सुना था हम्माम में सभी नंगे नहाते हैं। लेकिन नंगे नहाते-नहाते लोग सड़को पर उतर आए हैं। राडिया, राजा...कलमाड़ी, महेन्द्रू..दरबारी...पंडित सुखराम, शीला कौल, लालू, मधु कोड़ा...सूची इतनी लंबी और विस्तृत है कि लिख नही पा रहा।
ये लोग भ्रष्टाचार के एक प्रतीक के रुप में सामने आए हैं। गुस्ताख आज गुस्से की जगह शान से खड़ा था।
गुस्ताख के दूसरी तरफ हीरो जी और एक ओर कक्का जी खड़े थे। कक्काजी ने जब से सुना है कि बिहार में विधायक फंड खत्म किया जा रहा है--बड़े उदास-उदास से हैं।
क्या कक्का जी, आप तो कहते रहे कि आपके जमाने मं ये. आपके जमाने में.वो..अब बताएं..ऐसा महाभ्रष्ट संसार रहा था क्या..।
कक्का जी के बोल फूटे तो लगा बिग बॉस सीरियल में बिग बॉस का प्रवक्ता अंतेवासियों को राशन और काम बांट रहा हो, ऐसा नही था जी..हमारे जमाने में भी हुआ ता घोटाला..। जीप घोटाला..फिर वर्दी घोटाला, फिर...बाद में बोफोर्स.फिर चीनी घोटाला...यूरिया घोटाला..टीवी अलकतरा घोटाला।
बस बस कक्का जी, महाजुगाडू हीरोजी आज मूड में थे। जब से बिहार चुनाव संपन्न करवा कर लौटे हैं, तब से मूड सही नही रह रहा। खुद भी हारे, अपनी काकी को दो जगह से हरवा आए। मुंह लटक कर अंग्रेजी के आठ की तरह दिख रहा है।
लेकिन अचानक मूड में आ गए है हीरो जी। मुंह पर नकली रे बेन का गॉगल्स फिट करते हुए उचारते भये, कक्का जी, आप तो अपना युग सन 47 से लेकर मौनी बाबा के काल तक खींच लाए..हमारे हिस्से रहने दिया पोस्ट बाबरी एरा...?
कक्का डी घबरा गए। गुस्ताख ने टोका, कोई बात नही हीरोजी, लाइसेंस राज के बाद के दौर में भी हमें समेट तो तो भी हम कोई कम नही।
शुरुआत चारे से करे तो स्कूटर पर भैंस ढोने से लेकर, पंजाब लोकसेवा आयोग में धांधली, नए नवेले झारखंड को खंड-खंड कर कोयला खान खरीद लेने वाले मुख्यमत्रियों से लेकर...वेल्थ को कॉमन बना देने वाले कॉमनवेल्थ खेल तक..और अब 2-जी स्पैक्ट्रम तक...हर घोटाले की रकम इतनी है जितनी आजादी के वक्त भारत का सकल घरेलू उत्पाद न रहा हो।
कक्का जी बैक फुट पर खड़े थे, अचानक उछल पडे।
सुनो बेटा जी, ऐसा लगा उन्हे दिव्यज्ञान हुआ हो, ईमानदारी जो है वो थोपी हुई नैतिकता है। हमें ईमान के खांचे में खुद को फिट करना होता है। वैसे, आदिम रुप से आदमी, हर आदमी बेईमान ही होता है। बेईमान होने के लिए आदमी को मेहनत नही करनी होती। आप स्वतः बेईमान हो सकते है..स्वतः ईमानदार नही हो सकते। तो फिर भ्रष्टों को क्यों दे गाली।
आखिर जो लोग ऊंचे पदो पर हैं , वहा तक पहुंचने में उन्हे कलदार खर्च करने पड़े होगे। मंत्री पद तक पहुंचने वाले सांसदो, और सांसदी जीतने वाले प्रत्याशी संसद तक ऐसे ही नही पहुंच गए। खादी के झंडे से लेकर लकड़ी के डंडे, और कागजी मैनिफेस्टो से लेकर कागजी वायदे तक में अशर्फिया खर्च होती है।
आखिर अगले चुनाव के लिए तैयारी नही करनी होगी क्या...और रुपयों की भूख का कोई अंत तो होता नहीं..। तभी तो हमने सोने की चिडि़याके पंख नोंच लिए हैं...हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे....कोई आए कोई जाए..करता जाए वारे न्यारे...
कक्का जी गाते हुए निकल लिए।
3 comments:
... bahut badhiyaa ... shaandaar post !!!
शानदार...शानदार...शानदार...
बिलकुल सही कहा। धन्यवाद।
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