Tuesday, January 25, 2011

ये किसका गणतंत्र है...

ये किसका गणतंत्र है? पूरे देश का या सिर्फ खास लोगों का। और देश है कहां...देश किसके लिए काम कर रहा है? क्या वक्त आ गया है कि जनता सड़कों पर उतरकर अराजकता के पुनर्पारिभाषित कर दे। 

ये कैसा गणतंत्र है कि बीयर, पेट्रोल और प्याज एक ही कीमत पर मिलता है। सडकों पर गाडियों की कतारों से जाम लग जाता है। दूसरी तरफ, उड़ीसा, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ समेत सभी राज्यों में आधी से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा से नीचे बसर कर रही है। 

इस साल झारखंड के सभी 22 जिले सूखाग्रस्त हैं, उस पर कोई फेसबुक पर कमेंट नही कर रहा..सरकार के लिए कभी भी यह चिंता का विषय नही रहा। भ्रष्टाचारियों पर किसी किस्म के नकेल से सरकार बिदक जाती है। 

सिर्फ आज की तारीख-25 जनवरी- को आरुषि के पिता पर अदालत के परिसर में हमला हो जाता है, आज ही के दिन छापा मारने गए एक एडीएम को माफिया जिंदा जला देते हैं...और एक सूबे का वजीर कह देता है कि तिरंगा फहरने से सूबे में अशांति हो जाएगी।
आखिर ये गणतंत्र है किसका?
 आम आदमी को सड़क पर चलने की इजाज़त नही है। पेट्रोल मंहगा, दालें मंहगी, चावल, तेल..प्याज..बसों के किराए.मकान के किराए .क्या क्या गिनाएं। दिल्ली जैसे शहर में 25-30 हजार कमाने वाले के दांतों से पसीने आ रहे हैं। जरा सोचिए 5 हजार कमाने वाला कैसे चलाता होगा परिवार।

देश अब सिर्फ इंडिया और  भारत में ही नहीं बंटा है। देश के कई एक हिस्से हो गए हैं। हजारों-करोडो़  की रकम के घोटाले हो रहें हैं...कोई दोषी नही। क्या न्याय तंत्र की इसी घोंघाचाल से परेशान-हताश कोई लड़का उत्सव शर्मा नहीं बन जाता है। 76 जवानों की नक्सलियों ने हत्या कर दी, किसकी जवाबदेही बनी।

अपने ही सुरक्षाकर्मियों को सांप और कुत्तों का नाम देने वाले सरकारी अधिकारियों  का क्या हुआ, जिनकी मायोपिक नजरों की वजह से हमारे जवानों को जान से हाथ धोना पड़ा।

ये सब छोटी बातें है..आखिर गणतंत्र के 62 साल के बाद हम पहुंचे कहां है..। अभी भी एक हिस्सा अलग सूबे के लिए हिंसा पर उतारु है। एक सूबा ऐसा है जहां तिरंगा फहराना इतना बड़ा मुद्दा हो जाता है कि राम-राम जपने वाली पार्टी तिरंगे के जरिए अपना खोया जनाधार पाने की कोशिशों मे लग जाती है।

आखिर नक्सली आए कहां से। क्यों बनता है कोई नक्सली। आखिर उनका व्यवस्था से मोहभंग क्यों हो गया है..। दलालों के राज में, परिवारवाद के दौर में आम आदमी की जगह कहां है..नेता का बेटा नेता बनेगा। वही मंत्री बनेगा...और इन्ही के दरबारी पत्रकारिता में कुंडली मार बैठेंगे। 



इसी गणतंत्र अगर आपको राजपथ पर गणतंत्र दिवस की झांकी देखनी हो, तो ये आप मुफ्त में नहीं देख सकते। सरकार इसके लिए आम लोगों से टिकट वसूलती है और खास लोगों को पास बांटती है। 

संविधान बनने के दिन सेना की ताकत का प्रदर्शन। लोकतंत्र की झांकियों के साथ टैंकों की परेड। भारत महान के इस खूबसूरत प्रदर्शन को देखने के लिए जब से टिकट लगने लगा है, आम लोग कम और खास लोग ज्यादा आते हैं।

तामझाम से ऐसा लगता है कि कोई राष्ट्र अपने मर्दाना ताकत का प्रदर्शन कर रहा है। कई लोगों की दिलचस्पी इन झांकियों में होती है। राज्यों की संस्कृति का खास सरकारी रूप दिखता है। मगर ये झांकियां भी रायसीना हिल्स से चलकर इंडिया गेट तक ही खत्म हो जाती है। सेना की परेड लाल किले तक जाकर खत्म होती है। यानी अगर आपको देश की भरी-पूरी संस्कृति का नजारा देखना हो तो राजपथ आना होगा और वहां बगैर टिकट या पास लिए कोई आम आदमी नहीं पहुंच सकता।
इंडिया गेट के चारों ओर की सड़के छावनी में तब्दील कर दी गई हैं। जगह जगह बोरियों में रेत भर कर बंकर बना दिए हैं। डर है कि कोई पडोसी हमारी सेनाओं पर ही हमला ना कर दे, तो इतनी भारी-भरकम मिसाइलें क्या सब्जी पकाने के लिए हैं..?

गणतंत्र माने, जनता का तंत्र...जहां किसी खानदान का राज नही चल सकता। देश का प्रधान हमेशा कोई चुना हुआ व्यक्ति होगा। आप तय करके बताएं कि क्या यह सच है..? क्या हमारे गणतंत्र के प्रमुख को एक परिवार ने चुनकर देश पर थोप नहीं दिया है..?


मेरे दोस्त विकास सारथी को लगता है कि पानी सर के ऊपर चला गया है, अब जनता सड़कों पर उतर जाएगी। यह क्रांति  की पूर्वपीठिका है..लेकिन मुझे तो लगता है जनता की शुरुआती कुसंगतियों-पढे नीतियों-की वजह से वह शीघ्रपतन की शिकार हो गई है। हर मुद्दे पर उसका ध्वजभंग शीघ्र ही हो जाता है..

4 comments:

vidhi mehta said...

Nice.
I think every person of this country think like u then our nation will definitely change.

There is need of awakeness in people for all this problems which u mentioned above.But unfortunately there is no awareness in people for their right or lack of unity,courage.

rinku said...

बात आपकी सोलह आने सच है सर, अब गणतंत्र किसका यह सवाल सबसे बडा होना चाहिये, न कि गणतंत्र कब?

किसी लालबत्ती पर छोटू तिरंगा बेच रहा है
उसे न तो तिरंगे का मतलब पता है और न गणतंत्र का
फिर कैसा गणतंत्र और किसका गणतंत्र ?

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सटीक मुद्दा है ...यह कैसा गणतंत्र है ?

डॉ .अनुराग said...

गणतंत्र.!!
.मेरे यहाँ पुताई करने वाले ठेकेदार के दो आदमी आज नहीं आये..बोला साहब....२६ जनवरी पढ़े लिखे लोगो के लिए है ...हम जैसो के लिए नहीं ....