Tuesday, November 17, 2009

पर्यावरण परिवर्तनः प्रलय की ओर


टीवी का ज़माना है, और रवीश के शब्दो में शाकाल जैसा कोई टकला ज्योतिषी २०१२ में दुनिया में प्रलय का एलान कर जाता है। मुझे नहीं पता कि ज्योतिषी महाराज की भविष्यवाणी का असर होगा या कुछ और लेकिन इतना तय है कि दुनिया पर विनाश का साया पड़ने वाला है। डूबते शहर और कुदरत के कहर से दो-चार होती दुनिया की टीवी पर आ रही एनिमेटेड तस्वीरें धरती पर आने वाले उस प्रलय की है जिसकी शुरुआत जलवायु परिवर्तन के साथ हो चुकी है।



हम धरती की आबोहवा को इसी तरह ज़हरीला बनाते रहे तो विनाशकारी गतिविधियों के शुरु होने के जिम्मेदार हम खुद होंगे। अगर कुदरत से चलने वाली छेड़छाड़ इसी तरह जारी रही तो ये सब हकीकत में बदल सकता है।

शुरुआत हो चुकी है..

हमारे आस पास चिड़ियों का चहचहाना कब कम हो गया, देखते देखते कैसे पेड़ कटकर हमारे घरों के दरवाज़ों और खिड़कियों में तब्दील हो गए, कभी रात में साफ़ दिखने वाले तारों और हमारे बीच कैसे एक झीना सा धुंध का पर्दा आ गया, कैसे नदियों में आम तौर पर पानी कम हो गया या नदियों का रंग ही बदल गया ... और कैसे कभी पड़ोसी की अलग सी दिखने वाली गाड़ी हमारी और हम जैसे बहुत से लोगों की गाड़ियों की भीड़ में गुम हो गई।....

विकास की ये रफ्तार हम पर भारी पड़ने वाली है।

हमारी धरती, पूरे सौरमंडल में बल्कि पूरे ब्रह्मांड में अभी तक मालूम एक मात्र जीवन वाला ग्रह..लेकिन यह दिन-ब-दिन खतरे की ओर बढ़ रही है।

इंसान के शरीर की तरह धरती का भी अपना एक सामान्य तापमान होता है। पृथ्वी का ये औसत तापमान 15 डिग्री सेंटीग्रेड होता है लेकिन इस सदी के आखिर तक इसके 6 डिग्री बढ़ने की आशंका है। तापमान में ये इजाफा दुनिया के भूगोल और पर्यावरण दोनों को बदल कर रख देगा।

कभी हमें लंबा सूखा झेलना होगा, तो कभी लगातार बारिश। ये सब होगा धरती के बदलते मिजाज़ की वजह से....



जारी

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