Thursday, June 4, 2009

बेसाख़्ता

क्या तुमने कभी,

महबूब के इंतजार में धूप तापी है?

पार्क में बैठकर-

बोगनवेलिया के हरे पत्तो पर

अपने नाखूनों से उसका नाम लिखा है?

क्या अमलतास के पीले फूलों की तरह तुम,

प्रेम में उलटा लटके हो?

क्या गुलमोहर की तरह

तुम्हारे दिल का खून

मुंह के रास्ते आया है कभी बाहर,

क्या मुहब्बत के आएला में,

सब्र का बांध टूटा है...

नहीं.. नहीं..नहीं

तो क्या हुआ जो-

इज़हार ए मोहब्बत का एक ख़त अधूरा रह गया,

जिस खत में लिखा उसे महबूब की तरह??


क़स्बे पर रवीश की कविता उदास नज़्में, सस्ती शायरी पर मेरी फौरी प्रतिक्रिया, गुस्ताख़ी माफ़.

11 comments:

डॉ .अनुराग said...

खुदा कसम नायाब लिखे हो छोटे ठाकुर......कसम से !!!!

अनिल कान्त said...

waah ...bahut khoob likha hai

नीरज गोस्वामी said...

क्या मुहब्बत के आएला में,
सब्र का बांध टूटा है...
भाई वाह...क्या सम सामयिक रचना है...जोरदार...धारदार...लाजवाब.
नीरज

शोभा said...

दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं जिनकी अनेकों कामनाएँ अधूरी रह जाती हैं। सुन्दर प्रस्तुति।

sushant jha said...

यार पहले ये बताओं कि ये स्वरचित है या साभार..दिल बाग बाग हो गया..साला प्रेमी की तुलना अमलताश के उलटे पीले फूलों से जो तुमने किया है वो तो वाकई दिल को चुराने वाली है। तुम मेहनत करो और मुझसे कुछ सीखो(:D)तो जरुर निदा फाजली बन सकते हो :)

रज़िया "राज़" said...

रवीशजी की शायरी का एक ख़ुबसुरत जवाब। भइ वाह!!!

mohit said...

janab khoob likha hai aapney...

Anonymous said...

किसी के अधूरे ख्वाब और सपने
उसके दिल से निकल कर
ब्लॉग पर पेस्ट हो गये
सच कहा आपने
मुहब्बत के आएला में
सब्र का बांध टूटा है...!

कडुवासच said...

क्या मुहब्बत के आएला में,
सब्र का बांध टूटा है...
... bahut khoob !!!!!

Sajal Ehsaas said...

बोगनवेलिया ....ye huyee na baat...aise shabdo ke prayog se to mann ki khush ho jaat ahai...ise kehte hai rachnaatmakta :)

www.pyasasajal.blogspot.com

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

achchha hai..lage raho bhai.....