Tuesday, January 5, 2010

नॉलेज इकॉनमी का सही अर्थ बतर्ज कक्का जी

कक्का जी आज क्रांतिकारी मूड में है। आर्थिक सुधारों को लेकर उनके नज़रिए की हम बहुत क़द्र करते हैं। कहते हैं दुनिया का सबसे निजीकरण वाला देश भारत ही है।

गुस्ताख़ भी सहमत है।

क्या कक्का कैसे?

अरे बचुकिया, पुलिस वाले को अपनी रक्षा के लिए जैसे ही तुम सौ का क़ड़कड़िया नोट देते हो, लाल बत्ती टपक के ट्रैफिक वाले को बीस की लाल परी देते हो, स्कूल से सर्टिफिकेट के लिए क्लर्क को सुविधा शुल्क देते हो... जैसे ही अपने निजी काम के लिये सरकारी कर्मचारी को आपने पैसे दिए...यह निजीकरण हुआ या नहीं... हमने हामी भरी।

कक्का जी निराश भी है, हताश भी..नया साल आ गया है कुछ नहीं बदला.. अमेरिका वाले नाश्ते में दस और खाने में पंद्रह बम फोड़ ही रहे हैं, और भारत का क्या होगा..नया साल आ गया लेकिन नक्सल से लेकर विधायकों की खरीद फरोख्त तक हर चीज पहले की तरह जारी है...।

गुस्ताख़ ने विरोध दर्ज कराना चाहा, अरे कक्का जी आप इतने हताश मत होइए..हम इक्कीसवीं सदी में सबसे तेज़ अर्थव्यवस्था होने वाले हैं।

अरे तुम चुप करो जी, जानते चाटते कुछ नहीं, लबरई किए जा रहे हो.. ये तो आईएमएफ का लॉलीपॉप है।

कक्का हम नॉलेज इकॉनमी हैं..

अच्छा ठीक है यह संभावना है। लेकिन सुधारों की बहुत ज़रुरत है। आंकड़ों की बाजीगरी में मत पड़ो। अच्छा बताओ लेटेस्ट डेटा के लिहाज से हमारी साक्षरता कितनी है?

६७ फीसदी।

ठीक..। अच्छा बताओ साक्षरता की परिभाषा क्या है?

कोई आदमी अगर अपना नाम लिख ले..या रेलवे स्टेशन का नाम पढ़ ले... हमने जवाब दिया। ...लेकिन अपनी ही मातृभाषा में... कक्का जी ने जोड़ा। हमारे पास बात मानने के सिवा कोई चारा नहीं था।

अच्छा पता है, देश में कितने प्रतिशत लोग पाचवी पास हैं या अखबार पढ़ सकते हैं?

हमारे पास जवाब नहीं था...

२७ फीसद.... जबाव आया। ये बताओ कितने लोग मैट्रिक हैं यानी दसवीं पास हैं? उनका प्रतिशत कितना है हमारी कुल आबादी का?

हम निरुत्तर। महज तीन फीसद..कक्का जी ने गहरी सांस ली। और ग्रेजुएट? कक्का जी का अगला सवाल था।

पता नहीं.. यह प्रतिशत हैं महज डेढ़। यानी सिर्फ डेढ़ करोड़ लोग ग्रेजुएट हैं। इन ग्रेजुएट्स में आधे ऐसे विषयों से हैं जिन्हे कुशल(स्किल्ड) नहीं माना जा सकता। तो ४० लाख कुशल लोगों के साथ तुम नॉलेज इकॉनमी की बात कर रहे हो? धत्.. उन्होंने करीब-करीब घृणा भरी निगाहों से मुझे देखा।

लेकिन कक्का जी को मैंने समझाना चाहा हममें बहुत संभावनाएं हैं... सोच लो तीन करोड़ लोग ग्रेजुएट हो जाएं तो दुनिया में हमारी क्या पजिशन होगी।

तभी होगी जब बुनियादी स्तर पर तुम सुधारों को शिक्षा से लेकर हर क्षेत्र में लागू करोगे.. समझे। सुधारों को लागू हुए बीस बरस होने को आए, इस पर सोचना ज़रुरी है। कक्का जी ने कहा और हनहनाते हुए आगे निकल गए।

मैं सोच रहा हूं आप भी?

3 comments:

डॉ .अनुराग said...

कक्का जी ..बेचारे भूल गए है के इस देश के राज्यों की सभी सांसदों में पहुंचे नेताओ में शिक्षा का स्तर कितना है ? ये वही लोग है जो पढ़े लिखे लोगो पर राज करते है .ओर कल दक्षिण के किसी बंद में एक विधायक पोलिस वाले को मार रहा था ....यूं भी अब पढ़ लिख कर क्या होना है ..पहली बात तो ये के पैसे वाला अपने बेटे को जो चाहे बना सकता है..सारे डोनेशन कोलेज खुले है ..डिग्री से लेकर मास्टर डिग्री तक ......दूसरा आई टी आई ओर मेडिकल प्रोफेशन से कितना ब्रेन ड्रेन हुआ है उसका हिसाब ?

कक्का जी से कहिये घबराने की कोई बात नहीं...आने वाले वक़्त में भारत दूसरे देशो में बस जाएगा ."मिनी "के संस्करणों में

Udan Tashtari said...

वैसे चौंकाते आंकडे हैं. मात्र ४० लाख स्किल्ड ग्रेजुएट...


’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’

-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.

नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'

कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.

-सादर,
समीर लाल ’समीर’

Shandilya said...

Bahut hi badhiyaa likkh rahe hain aap.