो डिमोक्रैसी है। लेकिन, अलग रास्ते को गलत कहने वाले डिमोक्रैट नहीं होसकते। पहले ने टोका- मैंने गलत कहा क्योंकि यह गांधी का रास्ता नहीं है। वैसे भई गांधी के रास्ते से तो राजघाट तक पहुंचा जा सकता है, राजपाट तक नहीं।
तभी एयर होस्टेस आ पहुंची- मोहनदास नाम के बुजुर्ग ने आप लोगों के लिए संदेश भेजा है। संदेश संक्षिप्त किंतु स्पष्ट था- मैं गांधी नाम छोड़ रहा हूं। यह कैसा मजाक है- दोनों के मुंह से एक साथ निकला, आखिरकार भाई जो थे।

साभार-राजेंद्र शर्मा, दैनिक भास्कर

4 comments:

आलोक सिंह said...

गाँधी बनाम गाँधी बहुत जबरजस्त संवाद
"गाँधी के रास्ते से तो राजघाट तक पहुंचा जा सकता है, राजपाट तक नहीं।" क्या कहने

अविनाश वाचस्पति said...

आलोक जी राजपाट तक पहुंचने के लिए रास्‍ते तैयार कर तो रहे हैं एक गांधी। जिनकी आवाज हर जगह पर है आज। एक गांधी वरुण भी हैं। वे जरूर पहुंचेंगे राजपाट तक। बाद में राजघाट भी पहुंच ही जाएंगे।

ghughutibasuti said...

बहुत बढ़िया।
घुघूती बासूती

Vikas Sarthi said...

Religion is the last refuge of a Scoundrel