मित्रों, नई मीडिया के सामने आने पर हमने सोचा की कथा के स्वरुप में भी एक बदलाव जरुर आना चाहिए। फेसबुक पर इसी अंदाज में रवीश कुमार लप्रेक (लघु प्रेम कथाएं) लिख रहे हैं। हमने सोचा सभी कथाएं प्रेमकथाएं नही होती, ऐसे में फलक की शुरुआत हुई। पहले इसका नाम फेलक था, लेकिन अजय ब्रह्मात्मज के सुझाव पर इसे फलक कर दिया, जाहिर है बेहतर है। फलक के हाल-फिलहाल की तीन कथाओं को हम यहां साझा कर रहे हैं, इनके शीर्षक भी नहीं है। आप चाहें तो शीर्षक सुझा सकते हैं।---
कथा एकः
'कभी हमारे घर को भी पवित्र करो।' करूणा से भीगे स्वर में भेड़िये ने भोली-भाली भेड़ से कहा 'मैं जरूर आती बशर्ते तुम्हारे घर का मतलब तुम्हारा पेट न होता।' भेड़ ने नम्रतापूर्वक जवाब दिया।
कथाकार- नीरज शर्मा।
कथा दोः
इंद्रप्रस्थ मे अन्ना की रैली देखने युधिष्ठिर भी पहुंचे। कुछ देर बाद गला प्यास से सूखने लगा तो पास के नल पर पहुंचे। नल खोला तो सूं सूं की आवाज के बाद एक कीड़ा नल से टपका और देखते ही देखते एक यक्ष मे तब्दील हो गया। यक्ष ने अपनी पुरानी आदत के मुताबिक युधिष्ठिर से प्रश्न पूछा " हे युधिष्ठिर! इस रैली के बाद फिर से कौन छला जाएगा? युधिष्ठिर ने उत्तर दिया हे यक्ष! इस बार फिर जनता ही छली जाएगी। यक्ष ने फिर प्रश्न पूछा "तो युधिष्ठिर इस भारत भूमि पर फिर कौन राज करेगा? युधिष्ठिर ने जवाब दिया " हे यक्ष! इस भारत भूमि पर राजपरिवार की अगली पीढ़ी ही हज़ारे उपनाम लगा कर राज करेगी। नल से पानी शर्मसार होकर बहने लगा था।
कथाकारः सिद्धार्थ श्रीवास्तव।
(2 दिसंबर 1972 को पैदा हुए सिद्धार्थ ने गोविंद वल्लभ पंत यूनिवर्सिटी ऑफ अग्रीकल्चर एंड टेक्नॉलजी से पढाई की है। फेसबुक पर मेरे मित्र है।)
कथा तीनः
सरकारी नाई ने बाल काटते समय कपिल सिब्बल से पूछा- 'साहब, यह स्विस बैंक वाला क्या लफड़ा है? सिब्बल चिल्लाये, 'अबे, तू बाल काट रहा है या इन्क्वारी कर रहा है?
नाई बोला, सॉरी।
अगली बार नाई ने चिदम्बरम से पूछा- 'यह काला धन क्या होता है? चिदम्बरम चिल्लाये- तुम हमसे ये सवाल क्यूँ पूछता है?
अगले दिन सीबीआई की टीम ने नाई से पूछताछ की।
क्या तुम बाबा या अन्ना के एजेंट हो?
नहीं,
तो फिर तुम बाल काटते वक़्त काग्रेस के नेताओं से फालतू सवाल क्यूँ करते हो?
नाई बोला- साहब ना जाने क्यूँ स्विस बैंक और काले धन के नाम पर इन कांग्रेसियों के बाल खड़े हो जाते है और मुझे बाल काटने में आसानी हो जाती है. इसलिए पूछता रहता हूँ...!
कथाकार- सुशांत झा।
आईआईएमसी से रेडियो-टीवी पत्रकारिता पढ़ चुके सुशांत की राजनीतिक समझ बहुत बेहतर है। फिलहाल, कुछ अंग्रेजी किताबों के अनुवाद में लगे हैं। शीघ्र प्रकाश्य।
1 comment:
aapne achchha likha hai .badhayi
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