पहली तस्वीरः
हरियाणा का पानीपत। 22 जनवरी। मंच पर प्रधानमंत्री, महिला और बाल विकास मंत्री
मेनका गांधी, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर मशहूर हीरोईन माधुरी दीक्षित
हैं। प्रधानमंत्री ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरूआत करते हैं। भाषण भावुक है।
तालियां बजती हैं।
फोटो सौजन्यः गांव कनेक्शन |
दूसरी तस्वीरः
रायसीना पहाड़ी पर स्थित भव्य राष्ट्रपति भवन। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा
सलामी गारद का निरीक्षण कर रहे हैं। उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दे
रही हैं पूजा ठाकुर।
टेलिविज़न पर
पूजा ठाकुर चमकते उन्नत भाल और आत्मविश्वास को देखकर घरों में तालियां बजती हैं।
कई माएं अपनी बेटियों की बलाएं ले रही हैं, कई लड़कियों में कुछ कर गुज़रने की
तमन्ना जागती है।
अब दीपा मलिक की
बात। दीपा सोनीपत हरियाणा से पैरा-ओलिंपिक खिलाड़ी हैं और अर्जुन पुरस्कार जीत
चुकी हैं। दीपा ने बताया कि उनके ससुराल में उनके खेलने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
हरियाणा में खेल की संस्कृति है। लड़की खेले, पदक जीते तो कोई बंधन नहीं। परदे का
भी बंधन नहीं।
विडंबना यही है
कि इसी हरियाणा में खेल भावना चाहे जितनी हो, लड़कियों को लेकर भेदभाव भी उतना ही
अधिक है। लिंगानुपात में सबसे अधिक अंतर और गर्भ में पल रही संतानों का
लिंगनिर्धारण करने के लिए सबसे अधिक अल्ट्रा-साउंड मशीऩें इसी राज्य में हैं। नतीजतनः
हरियाणा के बहुत सारे गांवों में लड़के कुंवारे बैठे हैं, उनको दुल्हन ही नहीं मिल
रही। हरियाणा के महेन्द्रगढ़ हो या सोनीपत लड़को को दुलहनियां खोजने बाहर तक जाना
पड़ता है। बाहर के सूबों से गरीब घरों की लड़कियां ब्याह लाई जाती हैं। हरियाणा
में इनको ‘पारो’ कहा जाता है। किसी घर में मध्य प्रदेश की बहू है तो कहीं बंगाल की।
राजस्थान का
किस्सा भी कुछ अलग नहीं है। बेटियों को भार समझने वालों ने कुछ ऐस कहर ढाया कि
जैसलमेर के एक गांव देवड़ा में एक सौ बीस साल के बाद बारात आई।
मुझे कुछ और
चीजें याद आ रही हैं। बचपन से मैं दुर्गा पूजा के दौरान धुंदुची डांस देखता आ रहा
हूं। धुंदुची मतलब देवी दुर्गा की मूर्त्ति के आगे धूप-गुग्गल जलाकर भक्तों का
नृत्य। इधर, उत्तर भारत में नवरात्र में माता के जागरण और माता की चौकी की परंपरा
है।
इन दृश्यों पर
कुछ आंकड़े सुपर-इंपोज हो जा रहे हैं। रेप की ख़बरें, कन्या भ्रूण हत्या की खबरें,
और केरल छोड़कर देश के तकरीबन हर सूबे में तेजी से गिरता लिंगानुपात।
अब मैं यहां दो क़िस्से
सुनाना चाहता हूं, पहली कहानी राजस्थान के उदयपुर की है। उदयपुर की मशहूर झीलों में
जब नवजात बच्चियां मिलने लगीं, तो झील की खूबसूरती में दाग़-सा लग गया था।
ऐसे में सामने आए देवेन्द्र अग्रवाल। साल 2006 में कन्या भ्रूण हत्या के बढ़ते मामलों के बाद देवेन्द्र ने कन्याओं की मदद करने के लिए अपना मार्केटिंग करियर छोड़ दिया। उन्होंने महेश आश्रम में एक पालना रखवा दिया और नारा दिया, ‘फेंकिए मत, हमें दीजिए।’
इन नवजातों के
बचाने के लिए सबसे बड़ी जरूरत होती है मां के दूध की और देवेन्द्र ने इसके लिए भी
अनूठी पहल की। उन्होंने दुग्ध-दान आयोजित किया। इनमें प्रसूता माताएं आश्रम आकर
अपना दूध दे जाती हैं, जिन्हें इन बच्चियों को पिलाया जाता है। उन मांओ की पहचान
गुप्त रखी जाता है।
देवेन्द्र अग्रवाल बताते हैं कि उदयपुर में दुग्धदान सफल रहा है और एक बार तो 494 माताओं ने शिविर में आकर दुग्ध-दान किया था, इतनी बड़ी संख्या में तो कभी रक्तदान भी नहीं हुआ है।
साल 2007 से अब तक इसमें 110 बच्चियों लाई जा चुकी हैं। हालांकि राहत की बात यह है इनमें से 94 लड़कियों को किसी न किसी दंपत्ति ने गोद ले लिया है।
राजस्थान नवजात
कन्याओं की हत्या के मामले में कुख्यात है और हरियाणा भ्रूण को गर्भ में ही मार
देने के। राजस्थान में लिंगानुपात 883 लड़कियों का है।
दूसरा क़िस्सा
हरियाणा के झज्जर का है जहां साल 2011 में लिंगानुपात 774 था। तब वहां के
जिलाधिकारी अजीत बालाजी जोशी ने जिले के सभी 39 अल्ट्रासाउंड केन्द्रों को एडवांस
एक्टिव ट्रैकर से जोड़ दिया। यानी जितने भी अल्ट्रासाउंड केन्द्र थे वहां होने
वाले हर अल्ट्रासाउंड की जानकारी सीधे केन्द्रीकृत व्यवस्था के एक्टिव ट्रैकर में
फीड होती थी। इससे झज्जर में भ्रूणहत्याओं की संख्या में कमी आई।
इन दोनों ही
किस्सों से सीख ली जा सकती है। हम स्त्रियों पर चिंता जताकर उनपर कोई उपकार नहीं
कर रहे। आधी आबादी को उनके अधिकार देने की बात करना अहंमन्यता है। उनको बस अवसर
दिए जाने और बराबरी का व्यवहार करना जरूरी है, बाकी आसमान वह खुद हासिल कर सकती
हैं। फिर, दुर्गा सप्तशती में देवीस्त्रोत पढ़ते हुए, या माती की चौकी में जगराता
पढ़ते हुए कभी भी अपराधबोध से माथा नीचे नहीं झुकेगा।
( यह लेख गांव कनेक्शन अखबार के दो टूक स्तंभ में प्रकाशित हो चुका है)
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