चीन मे एक कहावत
है- दुनिया की सबसे बेशकीमती चीज़ हीरे-जवाहरात और मोती नहीं, धान के पांच दाने हैं। यह कहावत तब भी सच थी,
जब बनी होगी और आज भी
उतनी ही सच है।
शायद इसीलिए
पश्चिमी दुनिया जहां भेड़ों, सू्अरों, कुत्तों और
इंसानों की क्लोनिंग पर ध्यान दे रही है, वहीं भूख से जूझ रहे एशिया में धान के
जीनोम की कड़ियां खोजी जा रही हैं।
दुनिया भर में
करीब तीन अरब लोग चावल खाते हैं लेकिन धान के इस इलाके की आबादी का ज़्यादातर
हिस्सा अभी भी भूखा है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, दुनिया भर में 80 करोड़ लोग भुखमरी के शिकार हैं और सालाना करीब
50 लाख लोगों की मौत की वजह
कुपोषण है। दुनिया की आबादी में हर साल 8 करोड़ 60 लाख लोग जुड़ जाते हैं। इस इलाके में बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए अगले 20 साल में चावल की उपज को 30 फ़ीसदी तक बढ़ाना होगा।
उपज बढ़ाने के दो
तरीके सर्वस्वीकृत हैं। पहला, खेती के लिए रकबा बढ़ाना या फिर पैदावार में बढ़ोत्तरी करना। साठ के दशक के
पहले, पहलेवाले विकल्प पर
अमल किया गया और विश्वभर में बहुमूल्य जंगल कटकर खेत बन गए। साठ के दशक में नॉर्मन
बारलॉग जैसे वैज्ञानिकों ने स्थिति को नजाकत समझी और पैदावार बढ़ाने के लिए बीजों
की गुणवत्ता सुधार और तकनीकी साधनों के विकास की ओर ध्यान दिया। उसी कोशिश का
नतीजा रहा हरित क्रांति।
जैसे ही पौधों की
नई किस्मे पहले मेक्सिको और फिर पूरे विश्व में बोई जाने लगी पैदावार में भारी
बढ़ोत्तरी हुई। ख़ासकर एशिया में यह वृद्धि की दर 2 फीसदी सालाना के आसपास रही।
हालांकि, पिछले
कुछ वर्षों में उत्पादन में वृद्धि की दर मामूली रही, तो यह सोच लिया गया कि चावल उत्पादन अब अपने
चरम पर पहुंच चुका है और इसमें अधिक विकास की अब संभावना नहीं बची। ऐसे में सीमांत
भूमियों उत्पादन बढ़ाना एक बड़ी चुनौती रही है, जहां अधिकतर फसलें कीटों के प्रकोप, रोगों या सूखे की वजह से खत्म हो जाती हैं।
कई वैज्ञानिक
मानते हैं कि दुनिया के सबसे गरीब व्यक्ति तक खाना पहुंचाने का उपाय जीएम फसलें ही
हो सकती हैं। ये फसलें प्राकृतिक आपदाओं का सामा करने में अधिक सक्षम हैं।
जीएम फसलों की
क्षमता तब एक बार फिर उजागर हुई जब एक चीनी अध्ययन में कीट प्रतिरोधी जीएम चावल की
किस्म में दस फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज़ की गई।
यह सिर्फ उत्पादन
बढ़ाने का ही मामला नहीं है, बल्कि यह कीटनाशकों के अत्यधिक हो रहे प्रयोग को नियंत्रित करने में भी सहायक
होगा। चीन में ऐसे कीट प्रतिरोधी क़िस्में उगाने वाले किसानों में कीटनाशकों से
होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं में नाटकीय सुधार देखा गया है।
अपने देश में दूसरे
चरण की हरित क्रांति को कायदे से शुरू करने की जरूरत है। यद्यपि भारत आज खाद्यान्न
उत्पादन में आत्मनिर्भर है और खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) खाद्यान्न दान करने
दूसरा सबसे बड़ा संगठन है। फिर भी, पंजाब और हरियाणा में चावल की बढ़ती खेती और
उसके बुरे असर से लग रहा है कि हमें चावल उत्पादन की दूसरी विधियों की खोज करनी
चाहिए।
अब चूंकि चावल के
जीनोम की सिक्वेंसिंग इंटरनेशनल राइस जीनोम सिक्वेंसिंग प्रोजेक्ट ने कर ली है और
इसका डाटाबेस भारत समेत जापान, चीन ताईवान, कोरिया, थाईलैंड, अमेरिका, कना़डा, फ्रांस, ब्राजील, ब्रिटेन और फिलीपीन्स के वैज्ञानिकों के लिए
निशुल्क उपलब्ध है।
दुनिया में करीब 120 करोड़ लोग रोजाना एक डॉलर से भी कम पर गुजारा
करते हैं। ऐसे में, रोग, पे्स्ट, सूखा और लवणता प्रतिरोधी धान की फसल तीसरी
दुनिया के कृषि परिदृश्य में क्रांति ला सकती है जाहिर है, यह भूखों के हित में होगा।
(यह लेख गांव कनेक्शन अखबार में मेरे स्तंभ दो-टूक में प्रकाशित हो चुका है)
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