Monday, January 27, 2014

केजरीवाल के नाम एक आम आदमी का खत

केजरीवाल जी,

नमस्कार, प्रिय नहीं लिख रहा हूं क्योंकि आप मेरे प्रिय नहीं है। आदरणीय तो मैं बहुत कम लोगों को मानता हूं। पता नहीं, मेरा लिखा आप पढ़ेंगे या नहीं, पढ़े भी क्यों, आप दिल्ली के मुख्यमंत्री ठहरे, और कई आम आदमियों के खास नेता बन चुके हैं।

मैं आम आदमी हूं। लेकिन न आम आदमी पार्टी का सदस्य नहीं। न कभी इच्छा जाहिर की बनने की, न कभी बनूंगा। मैं राजनीति के पचड़े में पडूंगा ही नहीं, आम आदमी राजनीति नहीं करता। मेरे लिए दो वक्त की रोटी जुटाना ज्यादा अहम है। मेरे लिए गैस का महंगा होता जाना ज्यादा मुश्किलें खड़ी कर रहा है।

मैं सिर पर टोरी नहीं लगाता। न टोपी पहनता हूं न पहनाता हूं। जन लोकपाल के लिए अन्ना के आंदोलन के बाद राजनीति के इस नव-टोपीवाद में टोपी निर्माता कौन रहा, ठेका किसको दिया गया, पता नहीं आपने इसका ब्योरा दिया या नहीं, लेकिन मैं जाड़े में बंदरटोपी भी नहीं पहनता...सफेद टोपी तो खैर पहनता ही क्यों। सत्तर के दशक के आखिर और अस्सी के दशक के पूर्वार्ध में सिनेमा वालो ने सफेद टोपी वाले नेताओं के खलनायक की तरह पेश किया। मेरे मन में परेश रावल वाली वो छोकरी फिल्म अब भी छपी हुई है। वो छोकरी में परेश रावल नेतागीरी के लिए अपनी बेटी तक को दांव पर लगा देता है।

बेटी से याद आया, चुनाव के पहले, आपने डीडी के लिए अनुज यादव को दिए इंटरव्यू में कहा था, आप किसी से समर्थन नहीं लेंगे। आपने अपने बच्चों की कसम भी खाई थी, लेकिन आपने समर्थन भी लिया, सरकार भी बनाई। तर्क तो आपके पास होंगे ही।

केजरी जी, बड़ी उम्मीद थी आप से। आप भी वही निकले। नागार्जुन बेतरह याद आ रहे हैं, लिखा था बाबा ने, सौंवी बरसी मना रहें हैं तीनो बंदर बापू के, बापू को ही बना रहे हैं, तीनों बंदर बापू के।

शुरू शुरू में आपको देखता था, तो प्रभावित हुए बिना ही आपकी तुलना फिल्म नायक के अनिल कपूर से करता था। मुझे तो यकीन ही नहीं था कि आप की पार्टी को 28 सीटें मिल जाएंगी...हमको तो लगा कि पांच सीटें भी मिल जाएं तो जय सिया राम। काहे कि आम आदमी हूं, असली वाला आम आदमी...पार्टी वाला नहीं... दिन भर इसी जुगाड़ में लगा रहता हूं कि किधर से काटूं, किधर जोड़ूं...कि महीने के आखिर तक चाल जाए।

जनाब, आपने एक महीने गुजार दिए। आंदोलन के सिवा कुछ किया नहीं। सास-बहू सीरियलों के विज्ञापनों के बीच वक्त चुराकर जब भी टीवी पर खबर देखता हूं, आपके धरने, बिन्नी के धरने, और अक्खड़ सोमनाथ भारती के सिवा कुछ सुनता नहीं।

सच सच बताइएगा, आपको यकीन था कि आप सीएम बन जाएंगे दिल्ली के। आपकी बजाय कोई दूसरी सरकार होती और आप दस विधायकों के साथ विपक्ष में होते तो सरकार की धज्जियां बिखरने में कितना वक्त लगता आपको।

कांग्रेस या बीजेपी की सरकार के मंत्री भारती की तरह काम करते तो आपका धरनास्थल क्या रेल भवन ही होता क्या?

देखिए केजरी साहब, दिल्ली का सीएम बनने से पहले आपको क्या सचमुच इल्म नहीं था कि दिल्ली के मुख्यमंत्री के पास क्या अधिकार हैं? अब आपसे कोई शिकायत नहीं है, क्योंकि हमें नेताओं से कोई उम्मीद ही नहीं रहती है। लेकिन गुरु आपने तो पहले मोर्च पर सारी बारूद खत्म कर दी है...।

लेकिन इतना साफ हो गया है कि आपमें और बाकी पार्टियों में राजनीति करने के तरीकों के अलावा कोई अंतर नहीं...साधन अलग-अलग हैं साध्य वहीः सत्ता। वरना पानी 666 लीटर मुफ्त करने के अलावा कोई और जमीनी काम बताइए मालिक।

अकबर इलाहाबादी लिख गए हैं, हंगामा ये वोट का फ़क़त है, मतलूब हरेक से दस्तख़त है
.........पांव का होश अब फ़िक्र न सर की, वोट की धुन में बन गए फिरकी.....।

केजरी जी, आखिरी में इतना ही कह रहा हूं, जंतर-मंतर पर भीड़ से किनारे खड़ा था मैं, लेकिन आपके साथ था। रामलीला मैदान में, भीड़ के आखिर में, तिरंगा लहराता हुआ आदमी मैं ही था, अन्ना ने जब अनशन तोड़ा था...तो मेरी आंखों में आंसू आ गए थे, और आवाज़ भर्रा गई थी। लेकिन, आप वहां से चलकर, विवादों के घेरे में आ गए।

हमने उम्मीद की थी कि आप भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के जिस युद्धपोत पर सवार होकर सचिवालय तक पहुंचे, वहां से आप कुछ ठोस लेकर आएंगे...लेकिन सुना है एक लाख शिकायतें आ गईं, आपने कुछ करने की बजाय धरने पर बैठना मुनासिब समझा।

ठीक है, कोई बात नहीं, आप धरने पर बैठिए, आपको यही मुनासिब लगता है। लोकसभा का चुनाव आ रहा है, हम वही करेंगे जो हमें मुनासिब लगता है।


आपके घोषणा-पत्र का पहला अक्षर, और आपके काम की आखिरी प्राथमिकता,

एक आम आदमी

4 comments:

DR. SHIKHA KAUSHIK said...

सौंवी बरसी मना रहें हैं तीनो बंदर बापू के, बापू को ही बना रहे हैं, तीनों बंदर बापू के।

ek ek shabd sahi hai manjeet ji !

प्रवीण पाण्डेय said...

राजनीति से इतर कुछ कार्य भी कर लें।

shivkumarmittal said...

AAP mein aur dusre rajnitik dalon mein koi antar nahi reh gaya hai, whabi purane dalon ki tareh baaton ko tod marod kar apni baat ko uchit thehrana,apni ghalti ko ulte sidhe tark dekar cover karna.AAP ne sab ko 700 liter muft paani dene ka vachan diya tha jin ke ghar pani ka kharch 666 liter se adhik hai aur jin colonies mein pani nahinpahunchta unhen kya mila? Aur AAP kehte hain ki vachan pura kardiya?DHOKA EK DAM DHOKA

shivkumarmittal04@gmail.com said...

Isi prakar bijli ke mamle mein dhoka kiya.AAM admi ke naam par satta hathya kar AAM admi ka bewaquf bana rahe hein lekin yad rahe kaath ki handi baar baar nahin chadhti.Mahilaon ko publicly urine sample dene ke liye vivash karna ya un ke ghar mein raat ko zabardasti ghus kar maar peet karna un ki suraksha ka upayey nahin hosakta. Janta sab janti hai