कर्नाटक का
गुलबर्गा ज़िला। छोटे से क़स्बे जाबार्गी के बाजार में हूं। असल में बाज़ार से
थोड़ी दूर है यह जगह। सड़कों के किनारे बीजेपी के निवर्तमान मुख्यमंत्री (चुनाव के
वक्त के मुख्यमंत्री) और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार लिंगायत नेता जगदीश शेट्टार
की रैली है।
सूरज ढल रहा है,
लेकिन गरमी बरक़रार है।
जगदीश शेट्टर मंच पर हैं, सड़कों पर धूल उड़ रही है, रैली खचाखच भरी है। आसपास अपनी गहरी नज़र से देखता हूं, क्या यह भीड़ खरीदी हुई है? लोगों के चेहरे से कुछ पता नहीं लगता।
हर चेहरा पसीने
से लिथड़ा है...किसी चेहरे पर कुछ नहीं लिखा है। सौम्य जगदीश शेट्टर मंच से कन्नड़
में कुछ कहते हैं, (बाद में पता चला,
वो कह रहे थे एक लिंगायत
को वोट देंगे ना आप?) जनता की तरफ से
समवेत आवाज़ आती है। आवाज नहीं, हुंकार।
स्थान परिवर्तन।
जगहः बेल्लारी जिला, हासनपेट, राहुल गांधी की रैली। बांहे चढ़ाते हुए राहुल
हिंदी में भाषण दे रहे हैं। पूछते हैं, घूसखोर और बेईमान येदुयरप्पा और उनकी पार्टी (चुनाव से पहले
की) बीजेपी को हराएंगे ना आप? जनता फिर हुंकार भरती है। कुछ वैसे ही, जैसे जगदीश शेट्टार की रैली में हुंकार
भरी थी।
यहां भी लोगों के
चेहरे पर उदासीनता थी। लेकिन हेलिकॉप्टर की आवाज ने एक उत्तेजना तो फैलाई ही थी।
इस दौरे में
उत्तरी कर्नाटक के जिस भी ज़िले में गया, चुनावी भागदौड़ के बीच हर जगह एक फुसफुसाहट चाय दुकानों पर
सुनने को मिली। कन्नड़ समझ में नहीं आती थी, लेकिन स्वर-अनुतानों से पता चल जाता था कि खुशी
की बातें तो हैं नहीं।
कारवाड़, बीजापुर, गुलबर्गा, बीदर...हर तरफ सूखा था। किसानों की आत्महत्या
के किस्से भी थे।
जबार्गी में जगदीश शेट्टार की रैली में हुंकारा भरती जनता फोटोः मंजीत ठाकुर |
बीजापुर के एक
गांव नंदीयाला गया। इस गांव में पिछले साल एक किसान लिंगप्पा ओनप्पा ने आत्महत्या
की थी। उसके घर जाता हूं, दिखता है भविष्य की चिंता से लदा चेहरा। रेणुका लिंगप्पा का चेहरा। रेणुका
लिंगप्पा की विधवा हैं। अब उनपर अपने तीन बच्चों समेत सात लोगों का परिवार पालने
की जिम्मेदारी आन पड़ी है। पिछले बरस इनके पति लिंगप्पा ने कर्ज के भंवर में फंसकर
और बार-बार के बैंक के तकाज़ों से आजिज आकर आत्महत्या का रास्ता चुन लिया।
लिंगप्पा ने खेती
के काम के लिए स्थानीय साहूकारों और महाजनों और बैंक से कर्ज लिया था, लेकिन ये कर्ज लाइलाज मर्ज की तरह बढ़ता गया।
बीजापुर के बासोअन्ना बागेबाड़ी में आत्महत्या कर चुके चार किसानों के नाम हमारे
सामने आए। इस तालुके के मुल्लाला गांव शांतप्पा गुरप्पा ओगार पर महज 31 हजार रूपये का कर्ज था।
नंदीयाला वाले
लिंगप्पा पर साहूकारों और बैंको का कुल कर्ज 8 लाख था। इंगलेश्वरा गांव के बसप्पा शिवप्पा
इकन्नगुत्ती और नागूर गांव के परमानंद
श्रीशैल हरिजना को भी मौत की राह चुननी पड़ी।
पूरे बीजापुर
जि़ले में 2012 अप्रैल से 2013 अप्रैल तक 13 किसानों ने आत्महत्या की राह पकड़ ली। पूरे
कर्नाटक में यह आंकड़ा इस साल (साल 2013 में) 187 तो 2011 में 242 आत्महत्याओं का रहा था। 2013 में, बीदर में 14, हासन मे दस, चित्रदुर्ग में बारह किसानों ने आत्महत्याएं की
हैं। गुलबर्गा, कोडागू, रामनगरम, बेलगाम कोलार, चामराजनगर, हवेरी जैसे जिलों से भी किसान आत्महत्याओं की
खबरें के लिए कुख्यात हो चुके हैं।
खेती की बढ़ती
लागत और उत्तरी कर्नाटक का सूखा किसानों की जान का दुश्मन बन गया है। पिछले वित्त
वर्ष में कुल बोई गई फसलों का 16 फीसद अनियमित बारिश की भेंट चढ गया। और कर्नाटक सरकार ने सूबे के 28 जिलों के 157 तालुकों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया था।
लेकिन राहत कार्यो में देरी ने समस्या को बढ़ाया ही।
किसानों की
आत्महत्या कर्नाटक में नया मसला नहीं है। पिछले दस साल में 2886 किसानों ने अपनी जान दी है।
पिछले दशक में
बारह ऐसे जिले हैं जिनमें सौ से ज्यादा किसान आत्महत्याएं हुई हैं, ये हैं. बीदर, 234 हासन 316, हवेरी 131, मांड्या 114, चिकमंगलूर 221, तुमकुर 146, बेलगाम 205, शिमोगा 170 दावनगेरे, 136, चित्रदुर्ग 205 गुलबर्गा 118, और बीजापुर 149
लेकिन, किसानों की आत्महत्याएं अब आम घटना की तरह ली
जाने लगी हैं और विकास की अंधी दौड़ में हाशिए पर पड़े गरीब किसानों की जान की
कीमत अखबार में सिंगल कॉलम की खबर से ज्यादा नही रही हैं।
कर्नाटक दौरे में
यह इलाका, अब मुझे परेशान
करने लगा है। गरमी तो झेल लेगा कोई, लेकिन समस्याओं की यह तपिश नहीं झेली जाती।
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